शनिवार, 26 सितंबर 2009

भारत के ह्रदय (मध्य प्रदेश ) में कुछ दिन -- इंदौर / उज्जैन यात्रा

अपनी यात्राओं के क्रम से थोडा भटक कर पिछले हफ्ते की यात्रा का यह वृत्तांत लिख रहा हूँ | कुछ पुराने संस्मरण और हैं वो इसके बाद समय मिलने पर लिखूंगा|

बिलकुल अचानक ही हो गयी ये यात्रा और सच मुच बीते दिनों की छोटे शहरों की यादों को ताज़ा कर गई | दरअसल शुक्रवार की दोपहर तक हम लोग हरिश्चंद्र गढ़ के ट्रेक के लिए तैयार बैठे थे | पहले मयंक , अमोल और मेरा जाने का विचार था परन्तु अमोल को कुछ काम आ जाने की वजह से हम दो लोग ही बचे | दोपहर में मयंक ने बोला की हम लोगों को हरिश्चंद्र गढ़ से जल्दी वापस आना पड़ेगा क्योंकि उसको रविवार की दोपहर में इंदौर के लिए निकलना है |
दरअसल इंदौर में स्काई-डाइविंग का इवेंट होना था | यदि आप में से कोई इच्छुक हों तो कृपया ज्यादा जानकारी के लिए
www.skydivingindia.com देखें | अचानक मेरे दिमाग में ख्याल आया की क्यों ना इंदौर ही घूम लिया जाये | इन्टरनेट पर थोडा बहुत खोजने के बाद अचानक हम दोनों ने शाम को इंदौर निकलने का विचार बना लिया | अब नए प्लान के मुताबिक शाम के ५ बजे हम दोनों इंदौर घूमने का मन बना चुके थे |

मुंबई से इंदौर :
शाम को ५:३० पर ऑफिस से निकल कर हम लोग मयंक के घर बान्द्रा पहुंचे | मैं अपने बैग में कुछ सामान जो ट्रेक के लिए चाहिए था ले कर ही चला था | अब प्रश्न था की जाना कैसे है क्योंकि टिकेट तो था नहीं | मयंक के घर पर इन्टरनेट भी नहीं चल रहा था | राजीव (हमारे सहकर्मी ) के घर पर जा कर इन्टरनेट पर ट्रेन खोजने की कोशिश की तो पता चला की सारी ट्रेन जा चुकी थी | अब प्राइवेट ट्रेवल एजेंट्स को फोन किया तो यहाँ भी निराशा ही हाथ लगी | सारी बसें भी ७ बजे तक जा चुकी थी | थोडा सोचने के बाद हमने निर्णय लिया की दिल्ली की कोई ट्रेन पकड़ कर रतलाम तक जा सकते हैं और वहां से इंदौर | दिल्ली के लिए अगली ट्रेन गोल्डन टेम्पल एक्सप्रेस थी जो ९:२५ पर मुंबई सेंट्रल से निकलती थी | हमें जनरल का टिकेट ले कर ही जाना था | झटपट टैक्सी पकड़ हम ८:४५ पर मुंबई सेंट्रल पहुँच गए | मुंबई सेंट्रल के बाहर एक ट्रेवल एजेंट से बस का पता किया तो वो बोला की हम शिरपुर तक एक बस से निकल सकते हैं और वहां से इंदौर ४ घंटे में पहुँच जायेंगे | तुंरत टिकेट ले लिया और अमोल ( जो की महाराष्ट्र से ही है ) को फोन कर के पता किया की शिरपुर कौन सी जगह है | उसने बताया की मध्य प्रदेश की सीमा की तरफ ही है तो तसल्ली हुई |
सुबह आंख खुली तो हम लोग धुले में थे | शिरपुर, धुले जनपद में ही एक तालुका है| धुले से ५० किलोमीटर आगे ही शिरपुर था और हम ७ बजे सुबह शिरपुर पहुँच गए | यहाँ पहुँच कर पता चला की महाराष्ट्र राज्य परिवहन की एक बस ८ बजे इंदौर जायेगी और ४ घंटे में हम पहुँच जायेंगे | लेकिन हम तकरीबन ३ बजे इंदौर पहुंचे |

इंदौर में पहला दिन :
इंदौर पहुँचने पर सरवटे बस स्टेशन के सामने ही कुछ होटल दिखे | एक दो जगह पता करने के बाद न्यू स्टैण्डर्ड होटल में मात्र २३५ रुपये प्रतिदिन पर एक अच्छा सा कमरा मिल गया | अब नहा धो कर खाना खाया और इंदौर दर्शन के लिए निकल पड़े | यहाँ से कुछ दूरी पर ही राजवाड़ा है |
राजवाड़ा:

इंदौर होलकर राजाओं की राजधानी थी और राजवाड़ा होलकर राजाओं द्वारा बनवाई गई एक भव्य ईमारत है | शहर के ह्रदय
में स्थित यह ईमारत होलकर वंश के वैभव और कलाप्रेम को दिखाती है | प्रथम तीन मंजिलें पत्थर की बनी हुई हैं और उपर की चार मंजिलों में लकड़ी का ज्यादा प्रयोग है | राजवाडा स्थापत्य कला की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है | यह मराठा , मुग़ल , राजपूत और इतावली कला का मिश्रित रूप है | भवन का दरबार हॉल फ्रेंच बेसेलिक शैली में बना हुआ है |
यहाँ जाने के बाद हमें पता चला कि भवन के भीतर जाना मना है | यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था हमारे लिए | पूछने पर यहाँ के चौकीदार ने बताया कि शहर के प्रेमी युगल इस खूबसूरत भवन के कोने कोने में पड़े रहते थे और कई बार कुछ लोगों ने यहाँ से आत्महत्या का प्रयास भी किया | इसके बाद सरकार ने इसे आम लोगों के लिए बंद करना ही उचित समझा |
राजवाडे के पीछे के हिस्से में होलकर वंश के कुल देवता (मल्हारी मार्तंड - शिव ) का मंदिर है | इस मंदिर के भीतर
जाने पर होलकर वंश के इतिहास को दर्शाते हुए बहुत से चित्र लगे हुए हैं | साथ ही अनेक दुर्लभ मूर्तियाँ विशेषकर कुलदेवता मल्हारी मार्तंड (शिव) के अनेक रूपों में मूर्तियाँ हैं | मंदिर के गर्भ गृह में शिव का मंदिर है|

राजवाडे में १-२ घंटे बिताने के बाद हम होल्कर वंश के इतिहास से परिचित हो चुके थे | अब अँधेरा हो चुका था इसलिए कुछ और जगहें देखने के विचार को त्याग कर हम इंदौर के बाजारों से होते हुए वापस होटल की तरफ चल दिए | चूँकि यात्रा की थकान थी इसलिए भोजन के बाद तुंरत नींद आ गई |

दूसरा दिन :
दूसरे दिन हमारा विचार था ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर दोपहर तक वापस इंदौर आने का और फिर शहर के बाकी दर्शनीय स्थल देखने का | प्लान के मुताबिक हम सुबह ८ बजे होटल से ओंकारेश्वर के लिए निकल पड़े |
ओंकारेश्वर : ओंकारेश्वर इंदौर से ७५ किलोमीटर दूर एक ज्योतिर्लिंग है | नर्मदा और कावेरी के संगम पर एक पर्वतनुमा टापू है जो की उपर से देखने पर ॐ का आकर लिए हुए है | इतिहास में इस पर्वत का वैदर्य मणि पर्वत के नाम से उल्लेख मिलता है | इसके उत्तर में कावेरी और दक्षिण में नर्मदा बहती है | यहीं पर नर्मदा के किनारे पर ओंकारेश्वर मंदिर है | नदी के दूसरे किनारे पर ममलेश्वर मंदिर है | यह दोनों मंदिर मिलकर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कहे जाते हैं |

तकरीबन १२ बजे हम लोग ओंकारेश्वर बस स्टैंड पे उतरे | थोडा आगे चलने पर ही नर्मदा नदी पर पुल पार कर हम मंदिर के पास पहुँच गए | यहाँ जा कर पता चला की संगम थोडा दूर है और इस पर्वत की परिक्रमा का मार्ग भी बना हुआ है | परिक्रमा मार्ग में कुछ पुराने मंदिर भी पड़ते हैं | हमने सोचा की पहले संगम पर स्नान कर लिया जाये और फिर आगे की सोचेंगे | करीब १ किलोमीटर चलने पर ही हम संगम पहुँच गए | यहाँ पर स्नान करने का मज़ा ही कुछ और था | पाप तो धुल ही रहे थे और धूप में ठंडे पानी में पड़े रहने का आनंद |
यहाँ कुछ देर बिताने के बाद अब समय था परिक्रमा मार्ग के मंदिर देखने का | धूप बहुत तेज़ थी और अब उपर चढ़ना था | यहाँ से अनेक मंदिर शुरू हो गए थे | सबसे पहले द्वारिकाधीश ऋणमुक्तेश्वर महादेव का मंदिर मिला | इसके कुछ और उपर जाने पर गौरी सोमनाथ मंदिर था | थोडा और आगे चल कर एक छोटी सी चाय की दुकान दिखी तो चाय पीने बैठ गए|
इस चाय की दुकान के मालिक छगन लाल जी से भी कुछ देर तक बातें हुई | उनका दावा था कि उनके पास एक ऐसा पम्प बनाने का तरीका है जो कि बिजली से नहीं चलेगा | यह पानी की शक्ति से ही चलेगा | इसके बाद उन्होंने कई तर्क दिए और दिखाया कि कैसे उन्होंने मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री और कुछ विश्व विद्यालयों तक जा कर अनुदान की मांग की परन्तु अब तक कुछ नहीं हुआ | कुछ ३०-४० हज़ार रूपये की लागत से वो अपना चलता हुआ मॉडल बना पाएंगे | हमे भी लगा की आखिर कोई इतना हाथ पाँव मार रहा है तो बातों में कुछ तो सच होगा ही | बातो बातो में लग भी रहा था की जानकारी तो थी उनको | खैर करीब १ घंटा वहां बैठे बैठे हो गया था तो अब आगे चलने की सोची |

थोडा आगे चलने पर बहुत पुराने कुछ द्वार मिले | एक धर्मराज द्वार था | थोड़े बहुत ही अवशेष बचे थे यहाँ पर | कुछ दूर और चलने पर एक चाँद सूरज द्वार था | चाँद सूरज द्वार भी वहां के स्थानीय लाल पत्थरो का बना हुआ था और इस पर नक्काशी बहुत खूबसूरत थी | हम सोच रहे थे की यहाँ पर ऐसे द्वार क्यों बने हुए हैं |


बारहद्वारी सिद्धनाथ मंदिर
थोडा और आगे एक बहुत ही खूसूरत मंदिर दिख पड़ा | यह था बारह द्वारी सिद्धनाथ मंदिर | इस मंदिर के भी थोड़े ही
अवशेष बचे थे लेकिन पत्थरों पर नक्काशी बहुत पुरानी कला को दिखाती थी | यहाँ के पुजारी ने बताया कि यह महाभारत कालीन शिव मंदिर है और इसके चारो तरफ करीबन आधा एक किलोमीटर तक १२ द्वार थे | बहुत बड़े क्षेत्र में फैला हुआ था ये मंदिर जिसके अवशेष अभी भी हैं | इसीलिए इसका नाम बारहद्वारी सिद्धनाथ मंदिर है | अब कला का यह अवशेष पुरातत्व विभाग के पास है | इस मंदिर के प्रांगण में बैठने
पर बिलकुल शांत वातावरण और सामने का सुन्दर दृश्य आपके सामने होता है | इसके सामने नर्मदा पर एक बाँध बना हुआ है तो दूर दूर तक पानी और जंगल दिखते हैं | यहाँ पर भी एक घंटा बैठने के बाद अब नीचे उतरने का समय हो चला था|
पहाडी से थोडा सा नीचे उतरकर ओंकारेश्वर महादेव का मंदिर आ जाता है | यहाँ पर दर्शन करने के बाद, वापस नर्मदा का पुल पार कर हम ओंकारेश्वर नगर पहुँच गए | यहाँ खाना खाया और बस पकड़ कर रात्रि ८ बजे हम इंदौर पहुँच गए | हमारा विचार तो दिन में वापस लौट कर इंदौर घूमने का था परन्तु ओंकारेश्वर में ही पूरा दिन लग गया |

तीसरा दिन :
आज मयंक को स्काई-डाइविंग के लिए जाना था परन्तु सुबह पता चला कि कुछ सुरक्षा कारणों की वजह से गृह मंत्रालय द्वारा आयोजको के विमान को उडान भरने की अनुमति नहीं मिल पाई है| आज के दिन हमने इंदौर की बची हुई जगहों को घूमने का विचार बनाया और दोपहर तक उज्जैन निकल जाने की सोची |
सबसे पहले हम लालबाग का महल देखने पहुंचे | यह महल होल्कर वंश द्वारा बनायीं गई बर्किन्घम पैलेस कि अनुकृति है और होल्कर वंश के कलाप्रेम और वैभवशाली इतिहास की द्योतक है | इसके मुख्य द्वार पर लोहे के बड़े गेट लगे हुए हैं और दो शेर बने हुए हैं | लालबाग पैलेस में सोमवार को साप्ताहिक अवकाश रहता है और हमें फिर से निराशा ही हाथ लगी | इसके बाद इंदौर के प्रसिद्द अन्नपूर्णा मंदिर और बड़े गणपति मंदिर के दर्शन के बाद हम लोग प्रसिद्द कांच के मंदिर की तरफ चल पड़े |
कांच का मंदिर एक बहुत ही खूबसूरत दिगंबर जैन मंदिर है |
इस मंदिर के भीतर फर्श से दीवारों तक पूरा कांच का काम है | विभिन्न रंगों में कांच के टुकडो की बहुत ही खूबसूरत कला इस मंदिर को दर्शनीय बना देती है |

इसके बाद हम इंदौर की शीशमहल बाज़ार से होते हुए कृष्णपुरा की छतरियां देखने निकल पड़े | राजवाडे के पास बनी हुई ये छतरियां भी स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना हैं | ये लाल रंग के पत्थर से बनी हुई हैं और दीवारों और स्तंभों पर

बहुत ही महीन नक्काशी है | पुरातत्व विभाग के पास होने के बावजूद भी यहाँ की स्थिति बड़ी ही ख़राब लगी | अच्छे रखरखाव से ही हम इन अमूल्य धरोहरों को संरक्षित रख सकते हैं |

इसके बाद हम वापस होटल पहुंचे और खाना खाने के बाद कुछ देर आराम किया | करीब तीन बजे हम होटल छोड़ कर उज्जैन के लिए निकल पड़े | सरवटे बस स्टेशन से उज्जैन के लिए बसे हमेशा मिलती रहती हैं| इंदौर से उज्जैन की दूरी ५५ किलोमीटर है |
शाम को उज्जैन पहुँच कर रेलवे स्टेशन के पास में ही होटल अजय में २५० रूपये प्रतिदिन पर एक कमरा मिल गया | कुछ देर आराम करने के बाद शाम को हम उज्जैन घूमने निकल पड़े | नवरात्री होने की वजह से एक जगह गरबा नृत्य का आयोजन था | कुछ देर वो देखकर खाना खाने के बाद वापस होटल आ गए| अगले दिन सुबह तडके २ बजे उठ कर महाकालेश्वर की प्रसिद्द भस्म आरती में शामिल होने का विचार बनाया |

चौथा दिन :
सारी योजनाओं पर पानी तब फिर गया जब हम दोनों सुबह ७ बजे तक होटल के कमरे में सोये ही रह गए और आरती का प्लान धरा का धरा रह गया | खैर सुबह उठ कर थोडी देर खुद को कोसने के बाद हम महाकालेश्वर के दर्शन के लिए निकल पड़े |

महाकालेश्वर उज्जैन में स्थित शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक है | यह मंदिर भी बहुत पुराना बना हुआ है और पत्थरो पर सुन्दर नक्काशी है | मंदिर के भीतर कैमरा ले जाना मना है तो दर्शन के बाद बाहर से ही कुछ फोटो ले कर हम राम घाट की तरफ चल पड़े | थोडी ही दूर पर राजा विक्रमादित्य की आराध्य दुर्गा का मंदिर है | उज्जैन कभी विक्रमादित्य की राजधानी हुआ करती थी और इसका नाम अवंतिकापुरी था | आज भी मुंबई से उज्जैन के लिए अवंतिका एक्सप्रेस चलती
है | करीब एक किलोमीटर दूर क्षिप्रा नदी के तट पर रामघाट है | कुछ देर यहाँ बैठने के बाद हम भृत हरी गुफाओं की तरफ चल दिए |

भृत हरी की गुफाये उज्जैन से थोडा बाहर स्थित हैं | ऑटो रिक्शा पकड़ कर आधे घंटे में हम यहाँ पहुँच गए| इन गुफाओं के साथ कुछ पौराणिक कथाये जुडी हुई हैं | जमीन के नीचे यहाँ पर दो गुफाये हैं जिसके अन्दर नीलकंठेश्वर (शिव) और भृत हरी के मंदिर हैं |
बाहर निकल कर योगी गोरक्ष नाथ का मंदिर औरधूनी है |
दोपहर हो गई थी और अब हमे वापस मुंबई जाने का सोचना था | चूँकि हमारे पास कोई टिकेट नहीं था इसलिए इंदौर जा कर बस का पता करना था | वापस आ कर होटल छोड़ा और इंदौर के लिए बस पकड़ ली | ३ बजे करीब इंदौर पहुँच कर शाम की बस का टिकेट लिया |
इसके बाद एक जगह स्वादिष्ट साग पूरी खायी | सरवटे बस स्टेशन के पास ही इंदौर की प्रसिद्द घमंडी लस्सी और कुल्फी की दुकान है | लस्सी पीने की तो जगह थी नहीं पेट में तो स्वादिष्ट कुल्फी खायी और फिर थोडा बाज़ारों की तरफ निकल पड़े |
हमारी बस ५ बजे जाने वाली थी और जैसा की हमेशा प्राइवेट ट्रेवल्स की बस के साथ होता है, यह बस ७ बजे चली | अगले दिन सुबह ११ बजे हम मुंबई पहुँच गए | मध्य प्रदेश की यह यात्रा अविस्मरणीय रही और जल्द ही राजस्थान या कच्छ के रण घूमने का प्लान बन रहा है |

फोटो एल्बम यहाँ देखें ...(सौजन्य : मयंक जोशी )

2 टिप्‍पणियां:

पढ़ ही डाला है आपने, तो जरा अपने विचार तो बताते जाइये .....