शनिवार, 24 अप्रैल 2010

सुदूर मराठवाड़ा और सीमावर्ती निजामाबाद यात्रा

बहुत दिनों से ऑफिस और अपनी व्यस्तता के बीच ट्रेकिंग और घूमने पर विराम सा लग गया था | पर अभी अप्रैल के प्रथम सप्ताह में एक अवसर मिल ही गया जिसकी बहुत दिनों से प्रतीक्षा थी | दरअसल मेरे ऑफिस के एक मित्र अमोल की सगाई तय हुई थी और इस सिलसिले में परभणी जाने का विचार बन गया | बस अवसर की तलाश थी तो मैं तुरंत घूमने की जगहें खोजने लगा | परभणी (अमोल का गृह नगर ), महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में एक जिला है

मराठवाड़ा :

महाराष्ट्र के पांच प्रशासनिक मंडलों में से एक मराठवाड़ा है जो आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित है | अंग्रेजों के शाशन काल में यह हेदराबाद के निजाम के नियंत्रण में था जिसे १९५६ में बॉम्बे राज्य में शामिल कर लिया गया | बाद में महाराष्ट्र और गुजरात के विभाजन के समय यह क्षेत्र महाराष्ट्र में आया | इस क्षेत्र के प्रमुख स्थान औरंगाबाद, नांदेड, परभणी , लातूर आदि हैं | मराठवाड़ा क्षेत्र अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के लिए जाना जाता है | प्रमुख आकर्षण हैं :

औरंगाबाद में अजन्ता - एल्लोरा की गुफाएं |
घ्रिश्नेश्वर ज्योतिर्लिंग और नागनाथ एवं वैजनाथ |
ज्ञानेश्वर, मुक्ताबाई , गजानन महाराज , समर्थ रामदास , नामदेव आदि संतों की कर्मस्थली
नांदेड में दसवें सिख गुरु , गुरु गोविन्द सिंह जी की समाधि और गुरुद्वारा तख्त श्री सचखंड साहिब |
खुल्दाबाद में दक्षिण के अनेक सूफी संतो की समाधियाँ |


योजना :
चूंकि हमारे पास तीन दिन का ही समय था इसलिए समय की पाबन्दी के हिसाब से योजना बनानी थी | औरंगाबाद जिला में पहले घूम चुका था इसलिए बाकी जगहें घूमने का विचार बना | संतोष ने बताया कि आंध्र प्रदेश के सीमावर्ती जिले आदिलाबाद में एक प्रसिद्ध प्राचीन सरस्वती मंदिर है | बासर सरस्वती शक्ति पीठ, भारत के दो प्रसिद्द सरस्वती मंदिरों में से एक है | अमोल ने बताया कि लोणार में एक विशाल खारे पानी की झील भी देखने लायक है जो कि बहुत पहले उल्का पिंड के गिरने से बनी हुई है| योजना के मुताबिक बासर शक्ति पीठ, लोणार झील और नांदेड जाने का विचार बना और एक दिन तो अमोल की सगाई का ही था | इस बार जाने वाले ३ लोग थे , संतोष मैं और सौरभ |

मुंबई से बासर :
शुक्रवार को ऑफिस के बाद, मुंबई से हैदराबाद जाने वाली ट्रेन, देवगिरी एक्सप्रेस पकडनी थी | यहाँ से हम ५ लोग जाने वाले थे : अमोल , संतोष , सौरभ, प्रकाश , और मैं | अमोल और प्रकाश को
परभणी उतरना था और हम तीनों को इसी ट्रेन से बासर जाना था | शाम को ऑफिस से निकाल कर दादर में खाना खाने के बाद ९ बजे देवगिरी एक्सप्रेस पकड़ कर यात्रा का प्रारंभ हुआ |
सुबह ७ बजे अमोल और प्रकाश परभणी में उतर गये| ट्रेन का बासर पहुँचने का समय १०:३० का था | परभणी के बाद का इलाका सूखा हुआ था और गर्मी बहुत थी | इस पर ट्रेन अब धीरे धीरे चल रही थी | करीबन ११ बजे हम लोग बासर स्टेशन पर उतरे |

बासर में :


बासर गोदावरी नदी के तट पर एक छोटी जी जगह है| सरस्वती मंदिर के अलावा यहाँ पर श्रद्धालुओं के लिए कुछ होटल और धर्मशाला भी बन गये हैं | हमारी योजना के मुताबिक पहले गोदावरी में स्नान कर फिर मंदिर के दर्शन करने थे | स्टेशन से बाहर निकल कर चाय पी और यहाँ ऑटो वाले ने बताया की गोदावरी के घाट पर तो पानी लगभग सूख चुका है | यहाँ गर्मी बहुत थी और गोदावरी के पानी का सूख जाना इस बात का प्रमाण था | खैर यहाँ से ऑटो पकड़ कर मंदिर के पास बने हुए मंदिर ट्रस्ट के धर्मशाला में गये | यहाँ स्नान करने के बाद अब समय था सरस्वती मंदिर के दर्शन करने का |

मंदिर में ज्यादा भीड़ नही थी | यहाँ बहुत से लोग छोटे बच्चों का अक्षरारंभ कराने के लिए आते हैं |
मंदिर का वातावरण बहुत शांत था | यह मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में बना हुआ है | प्रसाद ले कर हम भी पंक्ति में लग गये और करीब आधे घंटे में हमें दर्शन भी हो गये | इस समय यहाँ दक्षिण भारतीय वाद्य यंत्रों के साथ आरती शुरू हो चुकी थी | आरती के बाद मंदिर से बाहर निकले और संतोष ने बताया की यहाँ मंदिरों में प्रसाद के रूप में बड़ा सा लाडू और फुल्लिहोरा मिलता है | फुल्लिहोरा चावल का (फ्राइड राईस की तरह ) बना होता है और बड़ा ही स्वादिष्ट था | लड्डू और फुल्लिहोरा खाने के बाद तो अब दिन के
भोजन की भी जरूरत नही थी|



बासर से नांदेड :
अब समय था बासर से नांदेड जाने का | बासर स्टेशन पर जा कर पाता चला की थोड़ी ही देर में नांदेड के लिए एक पसेंजर ट्रेन है | जल्दी से टिकेट लिए और थोड़ी ही देर में ट्रेन आ गयी | जैसा की उम्मीद थी ट्रेन में अच्छी खासी भीड़ थी और गर्मी के इस मौसम में यात्रा को मुश्किल बना रही थी | पेसेंजर ट्रेन थी तो रुक रुक कर चली जा रही थी | बाहर भी हरियाली का नामो निशान नही था | करीबन ४ बजे आखिरकार हम नांदेड पहुँच गये | समय ज्यादा नही बचा था और शाम को परभणी भी लौटना था |

नांदेड में :

नांदेड शहर धार्मिक नगरी के रूप में जाना जाता है | यहाँ का नाम भी हुजूर साहेब नांदेड है | अभी २ साल पहले नांदेड में तख्त साहेब के ३०० साल पूरे होने के अवसर पर बहुत बड़े आयोजन हुए थे जिससे शहर का नक्शा ही बदल गया है |

यहाँ से ऑटो पकड़ कर हम लोग प्रमुख गुरूद्वारे 'तख्त सचखंड श्री हजूर साहिब' की तरफ चल पड़े | गुरुद्वारा स्टेशन से ज्यादा दूर नही है | गुरूद्वारे के मुख्य द्वार से भीतर प्रवेश करते ही इसकी भव्यता का अनुमान हो जाता है | बहुत बड़े क्षेत्र में बने हुए इस गुरूद्वारे का वातावरण बहुत शांत और सुखद था | इसी जगह पर गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपने अंतिम दिन बिताये थे और यहाँ पर ही गुरु ग्रन्थ साहिब को अगला गुरु घोषित किया था |

 बाद में इस गुरूद्वारे का निर्माण पंजाब के महाराज रंजीत सिंह जी ने सन १८३० से १८३९ के बीच करवाया था |

गुरूद्वारे में मत्था टेकने के बाद प्रसाद में स्वादिस्ट हलुआ खाया| सचमुच यह वातावरण इतना शांत था की यहाँ से वापस जाने का मन नही कर रहा था | करीब आधे घंटे गुरूद्वारे के बाहर बैठे रहे और अब समय था वापस जाने का |

नांदेड से परभणी :
गुरूद्वारे से नांदेड स्टेशन आये और मुंबई के लिए जाने वाली देवगिरी एक्सप्रेस पकाकर वापस परभणी की तरफ रवाना हुए | द्वितीय श्रेणी के डब्बे में बहुत भीड़ थी और हम तीनो को गेट पर ही बैठना पड़ा| यह सफ़र करीब १:३० घंटे का था और ८ बजे हम परभणी पहुँच गये | यहाँ अमोल के घर पर २ दिन बिताना भी बहुत अच्छा अनुभव था | मराठी सभ्यता , मराठी भोजन और मराठी आतिथ्य सत्कार ....सब कुछ यादगार था | चूँकि सब थक चुके थे इसलिए भोजन के बाद सबको नींद आ गयी |

दूसरा दिन : लोणार में

आज अमोल की सगाई का दिन था | यह रस्म मराठी में साखरपूड़ा कहलाती है और लड़की के घर पर होती है | सुबह सुबह उठकर तैयार होना था | करीबन १० बजे हम लोग लोणार की तरफ निकल पड़े | लोणार, बुलढाना जिले में एक छोटी सी जगह है | परभणी से २ घंटे का सफ़र तय करने के बाद करीब १२ बजे हम लोग लोणार में थे | इसके बाद ३-४ घंटे तक साखरपूड़ा की रस्म चलती रही और इसके बाद स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया | अब समय था लोणार की कुछ जगहे देखने का |


लोणार झील :

लोणार महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में स्थित है | यहाँ का प्रमुख आकर्षण एक विशालकाय सरोवर है | लोणार सरोवर उल्का गिने से बने हुए एक विशाल गड्ढे में प्राकृतिक रूप से बना हुआ है | यह झील खारे और क्षारीय पानी की है | इस गड्ढे का व्यास १.८ किलोमीटर और झील का व्यास १.२ किलोमीटर है| इस झील के बनने का समय ५२००० (+- ६०००) वर्ष आँका गया है| इस झील पर बहुत से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में शोध चल रहा है | सुना जाता है की यहाँ स्नान करने से चर्म रोग दूर होते हैं |

इस झील का विवरण स्कन्द पुराण, पद्म पुराण और आइना-ए-अकबरी में मिलता है | झील के चारों तरफ बहुत से प्राचीन मंदिर भी बने हुए हैं |

सबसे आश्चर्य जनक बात झील के एक तरफ एक पानी की धार का उद्गम होना है | विदर्भ में , जहाँ की सूखे की मार रहती है, पहाड़ के उपर एक साल भर पानी का स्रोत भी शोध का विषय है | यहाँ पर विष्णु का मंदिर है और किंवदंतियों के अनुसार बहुत पहले विष्णु ने यहाँ पर अवतार लिया था
और लवणासुर नामक असुर का वध किया था | इसके बाद काशी से गंगाजल के रूप में यह जल धारा उत्पन्न हुई और इसी असुर के नाम पर इस जगह का नाम लोणार है | यह एक छोटा परन्तु प्राचीन मंदिर समूह है जिसमे विष्णु का मंदिर मुख्य है | यहाँ विष्णु की लवणासुर के उपर खड़ी प्रतिमा है और मूर्ति के ठीक २-३ फीट नीचे यह सदाबहार जल की धारा है |
यहाँ का वातावरण भी बड़ा शांत और सुखद था | यहाँ पर खड़े हो कर कुछ फोटोग्राफी की, मंदिर के दर्शन के बाद सूर्यास्त के सुन्दर दृश्यों का अननद लिया और अब वापस चल पड़े |
रात में करीब १० बजे हम परभणी पहुच गये और भोजन के उपरान्त नींद के आगोश में समा गये |








परभणी में तीसरा दिन :
दो दिन की थकान हम सब पर हावी हो चुकी थी और गर्मी की वजह से आज का दिन परभणी की स्थानीय जगहों को घूमने में लगा दिया | देर से सो कर उठे और नाश्ते के बाद अमोल के साथ मैं और संतोष परभणी देखने निकल पड़े | सौरभ ने घर पर रुक कर सोने का निर्णय लिया | बड़े शहरों की अपेक्षा एक छोटे से शहर का जीवन मुझे हमेशा आकर्षित करता रहा है | धूप में परभणी के बाज़ारों में घूमना भी अच्छा अनुभव था | ३-४ घंटे घूमने के बाद वापस घर आ गये |
कुछ देर आराम करने के बाद अब वापस मुंबई जाने का समय था | फिर वही देवगिरी एक्सप्रेस पकड़ कर हम लोग ८ बजे परभणी से मुंबई की तरफ रवाना हुए | सुबह ७ बजे दादर स्टेशन पर उतर कर यात्रा का समापन हुआ |

इस यात्रा में भी हमें कई ऐसी जगहें, जो पर्यटन कि दृष्टि से ज्यादा विकसित नही हुई हैं और ज्यादा प्रसिद्द नही हैं , देखने का अवसर मिला और साथ ही मराठी संस्कृति को करीब से जानने समझने का अविस्मर्णीय अनुभव अमोल के घर पर मिला |