मंगलवार, 4 मई 2010

तीन दिन राजस्थानी रंग में

अभी मराठवाड़ा से वापस लौटे ४ ही दिन बीते थे की फिर अप्रैल की गर्मी में राजस्थान जाना पड़ा | दरअसल संतोष और मुझे किसी काम से बिट्स पिलानी ( बिरला प्रोद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान, पिलानी ) जाना था | जाना ही पड़ा तो हम लोगों ने सप्ताहान्त पर थोडा बहुत राजस्थान घूम लेने का विचार भी बना लिया |

योजना :

जयपुर से पिलानी जाने के लिए ६ घंटे का समय लगता है | सोमवार को पिलानी निकलना था और हम शुक्रवार को मुंबई से निकल रहे थे इसलिए हमारे पास करीबन दो दिन थे जयपुर और आस पास की जगहे घूमने के लिए | राजस्थान में अब तक मैं बस उदयपुर घूम पाया था तो जयपुर के आस पास कुछ भी देख सकता था | इन्टरनेट पर खोजने के बाद प्लान बनाया कि जयपुर जा ही रहे हैं तो अजमेर शरीफ की दरगाह पर भी माथा टेक लें और साथ ही पुष्कर का भी एक चक्कर मार लें | साथ ही बाकी बचे हुए समय में जयपुर कि जगहें देख ली जाएँगी | हांलांकि गर्मी का भय तो सता रहा था परन्तु जाना था तो घूमना भी था ही |

मुंबई से जयपुर :

शुक्रवार को ऑफिस की छुट्टी के बाद वहीँ से निकलने का विचार था क्योंकि बोरीवली स्टेशन से मुंबई जयपुर एक्सप्रेस पकडनी थी | सुबह अचानक संतोष को कुछ काम आ गया और उसका जाना नामुमकिन हो गया | अब उसने रविवार को मुंबई से निकलने का प्लान बनाया परन्तु मेरे लिए दुविधा थी कि क्या मैं गर्मी में अकेला घूम पाउँगा या फिर मुझे भी रविवार को संतोष के साथ ही जाना चाहिए | इस कशमकश के बीच आखिर मेरे अन्दर का घुमक्कड़ जीत गया और में शाम को ६ बजे ऑफिस से निकल पड़ा | ७: ३० पर बोरीवली से ट्रेन पकड़ी | चूँकि अकेला ही था तो ट्रेन का सफ़र कुछ खास रोचक नही रहा | कुछ एक लोगों से दोस्ती कर ली तो थोडा समय कट गया |
ट्रेन में एक बूढ़े से चाचा चाची जी मिल गये और उन्होंने बोला कि सुबह ४ बजे अगर मैं उनको रतलाम में जगा दूँ तो अच्छा रहेगा | सुबह उन्हें उठाया और उनके उतरने के बाद रतलाम में चाय पी | परन्तु अब मेरी नींद काफूर हो गई | सुबह थोड़ी ही देर में गर्मी भी पड़ने लगी और अब सफ़र मुश्किल हो रहा था | सवाई माधोपुर में ट्रेन १५ मिनट के लिए रुकी तो उतरकर लस्सी का आनंद लिया | यहाँ से आगे डीजल इंजन लग जाता है और सिंगल ट्रेक है | अब धीरे धीरे ट्रेन चली जा रही थी और बीच बीच में रुक भी जाती थी | खैर १:३० पर मैं जयपुर स्टेशन पर उतर गया |

जयपुर में पहला दिन :

ट्रेन में एक सज्जन ने बताया था कि सिन्धी कैंप जयपुर का केंद्रीय बस अड्डा है और उसके आस पास सस्ते होटल मिल जाते हैं | रेलवे स्टेशन से बाहर निकल कर रिक्शा पकड़ा और मैं सिन्धी कैंप बस अड्डे की तरफ चल दिया | यहाँ पर थोड़ी देर होटल खोजने पर एक अच्छे से होटल में ५०० रूपये प्रतिदिन पर एक बड़ा सा कमरा मिल गया| हांलांकि थोडा महँगा ही था फिर भी मैंने गर्मी में घूमने से यहीं रुक लेना अच्छा समझा |
होटल में खाना खाने के बाद अब समय था जयपुर देखने का | अभी ३ बज रहा था और बाहर गर्मी थी पर समय भी तो कम था | होटल के बाहर निकल कर जयपुर का एक नक्शा खरीदा और हवा महल के बारे में पता किया | पता चला की हवा महल यहाँ से करीब २ किलोमीटर था तो मैं नक्शा देखते हुए पैदल ही निकल पड़ा |
थोडा दूर चलने पर ही पिंक सिटी (गुलाबी नगर ), शुरू हो गया | इसे पुराना जयपुर भी कह सकते हैं | बाकी तो बाद में बसा हुआ शहर है |

गुलाबी नगर (पिंक सिटी ):
पिंक सिटी को भारत का पहला सुनियोजित तरीके से बसाया गया शहर कहा जा सकता है | महाराज जय सिंह ने इस शहर की पूरी योजना प्राचीन हिन्दू शिल्प शास्त्र के अनुसार बनाई थी और निर्माण की देख रेख का काम भी स्वयं ही किया था | बंगाल के विद्याधर भट्टाचार्य को इस शहर का प्रमुख वास्तुकार नियुक्त किया गया था |
नगर को ९ भागों में विभाजित किया गया था और मध्य में शिव का मंदिर बनाया गया | नगर का गुलाबी रंग महाराज जय सिंह की योजना में नही था | सन १८६३ में प्रिन्स अलबर्ट के स्वागत के लिए नगर को गुलाबी रंग में रंग दिया गया और यह गुलाबी नगर कहलाने लगा |
गुलाबी नगर में जाने के लिए एक बड़े से द्वार "चांदपोल गेट " से प्रवेश करना पड़ता है और इसके भीतर सब गुलाबी रंग में ही नजर आता है | यहाँ से जयपुर के मुख्य बाज़ार प्रारंभ हो जाते हैं | और बीच बीच में बहुत से मंदिर भी बने हुए हैं | मैं नक्शा देखते हुए धीरे धीरे इन बाज़ारों से होते हुए आगे बढ़ता रहा | बीच में गर्मी से बचने के लिए स्वादिस्ट गन्ने के रस का आनंद लिया और आगे बढ़ चला | सबसे पहले चांदपोल बाज़ार है और उसके बाद त्रिपोलिया बाज़ार | इसके साथ ही कुछ अन्य बाज़ार जैसे खजाने वालों का रास्ता , चौड़ा रास्ता आदि मुख्य मार्ग से भीतर जाने पर मिलते हैं | त्रिपोलिया बाज़ार के आगे जाने पर अंत में हवा महल है |

हवा महल :

हवा महल का निर्माण १७९९ में सवाई प्रताप सिंह ने करवाया था | राजघराने की महिलाओं को नगर की गतिविधियों का पता चले इसलिए हवा महल बनवाया गया था |हवा महल में १५२ खिड़कियाँ हैं जहाँ से मुख्य चौराहे को देखा जा सकता है |
मैं तो पैदल पैदल ही जयपुर घूमने निकल पड़ा था इसलिए समय का भी अंदाज़ा नही रहा | करीब ४:३० पर मैं हवा महल में और ४:३० पर ही सारी एतिहासिक इमारते पर्यटकों के लिए बंद हो जाती हैं | अब वापस लौटने के अलावा कोई रास्ता नही था | वापसी में भी मैं पैदल ही इन बाज़ारों से होता हुआ होटल पहुच गया |

होटल में कुछ देर आराम करने के बाद अब रात्रि के भोजन का समय हो चला था | राजस्थान में हों और राजस्थानी थाली का आनंद ना उठाया जाये ये कैसे हो सकता है | बस स्टेशन के थोडा आगे चलने पर एक छोटा सा थोडा अच्छा होटल दिखा तो बैठ गया दाल बाटी चूरमा खाने | दाल बाटी यहाँ का सीधा साधा भोजन है और इस पे देशी घी | वाह क्या स्वाद था | इससे पहले मुझे दाल बाटी खाने का अवसर उदयपुर में मिला था | यहाँ स्वाद उतना अच्छा तो नही था परन्तु राजस्थान की खुशबू देशी घी में भरपूर थी | अब भोजन के बाद होटल में वापस आ गया और सो गया |

दूसरा दिन : अजमेर और पुष्कर

पिछली रात में ही अजमेर के लिए बस का पता कर लिया था ताकि सुबह सुबह निकल सकूँ और दोपहर तक वापस जयपुर पहुच जाऊँ | सुबह ५ बजे निकलने का विचार था परन्तु नींद तो ३ बजे ही खुल गई | सुबह ४ बजे में सिन्धी कैंप बस अड्डे में था | यहाँ से ५ बजे पहली बस थी अजमेर के लिए | बस पकड़ कर मैं ७:३० पर अजमेर पहुच गया |

अजमेर :

अजमेर अरावली की पहाड़ियों के बीच बसा हुआ एक छोटा सा शहर है | अजमेर कभी पृथ्वीराज चौहान की राजधानी हुआ करती थी और इसका नाम अजयमेरु था | इसके बाद अजमेर का नियंत्रण , मेवाड़ और मारवाड़ के राजाओं के बीच आता जाता रहा और सन १५३२ में इसे मारवाड़ के राजा ने जीत लिया | सन १५५९ में अजमेर मुग़ल वंश के नियंत्रण में चला गया जिसे १७७० में मराठा वंश ने अपने नियंत्रण में ले लिया | सन १८१८ में मराठाओं ने इसे ईस्ट इंडिया कंपनी को ५०,००० रूपये में बेच दिया |
अजमेर में तारागढ़ पहाडी के उपर बना हुआ तारागढ़ किला भी है | इसे एशिया का पहला पहाडी किला (हिल फोर्ट ) माना जाता है |


अजमेर प्रसिद्द सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के लिए जाना जाता है | यह दरगाह तारागढ़ पहाडी के ठीक नीचे है | यहाँ का बड़ा सा द्वार हैदराबाद के निजाम द्वारा बनवाया गया था |
बस अड्डे से ऑटो पकड़ कर आधे घंटे में अजमेर शरीफ दरगाह पर पहुच गया | दरगाह में ज्यादा भीड़ नही नही थी , चादर और फूल ले कर अन्दर गया | करीबन आधे घंटे में दरगाह पर चादर चढाने के बाद में वापस बाहर आ गया |
अब यहाँ से पुष्कर जाना था | बाहर निकल कर पता चला की पुष्कर के लिए प्राइवेट बस चलती हैं जो कुछ दूर जाने पर मिलेंगी | करीबन ८:३० पर में बस स्टैंड पर पहुच गया |
यहाँ कुछ २-३ मिनी बस खड़ी थी और उनकी हालत तो यकीन मानिये ऐसी थी मानो आखिर बार चल रही हों | सीट नही मिली और मैं बस की छत से ज्यादा ऊँचा हो गया था | तो मैं चालक के पास में ही नीचे बैठ गया | अब में बाहर के दृश्य भी देख सकता था | बस में बहुत सारी राजस्थानी महिलाएं बैठी हुई थी और वो पूरे रास्ते कुछ लोक गीत गाती रही | मैं समझ तो नही पाया परन्तु पूरे रास्ते इन मधुर गीतों का आनंद लेता रहा | अजमेर से पुष्कर ज्यादा दूर नही है और करीबन ४० मिनट में वहां पहुच गया |

पुष्कर :

पुष्कर प्रसिद्द हिन्दू तीर्थ स्थान है | इसे तीर्थ राज भी कहा जाता है | यहाँ प्रवेश करते ही पहाड़ो के बीच मंदिर ही मंदिर दिखाई देते हैं | अधिकतर मंदिर मुग़ल काल में तोड़ दिए गये थे जो बाद में नए बनाये गये | यहाँ दुनिया का सबसे बड़ा ब्रह्मा मंदिर है|

पुष्कर झील के किनारे ५२ घाट हैं और अनेक मंदिर बने हुए हैं | आजकल गर्मी में अक्सर यह झील सूख जाती है | पुष्कर में आजकल अनेक विदेशी पर्यटकों का जमावड़ा रहता है |

पुष्कर बस स्टैंड पर पहुचते ही मैं सीधे पुष्कर झील की तरफ चल पड़ा | करीबन आधा किलोमीटर चलने के बाद मैं एक घाट पर पहुच गया | झील का पानी तो लगभग सूख गया था परन्तु किनारों पर पानी के छोटे पक्के तालाब बने हुए हैं | यहाँ कुछ देर बैठा रहा और झील के पानी में हाथ मुह धो कर मैं अब ब्रह्मा मंदिर की तरफ चल पड़ा | मेरे पास ज्यादा समय नही था इसलिए और कुछ देख नही पाया | ब्रह्मा मंदिर में दर्शन किये और वापस बस स्टैंड पर आ गया |

यहाँ से अजमेर के लिए राजस्थान परिवहन निगम की बस मिल गई जिसने आधे घंटे में अजमेर पंहुचा दिया | यहाँ पहुचते ही जयपुर के लिए बस मिल गयी और मैं २ बजे वापस जयपुर पहुच चुका था |
चूँकि पिछले दिन मैं बाज़ारों में ही घूमता रह गया था इसलिए आज सिटी पेलेस और बाकी जगहें घूमनी थी | थोड़ी देर होटल में रुका और खाना खाने के बाद मैं सिटी पेलेस की तरफ चल पड़ा |

सिटी पैलेस :

यह जयपुर के ह्रदय में स्थित है और पुराने गुलाबी नगर के ७वें हिस्से में फैला हुआ है | इसका निर्माण १७२९-१७३२ के बीच सवाई जय सिंह ने करवाया था और बाकी हिस्से बाद में अन्य महाराजाओं के काल में बने | यह राजपूत और मुग़ल स्थापत्य कला के सम्मिश्रण का नायब नमूना है | इन दिनों सिटी पैलेस के बहुत से हिस्से पर्यटकों के लिए खोल दिए गये हैं जबकि चन्द्र महल में अब अब भी राजाओं के वंशज रहते हैं |

यहाँ प्रवेश करने के लिए ४० रूपये का शुल्क है और कैमरा ले जाने के लिए ५० रूपये अतिरिक्त देने पड़े | पैलेस के भीतर प्रवेश करते ही अनेक द्वार हैं |मुख्य द्वार पर दो विशाल संगमरमर के हाथी बने हुए हैं |

इसके पास ही मुबारक महल है जिसमे मेहमानों को रुकवाया जाता है | आजकल इसमें संग्रहालय है जिसमे राजाओं के समय की अनेक चीज़ें रखी गयी हैं | संग्रहालय के भीतर फोटोग्राफी मना है |

इस संग्रहालय में मुझे एक चीज़ बड़ी आकर्षक लगी | कुछ राजा पोलो खेलने के शौक़ीन हुआ करते थे | रात में अँधेरे में पोलो खेलने के लिए एक विशेष प्रकार की गेंद बनायीं गई थी | धातु की बनी इस गेंद के अन्दर मध्य में मोमबत्ती रखने की जगह ऐसे बनी हुई है कि गेंद कितनी भी तेज घूमे पर यह मोमबत्ती सीधी ही रहती थी और इस गेंद को देखना आसान हो जाता था |

इसके आगे बढ़ने पर दीवान ए खास और दीवान ए आम हैं |

 यहाँ से भीतर जाने पर भव्य हॉल है जिसमे महाराज का दरबार लगता था |


इसके आगे जाने पर बहुत सारी बग्घियाँ रखी हुई हैं और दूसरी तरफ तोप और बंदूकें हैं |


बायीं तरफ चन्द्र महल है | यह भव्य महल ७ मंजिला है और स्थापत्य कला का सुन्दर नमूना है | यहाँ पर दरवाजों के उपर बहुत सुन्दर कला कृतियाँ संगमरमर पर उकेरी गई हैं |
इसके पास ही २ विशालकाय चाँदी के कलश रखे हुए हैं |

यह कलश गिनीज बुक में चाँदी के सबसे बड़े बर्तन के रूप में दर्ज हैं | जयपुर के एक राजा एक बार यूरोप यात्रा पर गये तो अपनी धार्मिक प्रवित्ति के कारण इन कलशों में गंगा जल साथ ले कर गये थे |

यहाँ से थोडा आगे जाने पर राजस्थानी पारंपरिक शिल्प और वस्त्रों कि दुकाने भी हैं | चूँकि मेरा जयपुर से अपने घर जाने का विचार बन गया था तो मैंने सोचा कि कुछ खरीददारी कर ली जाये | एक दुकान में जा कर कुछ कपडे खरीदे और अब बाहर निकला तो समय ज्यादा हो चुका था | अब मेरे पास सामान भी था और गर्मी कि वजह से ज्यादा घूमने का मन नही था |
बाकी जगहें और आमेड़ का किला अगले दिन देखने का विचार बना कर मैं वापस होटल में आ गया |

तीसरा दिन :

आज सुबह सुबह आमेड़ जाने का विचार था परन्तु इतनी तेज गर्मी में दो दिन इतना घूम चुका था कि थकान सी होने लगी थी | आज मैंने आराम करने का निश्चय किया | करीब २ बजे संतोष भी जयपुर पहुचने वाला था और फिर तुरंत पिलानी निकलना था |

करीब ३ बजे संतोष पंहुचा और खाना खाने के बाद हम दोनों पिलानी के लिए बस में बैठ गये | यहाँ से पिलानी तक रास्ता रेगिस्तानी था और पूरे रस्ते बहुत गर्मी थी | बीच बीच में धूल भरी आंधियां भी चल रही थी | रात में ११ बजे पिलानी पहुचे और खाना खा कर गेस्ट हाउस में चले गये | अगले दिन सुबह बिट्स पिलानी में अपने काम निपटाने के बाद अब दोनों को वापस जाना था | यहाँ तो इतनी गर्मी थी कि कुछ देख भी नही पाए | २ बजे करीब सतोष जयपुर के लिए निकल गया और मैंने दिल्ली के लिए बस पकड़ ली |

पिलानी से चम्पावत :

रात में दिल्ली पहुच गया और अगले दिन दिल्ली से अपने घर चम्पावत| यहाँ दो दिन आराम करने का विचार था |
 इन दिनों यहाँ का मौसम बहुत सुहावना रहता है और अच्छे मौसम में २ दिन घर पर खाते और सोते ही बीत गये | इस मौसम में यहाँ पंहुचा था तो यहाँ के स्वादिष्ट मौसमी फल "काफल " खाने का अवसर भी मिल गया |


 २ दिन बाद चम्पावत से दिल्ली की तरफ वापसी की और अगले दिन दिल्ली से वापस मुंबई पहुच गया | एक और छोटी परन्तु लम्बी और थका देने वाली यात्रा की सुखद समाप्ति हुई |
बहुत जल्द अपने अगले वृत्तान्त के साथ फिर से हाजिर होता हूँ ! तब तक अलविदा....!