गुरुवार, 17 सितंबर 2009

भीमाशंकर ट्रेक

ढाक बाहिरी ट्रेक के बाद, कुछ सप्ताहांत तक ऐसे काम पड़ गए कि अगले ट्रेक के लिए जाने में कुछ विलम्ब सा होने लगा और उसके बाद गर्मी के मौसम ने तो विराम ही लगा दिया ट्रेक पे | सह्याद्रि में गर्मी के मौसम में ट्रेक करना मतलब मौत से जूझना ही समझिये | एक तो पानी का अकाल और सूखी चट्टानें जो धूप से तपने लगती हैं |

योजना :
एक बार जुलाई का महीना आते ही हम सब के अन्दर का ट्रेकर फिर से जागने लगा | परन्तु इस साल के मानसून से तो आप सब वाकिफ ही हैं | हर सप्ताहांत पर मौसम विभाग की भविष्यवाणी आती की मानसून आएगा पर फिर हताशा ही हाथ लगती | कुछ हफ्तों तक रुकने के बाद आखिर हमने सोचा कि अब तो कुछ भी हो जाना ही है | यह सोच कर कि कोई बात नहीं मौसम तो मानसून का है और हो सकता है जंगलों में थोडा बहुत पानी तो बरस ही गया होगा हमने अगला ट्रेक भीमाशंकर का करने की योजना बना डाली | इस बार जाने वालों में हम तीन ही लोग थे , मैं सौरभ और मयंक | लेकिन इस ट्रेक में पानी की कमी ने इस ट्रेक को यादगार बना दिया | अब तक के सबसे थका देने वाले इस ट्रेक के बारे में अब भी हम लोग सोचते हैं तो वही दृश्य याद आता है |

भीमाशंकर :

भीमाशंकर पुणे जिले में स्थित एक ज्योतिर्लिंग है | ३२५० फीट की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर ट्रेकिंग के शौकीन लोगों को भी आकर्षित करता है| ज्योतिर्लिंग के आस पास और भी कुछ जगहें देखने लायक हैं जिनमें से नागफनी बहुत प्रसिद्द है | मुंबई और पुणे से राज्य परिवहन की बसें भी यहाँ तक जाती हैं| लेकिन जंगलों से जाने वाले रास्ते पर ट्रेकिंग का मज़ा ही कुछ और है |

मुंबई से कर्जत :
मुंबई से भीमाशंकर जाने के लिए कर्जत होकर जाना पड़ता है | इस बार फिर से हमने छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से ००:३८ की आखिरी लोकल पकड़ी जो कि ३.१५ के करीब कर्जत पहुंचती है | कर्जत पहुँच कर चाय पीने के बाद हम तुंरत कर्जत बस स्टेशन कि तरफ चल दिए | बस स्टेशन पास ही है और पैदल चल कर १०-१५ मिनट में आराम से पहुँच सकते हैं | कर्जत बस स्टेशन पर इस समय कोई नहीं था क्योंकि अभी बारिश न होने की वजह से लोगों ने ट्रेक पे जाना प्रारंभ नहीं किया था | जाने से पहले इन्टरनेट पर जानकारी मिली थी की यहाँ से खान्डस गाँव , जहाँ से ट्रेक शुरू होता है के लिए ६ बजे पहली बस निकलती है | लेकिन कुछ देर बाद पता चला कि यह बस सेवा अब बंद हो चुकी है और हमको वहां तक के लिए कोई बस नहीं मिलेगी | तो फिर कुछ समय हमने बस स्टेशन में एक नींद पूरी कर ली |

कर्जत से खान्डस :
बस स्टेशन के प्रभारी ने बताया कि दूसरा तरीका है कि कर्जत से मुरबाड की बस निकलती है सुबह ७ बजे, जिसमें कशेडे (मराठी : कशेळे ) गाँव तक जा कर वहां से फिर खान्डस के लिए टमटम ( ६ सीट वाला टेम्पो) पकडा जा सकता है | यह बस पकड़ कर करीब आधे घंटे में हम कशेडे पहुँच गए | वहां पर एक एक कप चाय और गरमा गरम कांदा भजिया ( प्याज़ की पकोडियां ) का आनंद लिया | तभी यहाँ एक मारुती वैन मिल गई जो की १०० रूपये में हमको खान्डस ले जाने के लिए तैयार हो गया| करीब ८ बजे हम लोग खान्डस गाँव पहुँच गए |

ट्रेक का प्रारंभ :

वैसे पानी की कमी की आशंका तो थी ही इसलिए अपने हिसाब से ५ लीटर पानी ले कर ही चले थे परन्तु यहाँ से फिर २ बोतल पानी और रख लिया | और गाँव में कुछ पूछताछ करने के उपरांत हम लोग आगे बढ़ चले | खान्डस गाँव से कुछ दूर तक छोटी सी सड़क है जहाँ एक छोटा सा गाँव फिर पड़ता है | यहाँ पर एक छोटी सी बरसाती नदी पड़ती है
जिसमें कुछ रुका हुआ पानी था | हमारी एक बोतल खाली हो चुकी थी सो यहाँ फिर गंदे रुके हुए पानी से भर ली | सोचा कहीं न कहीं काम ही आ जायेगा | करीब ८.३० हो रहा था और धूप चढ़ने लगी थी | यहाँ पर भीमाशंकर जाने के लिए रास्ता २ रास्तों में बंट जाता है , गणपति घाट और सीढ़ी घाट ,
गणपति घाट लम्बा और आसन रास्ता है जबकि सीढ़ी घाट से बहुत दुर्गम चढाई है परन्तु यह छोटा रास्ता है | सीढ़ी घाट के रास्ते में २-३ जगहों पर चट्टानों को पार करने के लिए लोहे की संकरी सीढियाँ लगी हुई हैं| भीमाशंकर से पहले एक मैदान पड़ता है और यहाँ पर ये दोनों रास्ते मिल जाते हैं |
हमेशा कठिन की चाह की वजह से हमने सीढ़ी घाट का रास्ता चुना और गाँव में पूछ कर उस तरफ चल दिए | गाँव वालों ने साथ में गाइड बनकर चलने का प्रस्ताव रखा परन्तु फिर कुछ साहसिक करने की इच्छा थी सो मना कर दिया | खैर इस गाँव से आगे बढे और कुछ दूर तक चढ़ते रहने के बाद एक थोडा समतल जगह मिली | यहाँ पर थोडा विराम लिया और ट्रेक के कपडे निकाल लिए गए | चूँकि यह ट्रेक थोडा कठिन और लम्बा था इसलिए इस जगह से पूरे जोश के साथ ट्रेक प्रारंभ करने का मन बनाया गया और चल पड़े | सामने घना जंगल शुरू होता था और यहीं कहीं आगे चलकर चट्टानों पर थोडी मुश्किल चढाई भी होनी थी |

कदम सहमे :
अभी मुश्किल से १० कदम ही चले होंगे कि अचानक कुछ आवाजें सुनाई दी | ये कुछ जानवरों की आवाजें थी | हमने पढ़ा था की इस जंगल में तेंदुओं का भी थोडा भय है तो तुंरत सहम जाना स्वाभाविक ही था | इस पर मयंक की राय कि यह बंदरो कि आवाज़ नहीं है और फिर सौरभ बोला कि उसने एक जगह पढ़ा था कि एक ट्रेकिंग ग्रुप पर हमला भी हो चुका है तेंदुओं का | बस फिर क्या था एक बार तो सबके होश उड़ गए कि आगे बढा जाये कि नहीं | अब सौरभ बोला कि क्यों न नीचे गाँव तक वापस चल कर किसी गाइड को साथ ले लिया जाय | परन्तु वापस नीचे जाना और और फिर उपर आना, समय तो व्यर्थ होता ही साथ ही इतना और चढ़ना पड़ता | फिर मयंक ने थोडा उत्साह बढाया और हम आगे बढ़ चले | थोडा आगे चलने पर एक सूखा हुआ बरसाती नाला मिला और इसको पार करते ही सबकी हंसी ऐसी छूटी कि पूछिए मत | दरअसल जो आवाजे सुन के हमारे होश फाख्ता हो गए थे वो कुछ मवेशी जंगल में घास चर रहे थे | सामने एक गायों का झुंड देख कर तसल्ली हुई और फिर सब कोसने लगे अपने आप को कि क्या क्या सोच लिया और इतना वक़्त भी बेकार किया | अब हंसते खिलखिलाते आगे बढ़ चले |

थोडा आगे चले ही होंगे कि झाडियों में उलझने लगे | यहाँ जंगल थोडा घना था और अब रास्ते का कोई अंदाजा नहीं | कुछ दूर झाडियों में रास्ते बनाने कि कोशिश भी की कि शायद कहीं दिख जाये परन्तु कुछ नहीं दिखा | अभी तो शुरुवात ही थी और रास्ता ही भटक गए | थोडी चिंता कि बात थी पर इधर उधर देखते रहे कि किधर जाना है | तभी कुछ
महिलाओं की आवाजें सुनाई दी | थोडा वापस आ कर देखने की कोशिश की तो पता चला कि वो दूसरी तरफ जा रहे थे | मयंक मुझे बोला कि मैं दौड़ के जाऊँ और पता करूँ | मैं उनकी तरफ दौड़ने लगा साथ ही आवाज़ भी दे रहा था | परन्तु वो गाँव के लोगों कि रफ़्तार कहीं ज्यादा थी | आखिर में, मैं उनसे थोडा सा दूर था तो चिल्लाया " मौशी ! भीमाशंकर कड़े वाटा कुठे आहे ?" (थोडी बहुत मराठी सीख गया हूँ इतने दिन गाँव में ट्रेक कर कर के )| परन्तु इसके बाद जो उन्होंने बोला तो वो मुझे समझ नहीं आया लेकिन ये समझा कि हाँ यही है | तब तक मयंक और सौरभ भी आ चुके थे | फिर थोडा देर उन लोगों के पीछे पीछे चलने के बाद वो लोग रुके तो एक लड़के से पूछा| उसने बताया कि ये सीढ़ी घाट वाला रास्ता नहीं है और पहले हम लोग सही दिशा में जा रहे थे | बस अब फिर से सबके सीढ़ी वाला खतरनाक रास्ता देखने के सपने टूट गए क्योंकि हम बहुत आगे आ चुके थे | यह रास्ता एक तीसरा रास्ता था जो सीढ़ी घाट से थोडा आसान था और एक बड़े से बरसाती नाले पर ही चलते जाना था | चूँकि अभी बरसात नहीं थी तो आप इस पर चल सकते थे | उन लोगों ने बताया कि उनके पास सामान होने कि वजह से वो सीढ़ी घाट से नहीं जा सकते | खैर अब हमने यही रास्ता पकड़ चलने का निश्चय किया और थोडा विराम लिया | अब तक वो लोग जा चुके थे और आगे हमें अकेले ही जाना था |

दोपहर का भोजन :
इन पथरीली चट्टानों में चलते चलते उपर चढ़ते रहे | रास्ता खोजना आसान था क्योकि पानी के रास्ते को देखते हुए ही चलना था | आखिर करीब ११ बजे हम लोग एक मैदान पर पहुँच गए | जैसा कि पढ़ा था उस मैदान पर गणपति घाट और सीढ़ी घाट वाले रास्ते मिल जाते हैं इसलिए अब हम सही रास्ता खोजने लगे | परन्तु ऐसा तो कुछ भी नहीं दिखा | फिर भी उपर देखा तो बहुत दूर एक चोटी दिखाई दी जो अनुमान लगाया कि भीमाशंकर ही होगा | अगर वहां तक जाना था तो वो वाकई बहुत ही उपर था | यहाँ पर एक जगह खोज कर आग जलाई गई |
बर्तन निकाल कर मैगी बनाई और खा कर सोचा कि कुछ देर छाँव में आराम कर लिया जाये | ऐसी धूप में चलते चलते अब पानी भी कुछ २ लीटर करीब बचा था | अचानक सौरभ जहाँ लेटा था वहां बिच्छू दिखाई दिया | वो झट से उठा तो एक दो और बिच्छू नज़र आ गए | अब तो हमारे आराम करने का इरादा भी बदल गया | उठे और उपर देखते हुए चल पड़े कि पता नहीं कितना और चलना है | अब आगे रास्ता दिख रहा था सो चलते रहे | थोडा दूर चल कर एक छप्पर दिखा जो शायद चाय की दुकान हुआ करती थी और खांड्गे जी ने भी ऐसा बताया था | इसके आगे कुछ दूर तक रास्ता आसान था और जंगलों से होकर जाता था | दरअसल यह जंगल भीमाशंकर वन्यजीव विहार के अन्दर आता है |
यह रास्ता भीमाशंकर पहाडी के दूसरी और ले कर जाता है | अब हम कुछ समतल से रास्ते पर चलते जा रहे थे और बीच बीच में उपर देखते तो वही शिखर नज़र आता | अब तक कोई मिला भी नहीं था की कुछ पूछ लिया जाय |

कठिन चढाई :
करीब १ घंटा चलने के बाद कुछ छप्पर से दिखाई दिए | जैसा की हम लोग सोच रहे थे इसके बाद एक कठिन चढाई होगी अब वो शुरू हो गई थी | थोडा चलने के बाद एक जगह एक बोर्ड दिखाई दिया | कोई मंदिर और सन्यासी का आश्रम था एक तरफ और एक रास्ता उपर की तरफ | अब तक पानी भी एक ही बोतल बचा था | कुछ देर सोचते रहे की किस तरफ जाएँ | हो सकता था की ये आश्रम पास में हो और पानी मिल जाये या फिर पता नहीं कहीं और न निकल जाएँ | फिर फैसला लिया की उपर ही चला जाये | अब असली चढाई शुरू हुई जो की तिलमिलाती धूप में और भी कठिन हो गई थी | थोडा चलते और फिर आराम, फिर चलना | अब जंगल भी ख़त्म हो चुका था | तब तक कुछ लोग आते दिखाई दिए | पता चला कि १ घंटे करीब और चलना है | लेकिन गाँव वालों से अपनी तुलना कहाँ | हम १:३० घंटा सोच कर चढ़ने लगे | आधे घंटे बाद फिर कुछ लोग दिखे | उन्होंने फिर बोला कि अभी एक घंटा है | अब तो हम समझ चुके थे कि कितना भी वक़्त लग सकता है | थकान से हालत एकदम ख़राब हो चुकी थी | यहाँ पर कुछ देर बैठे और पानी निकला तो बस आधा लीटर ही बचा था | यहाँ से नीचे एक छोटा सा गाँव भी दिखने लगा जो हम छोड़ आये थे | एक बार फिर गलत फैसला लिया था लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था | हमारी हालत का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि हम लोगों ने एक बार ये भी सोच लिया कि इस पानी के ३ हिस्से कर लेते हैं और अपना अपना रख लें | लेकिन हंसी मजाक में सोचा कि देखा जायेगा और वहीँ पर वो पानी ख़त्म कर दिया गया |

सीधी चट्टान और संकरा रास्ता :
कुछ देर धीरे धीरे चढ़ते रहने के बाद फिर एक और जगह ऐसी आई कि वहां बस ६०-७० डिग्री की चट्टान पर तिरछा चलना है और नीचे खाई | यहाँ पर हमको एक आदमी अकेला भीमाशंकर जाता हुआ मिला जो की शायद अपने किन्ही पापों का प्रायश्चित करने जा रहा था | वो भी थक कर चूर हो चुका था अब तक | इस रास्ते पर एक बार सौरभ का पैर भी डगमगा गया | अब तो उसके लिए इसे पार करना और भी मुश्किल हो गया था | धीरे धीरे इसे पार करने के बाद थोडा और चल कर फिर जंगल शुरू हुआ तो राहत की सांस ली | लेकिन हमको एक घंटा हो चुका था और अब तक कोई सुराग नहीं दिख रहा था भीमाशंकर का | अब तो पानी भी नहीं था | अब थोडी दूर तक चढाई जंगल में थी परन्तु हम इतना थक चुके थे कि अब मुश्किल होता जा रहा था |

जंगली फल खाने का मज़ा :
कुछ दूर और चढ़े तो एक जगह बहुत सारे जंगली फल पड़े दिखाई दिए | कुछ नींबू के जैसे ही थे | इस पर मयंक ने बोला कि ये बंदरों के खाए हुए हैं और अगर बन्दर ने खाए हैं तो जहरीले नहीं होंगे और हम भी खा सकते हैं | भूख और प्यास दोनों ही हावी हो चुकी थी हम पर | मयंक ने जरा सा चखा और बोला कि ये मीठा है | इतना सुनना था और सौरभ (जैसा कि खाने के लिए वो मशहूर है ) ने उठाया और गटक गया पूरा | इसके बाद उसका चेहरा देखने लायक था | एक बार मुह में जाने के बाद वो इतना कडुआ था कि मत पूछिए | अब वो डर भी रहा था कि कहीं जहरीला न हो | लेकिन भगवान के शुक्र से वो बच ही गया |
अब तो चलते चलते करीब २ बजने वाला था और भीमाशंकर का अब तक कोई निशान नहीं दिखा था | थोडा और चल कर एक जगह आराम करने के लिए बैठे कि अचानक मयंक को याद आया कि एक बोतल पानी है | वो गन्दा पानी जो हमने गाँव के पास भरा था | दरअसल इस पानी में कपडे धोते हुए लोग भी दिखे थे | लेकिन मयंक की हालत ऐसी थी कि वो ये पानी भी पी गया | अब तो समझ ही नहीं आ रहा था कि कैसे चल पाएंगे | थोडा दूर और यही कठिन चढाई चड़ने के बाद आखिर कर अब कुछ दिखने लगा था | हम भीमाशंकर के पास थे और अब समतल रास्ते पर ही चलते जाना था | आखिरकार करीब २.३० पर हम भीमाशंकर पहुँच गए |

यहाँ पर कुछ बोर्ड दिखाई दिए नागफनी , बॉम्बे पॉइंट , हनुमान तालाब आदि | सबसे पहले हमने एक छोटे से ढाबे में बैठ कर पानी पिया फिर स्वादिस्ट मिस्सल पाव से पेट भरा और अब थोड़े आराम के बाद सोचा कि आज बाकी जगहे घूम लेते हैं और कल सुबह मंदिर के दर्शन कर वापसी की जायेगी|

नागफनी पॉइंट :
भीमाशंकर से थोडी ही दूर पर है नागफनी पॉइंट | विशालकाय पहाड़ पे चढ़ने के बाद दूसरी तरफ अचानक बहुत गहरी खाई| और यहाँ पहुँचते ही सारी थकान मानो गायब हो गई | ऐसी तो हम सब ने कल्पना भी नहीं की थी | यह वही जगह थी जिसे देख कर हमने सोचा था की यहाँ कैसे चढ़ पाएंगे लेकिन हम यहाँ पहुच चुके थे |
थोडी दूर इस शिखर पर घूमते रहे और बीच बीच में नीचे झांक कर देखते कि कहाँ से आये हैं तो मज़ा आ रहा था | अब अँधेरा होने लगा था और हमको वापस जाना था | रात में रुकने का कुछ प्रबंध अब तक नहीं हुआ था | वापस जा कर एक जगह 3०० रूपये में एक कमरा मिल गया | नहा धो कर अब समय था एक नींद लेने का | १० बजे करीब मयंक की आँख खुली तो उसने सबको उठाया खाने के लिए | और शायद नींद में ही मैंने जो खाना खाया उसका स्वाद अब तक मुझे याद है | कई सालों में सबसे अच्छा खाना था वो इतनी थकान के बाद |

ज्योतिर्लिंग के दर्शन :
सुबह करीब ६ बजे उठ कर नहा धो कर अब वक़्त था मंदिर में दर्शन का | भीड़ नहीं थी ज्यादा और जल्दी ही दर्शन हो गए | लेकिन एक बात जो मुझे मंदिरों में हमेशा बुरी लगती है वो है पैसे की माया | यहाँ भी यही हुआ | कुछ लोग पुजारी को ज्यादा दक्षिणा दे कर वहां डंटे हुए थे और बाकी लोग दर्शन के लिए तरस रहे थे | हम भी दूर से दर्शन कर के बाहर आ गए |
बाहर निकल कर कुछ फोटोग्राफी की | तभी सौरभ को मंदिर के बाहर एक सुन्दर सी कन्या के भी दर्शन हो गए जो वाकई बहुत खूबसूरत थी | बाद में पता चला की वो कुछ बच्चो की बुआ जी हैं | अब बाहर आ कर चाय पी और बुआ जी फिर वहां भी दिख पड़ी | बुआ जी की यादों को समेट कर अब वापस चलने का वक़्त हो चला था |

भीमाशंकर से वापसी :
करीब ८.३० बज रहा था | चाय और नाश्ते के बाद सौरभ ने बोला की वापस उस रास्ते से जाना खतरनाक है | सौरभ का पैर एक बार फिसल चुका था तो अब उस जगह का भय होना स्वाभाविक था | मयंक और मैं भी यही सोच रहे थे | पूछताछ की तो पता चला की एक और रास्ता है जो दूसरी तरफ से जाता है और थोडा आसान है | जानकारी के लिए बता दूँ कि यह रास्ता भीमाशंकर के बस स्टैंड के ठीक बगल से नीचे उतरता है और करीब १००-२०० मीटर तक थोडी झाडियाँ सी हैं और रास्ता नहीं दिख पता | यहाँ से कुछ दूर तक बहुत ढलान का रास्ता है | सुबह सुबह मौसम अच्छा था और अब तक आराम से ही चल रहे थे | थोडा नीचे उतरने के बाद जंगल आ गया | अब रास्ता और भी अच्छा हो गया था घने जंगलों से हो कर मस्ती में चलते रहे | लेकिन थोडी देर बाद धूप आने लगी थी | और अब जंगल भी खत्म हो रहे थे | आगे का रास्ता थोडा मुश्किल ही हो रहा था | अब यहाँ भी हमे एक बरसाती नाले के साथ साथ नीचे उतरना था जो कहीं कहीं पर बहुत कठिन भी था|

जाना था कहाँ , पहुंचे कहाँ :
धूप चढ़ने लगी थी और अब उतरना भी मुश्किल हो रहा था | अचानक एक जगह मयंक का पैर मुड़ गया | थोडी देर रुके और अब तो धीरे धीरे ही चलना था |
रास्ते में एक समतल जगह मिली | वहां पर थोडा आराम किया और सौरभ भाई ने पेडा खा लिया खूब सारा | अब जंगल ख़त्म हो रहा था और बहुत देर भी हो गई थी चलते चलते | हमें बल्युरी गाँव जाना था और ये रास्ता ख़त्म ही नहीं हो रहा था | तब तक एक आदमी दिखा पूछने पर पता चला कि बल्युरी गाँव १ घंटा और लगेगा | हमको ४ घंटे होने वाले थे चले हुए और अब थक भी चुके थे | थोडा नीचे जाने पर दो रास्ते हो गए | अब समस्या थी कि कहाँ जाना है | एक तरफ एक घर सा दिख रहा था नीचे तो उसी दिशा में चल पड़े लेकिन वहां जा कर देखा कि वो तो छोटा सा झोपडा था और वहां कोई नहीं था | अब आगे का रास्ता समझ नहीं आ रहा था कि किधर जाना है | धूप बहुत तेज़ थी | कुछ देर एक पेड़ के नीचे बैठने के बाद आगे एक दिशा में चल पड़े | यहाँ थोडी दूर पे एक कच्ची सड़क भी मिल गई| कुछ दूर एक दो गाँव वाले मिले तो उन्होंने बताया कि इसी दिशा में आगे जाओ तो गाडी मिलेगी |

वापस मुंबई :
करीब २ किलोमीटर और चलने के बाद हम एक गाँव में थे लेकिन ये बल्युरी नहीं नांदगाँव था | यहाँ पता चला कि यहाँ से भी टमटम मिलेगा कशेडे के लिए | टमटम से कशेडे आ कर दूसरा टमटम पकड़ कर कर्जत और यहाँ से ट्रेन पकड़ कर वापस मुंबई | बांद्रा में मयंक के घर पर पहुँच कर खाना खाया| इस अविस्मरणीय ट्रेक की थकान मिटाकर जल्द ही अगले ट्रेक पे जाने के विचार के साथ यात्रा का अंत हुआ | वास्तव में सह्याद्रि का ये अनुभव भी हमेशा याद रहेगा |

फोटो एल्बम यहाँ देखें ...(सौजन्य : मयंक जोशी )

3 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. यादे ताज़ा हो गयी दोस्त , वो जंगली फल तो मै कभी नहीं भूलूंगा !!!

    जवाब देंहटाएं
  3. भीमाशंकर के बारे में सिर्फ पढ़ा था. आपका ट्रेकिंग सफर तो बड़ा रोमांचकारी लगा. चित्र देखकर अच्छा लगा. आभार.

    जवाब देंहटाएं

पढ़ ही डाला है आपने, तो जरा अपने विचार तो बताते जाइये .....