शनिवार, 5 सितंबर 2009

माथेरन ट्रेक

ऑफिस के रोजमर्रा के काम और कई दिनों से लटके हुए घूमने के विचार को आखिर धरातल पर ले ही आया गया !

अंततः वो दिन आ गया | वैसे घूमने का विचार तो बहुत दिन पुराना था परन्तु वही टालमटोल और आलस !
फिर भी बहुत प्लान बनाये गए और आखिरकार कुछ लोगों ने अपने हथियार डाल दिए | वजह बस इतनी सी थी की हमारे प्लान में सब कुछ पैदल चलने पर ही था | अरे भाई अगर घूमने का मज़ा लेना है , प्रकृति की गोद में ही बैठना है तो फिर गाड़ी घोडे में क्यों ? पैदल चल कर जो लुत्फ़ उठाया जा सकता है वो और कहीं नहीं |

आखिर में हम पांच लोग ( मैं , मयंक , संतोष , सौरभ और अमोल -- सब सहकर्मी ही हैं ) माथेरन के ट्रेक के लिए तैयार थे |

माथेरन
माथेरन मुंबई के पास , रायगढ़ जिले के कर्जत तालुका में एक बहुत ही मनोरम हिल स्टेशन है | इस जगह की खूबसूरती की एक वजह ये भी है की यहाँ गाडियो पर पूर्ण रूप से प्रतिबन्ध है | माथेरन की सीमा के अन्दर आप पैदल
या घोडे या फिर रेलगाडी (अंग्रेजो ने यहाँ के लिए रेलपथ का निर्माण करवाया था जो की नेरल स्टेशन से चलकर माथेरन का पूरा चक्कर लगवाती है |) से ही घूम सकते हैं |


हमारे प्लान के मुताबिक शुक्रवार को ऑफिस के बाद हम सब लोग बान्द्रा में मयंक के घर पर मिले और रात के खाने के बाद दादर स्टेशन के लिए निकल पड़े | दादर स्टेशन से कर्जत जाने वाली आखिरी लोकल ट्रेन पकड़ने का विचार था परन्तु वहां जाने के बाद अम्बरनाथ की लोकल दिखी तो उसी में सवार हो लिए| इस ट्रेन को कल्याण स्टेशन पर छोड़ा और वहां

से फिर वही कर्जत की आखिरी लोकल पकड़नी पड़ी जो कि मुंबई छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से ००:३८ पे चलती है | थोडा समय कल्याण स्टेशन में वड़ा पाव और चाय का आनंद लेने के बाद ट्रेन पकड़ सुबह ३.३० के करीब नेरल स्टेशन पहुँच गए |

नेरल से माथेरान ..
नेरल स्टेशन मुंबई के बाहर एक छोटा सा स्टेशन है और यहाँ इस समय कुछ माथेरन जाने वाले लोगों के अलावा कोई भी नहीं था | मयंक और मेरी चाय की तलब थोडी ज्यादा है तो हम बाहर की तरफ चाय की खोज में निकल पड़े | चाय का कोई निशान तक न मिलता देख हमने आगे बढ़ने की ही सोची| वहां पर कुछ टैक्सी वाले माथेरन जाने के लिए तैयार दिखे परन्तु हमारा प्लान तो ट्रेक करने का था सो आगे बढ़ना ही उचित समझा | रस्ते की कुछ खास जानकारी न होने के बावजूद भी अंदाजे से एक चौराहे पे पहुँच गए जहाँ से एक सड़क माथेरन के लिए जाती थी| सुबह के ३.३० बजे थोडा अँधेरा ही था और हमारे पास ले दे के एक नोकिया ११०० की टॉर्च, तो हमने सड़क से ही आगे बढ़ने का विचार बना लिया परन्तु फिर भी शार्टकट खोज खोज के निकल पड़ते थे |

थके मांदे सुबह ५.३० के करीब हम ११ किलोमीटर की पदयात्रा कर माथेरन की सीमा पर पहुँच गए | वहां सुबह की चाय नसीब हुई जो उस समय अमृत से कम नहीं था | २-२ कप चाय का आनंद उठाने के बाद पूछताछ की तो पता चला की "सन राइज पॉइंट " जो की करीब १ किलोमीटर और उपर है बहुत अच्छी जगह है | चलिए अब यहाँ तक आ ही गए थे तो जाना ही था | चल पड़े आगे | वो आगे का रास्ता जंगल से हो कर जाता था तो अँधेरे में टॉर्च की जगमग रौशनी के सहारे बढ़ते रहे | परन्तु एक बार उपर पहुँचते ही मानो पूरी थकान गायब |

पैनोरमा पॉइंट (सन राइज पॉइंट ):
ये सबसे पहला पॉइंट है जो की माथेरान की सीमा से ठीक पहले पड़ता है | यहाँ से सह्याद्री श्रंखला का अद्भुत दृश्य दिखता है और सूर्योदय के समय तो निराला ही समां हो जाता है | चूँकि हम सूर्योदय से पहले ही पहुँचने में कामयाब हो गए थे तो सबके चेहरे पे मुस्कराहट झलक रही थी | और वो मनोरम दृश्य देख कर नया जोश हिलोरे लेने लगा था | वहां पर थोडी फोटोग्राफी करने के बाद हम सब एक किनारे पे चट्टान के उपर अपनी जगह पकड़ के सूरज बाबा के उगने का इन्तेज़ार करने लगे | अरे! ये क्या? अचानक सब एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे किसी ने वादा तोड़ दिया हो | आसमान बादलों से ढक चुका था और सूरज उग चुका था :(|

एक बार फिर उदास चेहरे लिए हुए कुछ देर वहीँ आराम कर आगे की यात्रा का मन बनाया गया और फिर शायद ९ बजे सबकी आँख खुली जब बारिश की बूँदें सबके चेहरे पे गिरने लगी | तब जा कर सबने देखा की सब ही लोग चट्टानों पर
सो गए थे | लेकिन ये नींद थकान मिटाने मैं कामयाब रही और फिर नीचे उतरने लगे जहाँ से माथेरन कसबे की सीमा प्रारंभ होती है |

माथेरान क़स्बा :
यहाँ पर आपको माथेरान घुमने के लिए टिकेट लेना पड़ता है | अब याद नहीं पर कुछ १५-२० रूपये का था | सो टिकेट ले कर आगे की यात्रा प्रारंभ की |
माथेरान में घूमने के लिए बहुत सारी जगह हैं | बल्कि यूँ कहिये अनेकानेक पॉइंट्स बना दिए गए हैं | इनमें से सारे तो हमको नहीं भाए परन्तु कुछ जगह बहुत अच्छी हैं | और वो रास्ता जो जंगलो से हो कर जाता है मानसून के बाद तो बहुत ही खूबसूरत बना देता है इस जगह को |
इसके बाद माथेरान कसबे के अन्दर कच्ची सडको पे चलते हुए कई सारे पॉइंट्स आते हैं कुछ प्राकृतिक सुन्दरता के लिए मशहूर और कुछ पुराने भवन और चर्च |
खंडाला पॉइंट से मानसून के समय झरनों का खूबसूरत दृश्य दिखता है |
इन सब का आनंद लेते और कुछ कुछ खाते पीते हम आगे बढ़ते रहे | माथेरान पहाड़ी के उपर बसा हुआ है और कुछ दूर जाने के बाद एक जगह आगे की जगहों के लिए आपको नीचे उतरना पड़ता है | इस जगह से घना जंगल शुरू हो जाता है और अक्सर लोग इसके आगे नहीं जाते | परन्तु नीचे उतरने के बाद एक सुन्दर झील आपकी सारी थकान मिटने के लिए आपका इंतज़ार कर रही होती है |


इस झील के पास पहुँच के थोडा आराम करने का विचार बना और गरमा गरम भुट्टे का आनंद ले कर आगे बढे |

इको पॉइंट:
इसके थोडी दूर पे ही इको पॉइंट है | इस पॉइंट पे जा के सही जगह खोज कर अमोल तो आने जाने वाले लोगों के लिए (जिनके गले से आवाज हल्की निकलती है ) बहुत देर तक इको करता रहा | लेकिन अब चिंता थी वापस लौटने की | और सबसे बड़ा प्रश्न कि क्या फिर से उपर चढ़ना है और उसी रस्ते से वापस जाना है क्युकी हम लोग सुबह से तकरीबन २0 किलो मीटर चल चुके थे | अचानक मयंक के दिमाग में ख्याल आया कि क्यों न कोई जंगलो और गाँव से जाने वाला शोर्ट कट पता किया जाये जो हमे उपर चढ़ने से बचा ले | वहां कुछ गाँव वालों से पूछने पर पता चला कि एक आखिरी पॉइंट है सन सेट पॉइंट और वहां से एक गाँव के लिए रास्ता जाता है | यही एक मात्र दूसरा विकल्प था |
फिर क्या था चल पड़े आखिरी पॉइंट की ओर| लेकिन ये रास्ता सबसे अच्छा था और बिलकुल शांत क्योंकि बहुत कम ही लोग यहाँ तक जा पाते हैं | विशेष कर वो लोग जो की कुछ दिन की छुट्टियाँ बिताने यहाँ आते हैं |

बन्दरों का धावा :
घने जंगल से इस सुनसान रास्ते में सबसे बड़ा खतरा बन्दरों का है जिससे हम लोगों को भी दो चार होना पड़ा | सब मस्ती में चल रहे थे की अचानक संतोष चिल्लाया | मैं ठीक उसके आगे ही था | सबने पलट के देखा की संतोष की पीठ के बैग पर बन्दर बैठा हुआ था | दरअसल वो बन्दर पेड़ से कूद के बैग पे झपटा \ और फिर खेल शुरू हुआ बैग की खींचतान का | मैं और संतोष बैग को खींच रहे हैं और वो बन्दर गुर्रा रहा है और पंजे मार रहा है | और देखते ही देखते बन्दरों का पूरा झुंड आ गया | खैर पत्थर मार मार के किसी तरह बैग पे वापस कब्ज़ा किया और ये लडाई भी जीत ली गई | इसके बाद पूरे रस्ते हाथ मैं पत्थर लिए बन्दरों को डराते भगाते सन सेट पॉइंट पहुँच गए |

सन सेट पॉइंट:
कोहरे की वजह से सूरज का तो कोई सुराग नहीं था परन्तु भूखों को एक सेंडविच वाला दिख गया | फिर एक बार भूख मिटाने के बाद पता चला की वहां से एक रास्ता तो है लेकिन बहुत ही कठिन उतार है पहाड़ का | और नीचे अगर समय पर पहुंचे तो एक बस मिल सकती है गाँव से नहीं तो गाँव में ही रुकना होगा | खैर यहाँ तक आ गए तो आगे भी सही |
तभी मयंक की आवाज़ सुनाई दी "जल्दी आओ| जल्दी आओ! " शायद उसको कोई अच्छी जगह मिल गई थी | और

वाकई वो जगह उस पहाड़ी का अंत था और वहां से सारे नज़ारे बेहद ही खूबसूरत | ठंडी हवा में कुछ देर बैठने के बाद हमने वापस नीचे उतरने का फैसला लिया और चल पड़े |

माथेरान से दुधनी :
यहाँ से "दुधनी " गाँव का रास्ता एक सीधी पहाड़ी पे उतरना है बस | धीरे धीरे गिरते पड़ते एक जगह पहुचे जहाँ से दो रस्ते हो जाते हैं | फिर से एक सवाल की कहाँ जाना है | फिर एक गाँव की दिशा देख उस तरफ चल दिए | अरे लेकिन गाँव में पहुँच के पता चला की ये वो गाँव नहीं है | अब सबके चेहरे देखने लायक थे और एक निराशा का भाव | लेकिन वहां से फिर एक रास्ता पकड़ दुधनी की ओर निकल पड़े |

दुधनी :


एक छोटा सा आदिवासी गाँव है | वहां जा कर पता किया तो आखिरी बस अभी आई नहीं थी ओर इन दिनों कुछ देरी से चल रही थी | सुबह ३ बजे से शाम ७ बजे तक ट्रेक करते करते तकरीबन ३० किलोमीटर चल चुके थे | थकान सबपे हावी हो चुकी थी और गाँव में चाय की दुकान भी नहीं | फिर अमोल की कृपा से एक घर में चाय मांगी और चाय पीते पीते बस भी आ गई | बस अब आगे की यात्रा बस में पनवेल तक , फिर पनवेल से बस मैं ठाणे और फिर वहां से अगली बस मीरा रोड | इस बहुत खूबसूरत यात्रा का अंत स्वादिस्ट भोजन के साथ हुआ और जल्द ही अगले ट्रेक पे जाने का प्लान बनाया गया |

फोटो एल्बम यहाँ देखें

7 टिप्‍पणियां:

  1. sahi hai mitr .... mujhe bhi hindi likhna sikha do yaar... atleast comments to hindi mein kar sakunga .... and tht sun set point was just superb ! phir se yaad taaza ho gayi blog pad ke :)

    जवाब देंहटाएं
  2. उड़न तश्तरी (समीर जी ) ने इ मेल से कहा :
    चलिये, आपके बहाने हमने भी माथेरन की सैर कर ली. अच्छी तस्वीरें और बढ़िया विवरण.

    जवाब देंहटाएं
  3. सच मच बहोत ही यादगार रही थी हमारी ये ट्रेक, निपुण भाई का उत्साह एवं जोश बहोत ही तारीफे काबिल है.
    ये पढ़के पूरा ट्रेक आखो के सामने आ गया.

    आप बहोत आचे लिखते हो.. आपनी भाषा में आपका यह लिखाण देखके सच में बहोत आनंद हुआ.

    जवाब देंहटाएं
  4. नमस्कार,
    जाट देवता की राम राम
    बहुत दिनो बाद कोई अपने जैसा मिला
    आप मध्यभारत ज्यादा, हम उत्तर भारत ज्यादा घूमते है।
    बहुत बढिया भाई

    जवाब देंहटाएं

पढ़ ही डाला है आपने, तो जरा अपने विचार तो बताते जाइये .....