रविवार, 13 सितंबर 2009

ढाक बाहिरी का असफल ट्रेक

विहंगम सह्याद्रि श्रंखला के बारे में हम लोगों को माथेरान जाने से पहले ज्यादा कुछ पता नहीं था | परन्तु माथेरान ट्रेक के बाद सह्याद्रि ने दिल-ओ-दिमाग पर ऐसी छाप छोड़ी कि तुंरत किसी और ट्रेक का प्लान बनने लगा | मयंक और मैं तो सह्याद्रि के सोंदर्य से इतने प्रभावित हो चुके हैं कि बस चले तो हर सप्ताहांत वहीँ गुजार दें | सह्याद्रि के प्रति इस आकर्षण को बढ़ने में हमारे ऑफिस के खांड्गे जी का भी बहुत योगदान है | शायद ही कोई ऐसी जगह हो जहाँ वो न गए हों | और हर ट्रेक से पहले उनकी सलाह हमारे बहुत काम आती है |

योजना :
माथेरान के बाद कुछ ही हफ्तों में इन्टरनेट पर खोजा तो ढाक बाहिरी गुफाओं का पता चला और साथ ही यह भी कि यह ट्रेक थोडा मुश्किल भी है | परन्तु हम सब में जोश एकदम भरपूर था और सबने इसी ट्रेक के लिए हाँ भर दी | चूँकि यह ट्रेक थोडा लम्बा था और बाहिरी गुफा से सूर्यास्त का दृश्य देखने के लिए हमने २ दिन का ट्रेक प्लान किया और रात में जंगल में ही रूककर खाना पकाने का निश्चय किया | परन्तु कुछ ऐसा हुआ कि हमको उसी दिन वापस आना पड़ा और लक्ष्य के पास पहुँच कर भी हमारा ट्रेक पूरा नहीं हो पाया |

ढाक बाहिरी :

रायगड जिले में कर्जत के पूर्व में स्थित है ढाक पहाडी| ढाक पहाडी पर ढाक का किला भी है लेकिन यह शायद बहुत मुश्किल ट्रेक है और इसके बारे में कम ही जानकारी मिल पाती है | ढाक किले के नीचे इसी पहाडी पर बाहिरी गुफाएँ हैं | इन गुफाओं तक पहुंचना थोडा कठिन है | यहाँ बाहिरी का मंदिर होने कि वजह यहाँ गाँव के लोगों का आना जाना भी रहता है | एक दुर्गम चट्टान के बीच में यह गुफा जिसमें कि एक बार में २०० के करीब लोग रुक सकते हैं, अक्सर लोगों को आकर्षित करती है | सबसे आश्चर्यजनक बात है इस गुफा के भीतर पानी का स्रोत जो कि पूरे साल भरा रहता है | हांलांकि यह ट्रेक थोडा साहसिक भी है क्योंकि गुफा तक पहुँचने के लिए २०-२५ फीट आपको रस्सियों के सहारे चढ़ना पड़ता है जिसमें गाँव के लोगों ने एक पेड़ का तना थोड़े खांचे बना कर बाँध दिया है |

मुंबई से कर्जत :
इस बार जाने वालों में कुछ नए लोग भी थे तो कुल मिलाकर हम ५ लोग (मैं , वैदी , संतोष , मयंक और विशाल )

हो गए थे | विशाल को पुणे से आना था तो उससे सुबह २ बजे करीब अम्बरनाथ पे मिलने की बात हुई थी | बाकी हम ४ लोग रात मैं १२:३८ की आखिरी लोकल पकड़ने के लिए छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पहुँच गए| ट्रेन कल्याण के बाद खाली हो चुकी थी और हम लोग सब नींद के आगोश में समा चुके थे की अचानक विशाल के फोन से आँख खुली तो पता चला की वो अम्बरनाथ पहुँच चुका है और हमारा इन्तेज़ार कर रहा है | अगला स्टेशन अम्बरनाथ ही था और अब सारे लोग आ चुके थे | कुछ देर विशाल से बातें करते करते कर्जत भी आ गया | तकरीबन ३:३० बज रहा था और कर्जत में रेलवे पुलिस प्लेटफोर्म पे सोये हुए लोगों को भगा रही थी | हमारा इरादा तो वहीँ पे सोने का ही था लेकिन

फिर वहां चाय पीने के बाद हम लोग कर्जत बस स्टेशन की तरफ चल दिए |

कर्जत से संड़सी गाँव :
कर्जत बस स्टेशन जा कर पूछताछ करने पर पता चला की संड़सी गाँव (जहाँ से हमें ट्रेक प्रारंभ करना है ) के लिए पहली बस सुबह ५:५० की है | इतने दिन महाराष्ट्र में घुमने के बाद यहाँ की राज्य परिवहन की सेवाओ से मैं विशेष रूप

से प्रभावित हुआ हूँ | अब तक पूरा तो नहीं घुमा परन्तु जहाँ तक जाने का अवसर मिला है सुदूर गावों तक आपको सड़क और उसपे राज्य परिवहन की बसें (लाल डब्बा ) चलती मिल जाएँगी | इस बात का अंदाजा ऐसे भी हुआ की जिस बस में हम संड़सी गाँव तक गए उसमें हम लोगों के अलावा मात्र एक ही सवारी थी | कर्जत से ये बस पकड़ कर हम लोग सुबह ६:३० पर संड़सी गाँव पहुँच गए |

संड़सी गाँव :
एक छोटा सा गाँव है संड़सी | चूँकि अभी अँधेरा ही था और गाँव में लोग सोये ही हुए थे | हम लोगों को भी रस्ते का कुछ अंदाजा तो था नहीं इसलिए गाँव में ही घूमते रहे | अचानक एक जगह आवाज़ सुनाइ दी| वहां एक आदमी आग जला कर किनारे सोया हुआ था | उस तरफ बढ़ने पर देखा की वो कोई ईंट का छोटा भट्टा था और कुछ मजदूर वहां पर सोये हुए थे | मौसम थोडा ठंडा ही था तो हमने कुछ देर आग ताप के कुछ समय बिताने का फैसला लिया और पूछताछ की की आखिर जाना कैसे है और किस तरफ ?


ट्रेक का प्रारंभ :
कुछ देर में गाँव के लोग दिखने लगे थे और एक लड़के ने हमको ढाक पहाडी जिस पर बाहिरी गुफा है दिखा दी और साथ

ही रस्ते के थोड़े दिशा निर्देश भी दे दिए | तकरीबन ७ बजे हमने गाँव से ट्रेक प्रारंभ किया | अभी सूर्योदय नहीं हुआ था और थोडा अँधेरा ही था | गाँव से निकल कर कुछ दूर तक रास्ता खेतों से हो कर ही गुज़रता है तो हम चल पड़े |

जैसा कि गाँव में लोगों ने बताया था कुछ दूर जाने पर एक छोटी सी बरसाती नदी मिल गई और उसके किनारे किनारे ही चलना था | आधे घंटे चलने के बाद एक जगह थोडा पानी दिखाई दिया तो हमने कुछ देर का विराम लिया | चूँकि अब सीधे पहाड़ ही दिख रहे थे तो यहाँ से एक नए जोश के साथ आगे बढे |

भटक गए रास्ता :
अभी थोडा ही चले होंगे कि अरे | ये क्या सामने एक सीधा पहाड़ था और रस्ते का कोई निशान नहीं ! ये तो चिंता कि बात थी क्युकी मैंने पढ़ा था कि इन जंगलों में अक्सर लोग रास्ता भटक जाते हैं और हमारे एक तरफ बहुत घना जंगल था | गाँव से २ कुत्ते भी हमारे साथ चल रहे थे अचानक वो भी वापस हमारे पास ही आ गए | और इस बात ने चिंता और बढा दी कि गाँव के कुत्ते भी रास्ता नहीं खोज पा रहे | और उसके बाद जंगल से कुछ आवाजें भी सुनाई देने लगी | अब तो सब थोडा परेशान से ही थे परन्तु कोशिश कर रहे थे कि कोई डरा हुआ ना दिखे | :) लेकिन थोडी देर इधर उधर भटकने के बाद संतोष कि आवाज़ आई कि शायद रास्ता मिल गया | सब लोग उस तरफ भागे और हाँ ! शायद वही रास्ता था | वो कुत्ते भी अब थोड़े खुश नज़र आ रहे थे | :)


इसके बाद इसी रास्ते पर कुछ निशान भी दिखने लगे तो इन निशानों को देखते हुए आगे बढे | आगे का रास्ता बहुत चढाई का है और इस तरफ जंगल भी नहीं था | थोडा उपर चढ़ने के बाद एक जगह फिर से थोडा विराम लिया और कुछ फोटोग्राफी की| यह ठीक सूर्योदय के बाद का समय था और सुबह की धूप का पहाडो और जंगलो पर बहुत की खूबसूरत दृश्य दिखने लगा था | कुछ देर रुकने के बाद फिर चढ़ने लगे क्युकी हमको अंदाजा नहीं था कि कितना समय लगेगा | फिर कुछ १ घंटे और चलने के बाद एक छोटा सा मैदान सा दिखा तो वहां बैठ कर ब्रेड जैम का नाश्ता किया | तभी वहां कुछ लोग दिखाई दिए जो कि चिडिओं का शिकार करने निकले थे| उनसे जान कर तसल्ली हुई कि अब बहुत जायदा नहीं चलना |

फिर थकान मिटा कर थोडा ही चले होंगे कि अचानक लगा कि फिर से हम रास्ता भटक चुके थे | ये एक और मैदान था और यहाँ पर २-३ रस्ते दिख रहे थे | हम सब लोग अलग अलग दिशाओं में रास्ता खोजने निकल पड़े | तभी मुझे एक जगह पुणे से लोनावाला का रेलवे टिकेट पड़ा दिखा | इसका मतलब था कि यहाँ कोई आया हुआ है और रास्ता हो सकता है | लेकिन ये रास्ता तो दूसरी दिशा में जा रहा था| मैं और मयंक इस तरफ रास्ता देखने निकल पड़े | तभी उपर जंगल कि तरफ से वैदी की आवाज़ आई | उसे भी एक रास्ता दिख गया था | ये रास्ता उपर कि तरफ जा रहा था
इसलिए हम सब वापस आ कर उसी दिशा में चढ़ने लगे | कुछ दूर जा कर हमें सही रास्ता मिल गया तो सबसे सुकून कि सांस ली |
चलते चलते बहुत देर हो चुकी थी लेकिन वो पहाडी जिसपे हमे जाना था गाँव के बाद से अब तक नहीं दिखी थी | कई बार ये आशंका भी थी कि कहीं हम बिलकुल ही गलत रस्ते पर तो नहीं निकल गए | लेकिन इसी रस्ते को पकड़ उपर चढ़ते रहने का ही सोचा |

ढाक पहाडी की तलहटी में :
इसके बाद एक बहुत ही कठिन चढाई का रास्ता था| सूरज ठीक सर के उपर तिलमिला रहा था जो और मुश्किल बना रहा था इस चढाई को | और सबसे बड़ी बात की जो पानी भी सोच समझ के ही पीना था क्युकी गाँव के बाद पूरे रस्ते पानी मिलने वाला नहीं था | अगर एक बार आप बाहिरी गुफा में पहुँच गए तो वहां गुफा के अन्दर पानी साल भर मिलता है | इसी रास्ते पर चलते हुए करीब आधे घंटे बाद एक छोटा सा मैदान सा आया और यहाँ पेड़ भी थे | फिर थोडी राहत मिली और कुछ दूर चलने पर आखिरकार हमको ढाक पहाडी भी दिख पड़ी | हम ढाक की तलहटी में खड़े थे और इसके बाद सीधी चट्टान थी | अब सबके मन में यही सवाल की क्या हमें इस पे चढ़ना है ? क्युकी ये नामुमकिन सा लग रहा था | तभी पहाडी के बीच में कुछ हलचल भी दिखाई देने लगी| कुछ लोग गुफा में चढ़ रहे थे | अब समझ में आया की गुफा चट्टानों के बीच में है और हमें शिखर तक नहीं जाना |

लेकिन ये रास्ता तो दूसरी दिशा में जा रहा था | कुछ सोच कर हम निशान देखते हुए चल पड़े| दरअसल सामने से गुफा तक चढ़ना नामुमकिन ही था तो रास्ता घूम के पहाडी के पीछे से उपर जाता था | आगे का रास्ता कुछ देर तक अच्छा था क्युकी ये घने जंगलों से जा रहा था | करीब एक घंटे इस रस्ते पे चढ़ने के बाद फिर से एक खड़ी चढाई (अंदाज़न

६५-७० अंश की) हमारे सामने थी | अब तक सब लोगों की हालत ख़राब ही हो चुकी थी परन्तु गुफा के पास पहुँचने की ख़ुशी एक नया जोश पैदा कर रही थी | तो धीरे धीरे इस चढाई को भी पार कर लिया और उपर पहुँचते ही जैसे कुछ जाना पहचाना सा लगा | दरअसल हम लोगों ने पढ़ा था कि गुफा से ठीक पहले एक नाली सा रास्ता आता है जो बहुत ही संकरा है और एक कठिन उतार है | हाँ ! हम पहुँच चुके थे लक्ष्य के करीब |


दुर्गम नाली का रोमांच :
ये नाली पहाड़ के दो शिखरों के बीच एक संकरा दर्रा सा है| जिसमें आपको बस अगला कदम ही दिखता है नीचे और उसके आगे कुछ नहीं | सामने देखने पर बस चट्टान | यहाँ पर ५-१० मिनट का विराम ले कर आगे बढे | मेरी दुबली पतली काया की बदौलत में थोडी सहजता से इन रास्तों पर चढ़ उतर लेता हूँ | यही कारण था की यहाँ भी सबसे पहले मैं ही उतरा |
सबको ये चिंता थी कि यहाँ उतर भी गए एक बार तो वापस कैसे उपर चढेंगे ? लेकिन मैं आगे एक एक कदम देख कर उतरता रहा और सब धीरे धीरे उतरने लगे | नाली के दूसरे छोर पर तो कहानी कुछ और ही थी | यहाँ पर पहुँच के देखा की सामने का खुला दृश्य और नीचे कुछ ४-५ फीट सीधी चट्टान और उसके बाद कुछ एक फीट की जगह जहाँ १-२ लोग खड़े हो सकें और कुछ भी नहीं | :( चूँकि हम सब के पास सामान भी था पीठ पर तो इतनी बड़ी कूद मारना जबकि नीचे कुछ भी न दिखाई दे कठिन था | मैं सबसे पहले नीचे उतरा और मुआईना किया तो पता चला कि वो अचानक से रास्ता दायीं और मुड़ जाता है| और आपको उपर से कूद के अपने को बैलेंस करना है नहीं तो आप सीधे नीचे खाई में ! अब यह फैसला लिया कि मैं पहले उतर के सबके बैग नीचे उतार लूँगा और फिर सब उतरेंगे | लेकिन यही इस ट्रेक का सबसे दुखद पल था |

रोमांचक या साहसिक पर दुखद अनुभव :
मैंने एक दो बैग उतार के नीचे रख लिए थे और अचानक एक बैग लुड़क के खाई में गिर गया | इस बैग में ही रात का पूरा खाने का सामान और मयंक का मोबाइल फोन और बटुआ जिसमें कि वो सारे कार्ड ले आया था सब चला गया | अब तो कुछ समझ नहीं आ रहा था | सब लोग एक एक कर नीचे उतरे और एक किनारे पे सारा सामान रख कर ये सोचने लगे कि अब क्या? एक तरफ वो बैग था और दूसरी तरफ बाहिरी गुफा | सबसे कठिन रास्ता तो अब शुरू होता है | बाहिरी के लिए आपको २०० मीटर संकरे से रस्ते पर चल कर फिर सीखे २५-३० फीट उपर चढ़ना है | इस जगह गाँव वालों ने एक दो रस्सियाँ और एक पेड़ का ताना जिसमें खांचे बने हैं पैर रखने के लिए लगाया हुआ है| लेकिन पहले बैग और हमारा रात का प्लान ? कुछ देर सोचने के बाद मैंने नीचे उतरने कि सोची कि अगर बैग दिख जाये तो फिर कुछ किया जाये | धीरे धीरे मैं एक जगह से नीचे उतरा परन्तु ये क्या सूखी हुई घास पकड़ कर जाना मुश्किल था और पकड़ने के लिए चट्टान मैं कुछ भी नहीं | थोडा नीचे उतर के मेरी हिम्मत भी जवाब दे गई | अब नीचे देखना बहुत खतरनाक था | कुछ सोच कर मैं वापस उपर आ गया | अब तक उस जगह के सारे बन्दर उस बैग कि तरफ जा चुके थे | बैग तो नहीं पर वो बंदरो के झुंड से पता चला कि बैग नीचे एक जगह हो सकता है |
थोडी देर मैं कुछ ट्रेकर जो पुणे से आये हुए थे वो वहां दिखे | हमने अपना हाल बताया उनको तो उन्होंने एक कोशिश कि नीचे उतरने की| लेकिन वो भी थोडा नीचे जा के वापस आ गए | उन्होंने हमसे पूछा की हमारा यहाँ आने का कितना अनुभव है? हमारा तो सह्याद्रि का ये पहला ही ऐसा दुर्गम ट्रेक था | इसके बाद उन्होंने जो बताया वो सबके होश उड़ा देने वाला था | यह सबसे कठिन ट्रेक में से था और इस जगह से कम से कम १०० लोग अपनी जान गँवा चुके थे | :( अब तो यही लगा कि अच्छा हुआ बैग गिरा हम में से कोई नहीं | अब इसके बाद आगे जाने की हिम्मत तो खो चुकी थी | उन्होंने बताया की गुफा में एक गाँव वाला कुछ लोगों को ले कर आया हुआ है | वो सारे रास्ते जनता होगा और शायद वो बैग वापस ला दे | लेकिन अब गुफा तक जाना | अब वैदी और मैं थोडा आगे बढे और गुफा की तलहटी तक ही पहुँच पाए और इन्तेज़ार करने लगे की कोई दिखे |




These two photographs taken from http://deepabhi.tripod.com/
गुफा हमारे ठीक उपर थी और उपर का रास्ता दिख नहीं रहा था | कुछ देर बाद २ लड़के मिले जो गुफा में जा रहे थे तो उनको बोला कि वो गाँव वाले गाइड तक हमारा सन्देश पहुंचा दें | अब हमारे पास वहां बैठकर उसका इन्तेज़ार करने के सिवा कोई चारा नहीं था | करीब १ घंटे बाद वो लोग नीचे उतरे और हमने उसको बताया |

वो गाइड हमारा बैग ले कर आने को तैयार हो गया लेकिन बदले में हमें उन लोगों को नीचे ले कर जाना था | चूँकि हमारा सारा खाने का सामान तो बन्दर ले ही जा चुके होंगे ये सोचकर हमने हामी भर दी और वहीँ से वापस उतरने का फैसला लिया | वो गाइड हमको बीच में कहीं मिलने को बोल कर दूसरे रास्ते से उतर गया |
अब क्या था | सब मुह लटकाए वापस उतर रहे थे और साथ में वो लोग भी | फिर उसी नाली पर जैसे तैसे उपर चढ़े | चिंता की बात यह भी थी की अब पानी ख़तम होने वाला था क्युकी हमारा इरादा गुफा में पानी भरने का था | लेकिन अब जाना तो था ही | कुछ देर उतरने के बाद वो गाइड बैग के साथ दिखा और हमारी दुखी चेहरों पर थोडी मुस्कान आ पाई | खाने का सामान और मयंक का मोबाइल तो जा चुका था |
यहाँ पर एक बार फिर सोचा की क्यों न यहीं रुक कर थोडा बहुत बिस्कुट जो दूसरे बैग में थे खा कर रात काट लें और सुबह सुबह फिर गुफा की चढाई की जाये | लेकिन कुछ लोगों की हिम्मत टूट चुकी थी, पानी भी नहीं था और विशाल को पुणे जाना था यह सोच कर वापस ही उतरने लगे |

फिर से एक बार :
इस ट्रेक में कुछ कमी रह गई शायद जिसको पूरा करने के लिए अब वो गाँव वाला भी रास्ता भूल गया | एक बार फिर हम घने जंगलों में और झाडियों में भटकने लगे | करीब एक घंटा सब भटक रहे थे और तब तक वो गाइड भी रास्ता खोजता हुआ हमसे अलग हो गया | कुछ देर में आखिर वो मिला और हमको रास्ता भी मिल गया | लेकिन अब पानी सबके पास खत्म हो चुका था और कम से कम ३ घंटे और उतरना था संड़सी गाँव तक पहुँचने के लिए |
लेकिन उस गाइड को एक पानी का स्रोत पता था और कुछ देर बाद आधे लोग एक जगह रुके और हम कुछ लोग पानी भरने उसके साथ चल पड़े | ये स्रोत भी ऐसी जगह था की बस एक पैर रखने की जगह और नीचे खाई | यहाँ पर उसने खुद ही उतर कर सबके लिए पानी भरा और हम वापस चल पड़े |
थोडा नीचे उतर कर सूर्यास्त भी दिख गया जो कि कैमरे में कैद कर लिया | हमारा प्लान तो बाहिरी गुफा से सूर्यास्त
देखने का था लेकिन अब सब खुश थे कि सही सलामत गाँव तक पहुँचने वाले हैं |

संड़सी से मुंबई वापस :
करीब ७ बजे हम गाँव में थे | अँधेरा हो चुका था और ७.३० बजे एक बस थी कर्जत के लिए | सबने सुकून कि साँस ली | गाँव में चाय पीने के बाद बहुत जल्द फिर से ये ट्रेक पूरा करने का विचार बनाते हुए हम वापस चल पड़े |
८ बजे करीब कर्जत और वहां से ट्रेन पकड़ कर सब वापस मुंबई |
लेकिन अब तक वो ट्रेक पूरा नहीं हो पाया | :( उम्मीद है बहुत जल्द एक नए जोश के साथ हम बाहिरी गुफाओं तक पहुँचने में कामयाब होंगे |


फोटो एल्बम यहाँ देखें
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7 टिप्‍पणियां:

  1. आधा पढ़ा शेष समय मिलने पर पढ़ने के लिए बुकमार्क कर लिया है... रोचक है
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    Carbon Nanotube As Ideal Solar Cell

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  2. बहुत सजीव वर्णन किया है....
    रास्ते का रोमांच,रहस्य महसूस हो रहा है
    रोचक वृत्तान्त है

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  3. निपुण जी बहुत ही बढ़िया लिखा है.....यात्रा का पूरा वृतांत एकदम सजीव हो उठा है. ऐसा महसूस हो रहा है जैसे के हम ही घूम कर आए हो ढाक बाहिरी. आपकी अगली ट्रैक और उस पर घुमंतू में आपके लेख की प्रतिक्षा रहेगी.

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  4. बहुत ही रोचक, सजीव और
    सूचनाप्रद वृतांत है निपुण जी,
    इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं.
    !!! फूफा रॉक्स !!! :)

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  5. बहोत अच्छा लग रहा है की में भी उस trek में शामिल था...

    में इसे असफल trek नहीं कहूँगा... क्यों की मेरे लिए यह बहोत ही अच्छा अनुभव था...

    --विशाल

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  6. Baap re kitni khatarnaak jagah hai

    sach mein bhatak jaate to
    mana romaanch pasand hai
    magar itna nahi ki khud hi kho jaaye
    magar padh kar chitra dekh kar bahut achha laga

    ummeed hai jaldi hi ye mission bhi pura ho jaayega

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  7. नमस्कार,
    जाट देवता की राम राम
    अब तक ये ट्रेक पूरा हुआ या नहीं, और अगर सम्भव हो सके तो मुझे सूचित कर दोगे ताकि मैं भी चल सकू।

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पढ़ ही डाला है आपने, तो जरा अपने विचार तो बताते जाइये .....