मंगलवार, 17 मई 2011

कच्छ दर्शन : भाग २

आज की हमारी सुबह हुई तकरीबन ६ :३० पर और राजू भाई से ९ बजे मिलने कि बात हुई थी | मौसम थोडा सर्द था और कुछ ३-४ चाय पीने के बाद ठन्डे ठन्डे पानी से स्नान कर हम दोनों तैयार थे कच्छ दर्शन के लिए |

दरअसल हमारा विचार था कि आज सुबह सुबह जल्दी निकल कर हम ढोलावीरा में हड़प्पा कालीन सभ्यता के शहर को देखने पहुच जायेंगे और वहां से काला डोंगर होते हुए इंडिया ब्रिज पहुच कर वहां कहीं रात्रि विश्राम करेंगे | अगले दिन वहां से निकल कर सफ़ेद रण के किनारे किनारे हम भारत के आखिरी शहर लखपत तक जायेंगे और वहां से कोरी खाड़ी के किनारे किनारे नारायण सरोवर होते हुए वापस भुज पहुच जायेंगे | हमारी पुरानी योजना का नक्शा में नीचे लगा रहा हूँ |


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परन्तु हमारी योजना धर्मेश खत्री जी और राजू भाई से मिली जानकारी के बाद कुछ बदल गई | हमें पता चला की इस साल पकिस्तान में आई बाढ़ के कारण पानी बोर्डर के इस तरफ आ चुका है और ढोलावीरा से काला डोंगर को जोड़ने वाली सड़क पूरी डूब चुकी है | यह रण का दलदली इलाका था और यहाँ पर कोई भी खतरा नही लिया जा सकता था |
चूँकि हमारे पास समय भी कम था और ढोलावीरा भुज से करीब २५० किलोमीटर दूर था | इसका मतलब था एक पूरा दिन यहाँ जाने में बीत जाता |
खत्री जी की सलाह के मुताबिक हमने योजना में बदलाव किये और आज का दिन हम सफ़ेद रण , इंडिया ब्रिज , काला डोंगर और पाकिस्तान बोर्डर से लगे हुए कुछ गावों को देखने में बिताने का विचार बनाया | राजू भाई ने भी कहा कि घूमने में जल्दबाजी ना की जाए तो ज्यादा अच्छा रहेगा |

सुबह नाश्ता करने के बाद करीब ९ बजे हम भुज से चल पड़े | राजू भाई बहुत ही अच्छे तरीके से हमें पूरे कच्छ के बारे में जानकारियां दे रहे थे | भुज से निकल कर हमने खावड़ा जाने वाली सड़क पकड़ ली थी | इन दिनों रण उत्सव की तैयारियां जोरों पर थी और राजू भाई ने बताया कि अगले दिन से सफ़ेद रण में सिर्फ वही लोग जा पाएंगे जो कि रण उत्सव के लिए आये हों | आम पर्यटकों के लिए अगले कुछ दिन रण में जाना प्रतिबंधित था |

निरोणा  और पारंपरिक कलाएं :
इस सड़क को भी अभी रण उत्सव कि वजह से नया बनाया गया था और हम रफ़्तार से चले जा रहे थे | अचानक राजू भाई ने गाड़ी मुख्य मार्ग छोड़कर एक पतली सड़क पर ले ली | फिर उन्होंने बताया की अब हमको घुमाने की
उनकी जिम्मेदारी है और वो हमें अपने गाँव घुमाना चाहते थे | उनका गाँव निरोणा पर्यटकों में बहुत प्रसिद्द था | यहाँ की कुछ पारंपरिक कलाएं विश्व प्रसिद्द हैं | करीब १७ किलोमीटर इस सड़क पर चलने के बाद हम निरोणा गाँव में थे |
सबसे पहले राजू भाई हमें प्रसिद्द रोगन कला को दिखाने ले गये | दरअसल यह कच्छ की पारंपरिक कला है और अब इस गाँव में एक खत्री परिवार ही यह काम कर रहा है | कुछ वर्षों पहले इस परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद ख़राब थी परन्तु अभी सरकार के सहयोग से और पर्यटकों (खासकर विदेशी) में इसकी प्रसिद्धि से इनकी हालत
सही है | दरअसल ये लोग अरंडी के तेल में कुछ प्राकृतिक रंग मिला कर विशेष विधि से रंग तैयार करते हैं और फिर कपड़ों में पेंटिंग की जाती है | यह रंग इतना मजबूत होता है की कपडे के फटने से पहले ख़राब नही होता | इन्होंने हमें पूरी विधि को समझाया और हमारे सामने कुछ कपड़ों पर पेंटिंग बना के दिखाई | यह वास्तव में बहुत मेहनत और धैर्य का काम था | कुछ फोटो लगा रहा हूँ :





यहाँ से आगे निकलकर निरोणा गाँव में ही हम तांबे की घंटी बनाने वाले एक परिवार के घर पर थे | कुछ सालों पहले इनकी आजीविका का साधन मवेशियों के गले में बंधने वाली घंटियाँ बनाना था परन्तु अपने कुछ तरीकों से अब यह परिवार तरह तरह की संगीतमय धुन वाली घंटियाँ बनाने लगा था | कोई सरगम वाली तो कोई विशेष मधुर आवाजों वाली | यहाँ से हमने कुछ खरीददारी की फिर राजू भाई ने अपने घर से नाश्ते का कुछ सामान लिया और हम वापस खावड़ा की तरफ चल पड़े |
खावड़ा जाने से पहले ही एक जगह रूककर रण में प्रवेश करने के लिए पुलिस से अनुमति लेनी पड़ती है | कुछ दिनों पहले यह काम भुज में करवाना पड़ता था परन्तु अब पर्यटकों की सुविधा के लिए रास्ते में ही एक विशेष पुलिस चौकी बना दी गयी है | खत्री जी ने हमें पहले दिन ही कुछ फॉर्म दे दिए थे | अपने परिचय पत्र के साथ ये फॉर्म यहाँ जमा कर पुलिस के कुछ सवालों के जवाब दे कर हमें अनुमति मिल चुकी थी | राजू भाई को इस इलाके में अधिकतर लोग जानते ही थे तो कहीं खास परेशानी नही हुई |
अब हम बन्नी के प्रसिद्द घास के मैदान के पास से गुजर रहे थे जो इन दिनों सुन्दर फ्लेमिंगो और कई अन्य विदेशी पक्षियों के घर थे | दूर दूर तक फ्लेमिंगो के झुण्ड उड़ते हुए दिख रहे थे | सड़क एकदम सीधी सपाट थी और
दोनों तरफ सूखा रण शुरू हो चुका था | इसी बीच सड़क के एक किनारे पर कुछ उजड़ा सा गाँव दिखाई दिया | राजू भाई ने बताया की यह फिल्म "लगान" के गाँव का सेट है जिसे अब वन विभाग ने तार की बाड़ से घेर दिया है | लगान की अधिकतर शूटिंग यहीं पर हुई थी |
थोड़ी देर बाद हम खावड़ा में थे | दरअसल इस इलाके में खाने पीने का कुछ सामान नही मिलता | खावड़ा में कुछ दुकाने थी और यहाँ हमने चाय वगेरह पी ली | अब यहाँ से हमें काला डोंगर जाना था | काला डोंगर में प्रसिद्द दत्तात्रेय मंदिर है और राजू भाई ने फोन कर के मंदिर में दिन के भोजन का प्रबंध करवा दिया | अब खाने की कोई चिंता ना थी और हम काला डोंगर के लिए चल पड़े |
खावड़ा से कुछ आगे जाते ही काला डोंगर के लिए पहाडी रास्ता शुरू हो जाता है |  पहाडी घुमावदार सड़क पर सीधी चढ़ाई में खरामा खरामा गाड़ी चली जा रही थी और दूर दूर तक फैला हुआ रण विस्तार दिखने लगा था | करीब
आधे घंटे में हम खावड़ा से काला डोंगर पहुच गये | यहाँ मंदिर में दर्शन किये और उसके बाद पहाडी के उपर की तरफ चल दिए | यह बड़ा मंदिर था और यहाँ पर धर्मशाला भी हैं | साथ ही इस पहाडी के उपर सीमा सुरक्षा बल का बेस कैंप है | राजू भाई का सीमा सुरक्षा बल के लोगों के साथ भी परिचय था और कुछ देर उनके साथ बिताने के बाद हम उपर की तरफ चल पड़े | यहाँ से नीचे दूर तक रण का विस्तार दिखता है और उसी में कहीं भारत पाक बोर्डर भी है | रण
के बीच में जगह जगह सीमा सुरक्षा बल की चौकियां दिख रही थी | इन जगहों पर जाने के बाद ही एहसास होता है की सीमा पर कितनी विषम परिस्थितियों में यह जवान हमारी सुरक्षा के लिए डटे रहते हैं | इस भीषण गर्मी में नमक के रण के बीच में महीनो तक चौकन्ने रहना वास्तव में बहुत कठिन है |
यहाँ पर पर्यटकों के लिए कुछ बोर्ड लगे हुए थे जो अलग अलग दिशाओं में पर्यटन स्थलों की जानकारी दे रहे थे | कुछ देर यहाँ पर बैठे रहे और रण के बीच में भारत पाक सीमा और वहां तक जाने वाली सड़क खोजते रहे | यहाँ से इंडिया ब्रिज भी दिखाई दे रहा था और वापस मंदिर की तरफ आ कर हम चल पड़े इंडिया ब्रिज की तरफ |
काला डोंगर से नीचे उतर कर हम फिर उसी मुख्य मार्ग पर आ चुके थे | यह सड़क सीमा सुरक्षा बल के पास है और बहुत अच्छी स्थिति में है | इंडिया ब्रिज के पहले कुरण गाँव पड़ता है | यहाँ के लोगों की वेशभूषा देख कर लग रहा था कि हम बोर्डर के पास हैं | चूँकि यहाँ खेती करना तो नामुमकिन है इसलिए इन लोगों की आजीविका का मुख्य साधन गाय पलना और दूध बेचना ही है |
थोड़ी ही देर में हम इंडिया ब्रिज में थे | असैन्य नागरिकों के लिए इससे आगे जाना मना है | इसके आगे जाने के लिए सीमा सुरक्षा बल के भुज मुख्यालय से अनुमति लेनी पड़ती है | यहाँ से करीब ७० किलोमीटर दूर भारत पाक बोर्डर है | ना जाने क्यों इस जगह पर पहुच कर एक नया एहसास होने लगा था | एक अनूठा रोमांच, एक अलग सी ख़ुशी या ना जाने क्या | यहाँ पर सीमा सुरक्षा बल के कुछ जवान मुस्तैदी से खड़े थे | गाड़ी किनारे रोक कर हम उनमे से एक के साथ बैठ गये | उसने बड़े अच्छे तरीके से हमको यहाँ की जगहों के बारे में बताया | दूर तक सफ़ेद रण फैला हुआ था | ब्रिज के नीचे जा कर कुछ देर रण में घूमने के बाद वापस आकर हम फिर जवान के साथ बैठ गये | वो कुछ दिन पहले यहाँ से आगे की चौकी तक गया था और उसने हमें फ्लामिंगो और रण के बारे में बहुत कुछ बताया साथ ही फ्लामिंगो के अण्डों की एक फोटो दिखाई जिसे देख कर तो मज़ा ही आ गया | उसने बताया कि दूर दूर तक फैले नमक के मैदानों (रण) में फ्लेमिंगो टीले बनाते हैं और हर टीले पे एक अंडा | इस खूबसूरती को आप भी देखें और आनंद लें: 
 
 इस समय तो बस मन था कि काश हमारे पास एक और दिन होता तो हम भुज से आगे की अनुमति ले लेते और भारत की आखिरी चौकी तक जा पाते | खैर , अगली बार आने की योजना बना कर अब हम यहाँ से वापस हो लिए |
अगला ठिकाना था सफ़ेद रण विस्तार के बीच में ! इसके लिए हमें धोरदो गाव तक जाना था | यहाँ के लिए वापस इसी मार्ग पर खावड़ा से आगे तक आये और वहां से दूसरी सड़क पकड़ ली | २ दिन बाद रण उत्सव शुरू होना था और तैयारियां जोर शोर से चल रही थी | बहुत बड़े क्षेत्र में पर्यटकों के लिए टेंट ही टेंट लगे हुए थे | इससे थोडा और आगे चल कर हम रण तक पहुच चुके थे | यहाँ से आगे गाड़ी नही जा सकती थी और पैदल चलने में भी पैर धंस रहे थे | धीरे धीरे हम आगे चल पड़े | राजू भाई की सख्त हिदायत थी की हम ज्यादा दूर तक ना जाएँ क्युकी कहीं भी छुपा हुआ दलदल हो सकता है और हम मुश्किल में फंस सकते हैं | आराम आराम से टटोलकर नमक के उपर चलना पड़ रहा था | वास्तव में यह जगह तो बहुत खूबसूरत थी | चटकीली धूप और दूर दूर तक फैला सफ़ेद रण विस्तार | आप भी कुछ फोटो देखें :
 

 
 
 
अब यहाँ से वापसी की और रास्ते में होड़का गाव में बने हुए एक रेसोर्ट तक पहुच गये | हांलाकि हमारा मन नही था फिर भी राजू भाई ने कहा कि एक बार वहां भी घूम लेते हैं | यहाँ १० मिनट बिता कर हम वापस हो लिए | रास्ते में चाय पी और राजू भाई ने बताया कि अभी एक और जगह है जो हमें बड़ी पसंद आएगी | राजू भाई से अच्छी दोस्ती हो गई थी और वो बड़े अपनेपन से हमें घुमा रहे थे | अब तक वो हमारे बारे में जान भी चुके थे और शायद इसीलिए उन्होंने हमें उस जगह ले जाने का विचार बना लिया | उन्होंने बताया कि यह बहुत प्रसिद्द नही है पर हम लोगों को जरूर पसंद आएगी |

रुद्रमाता :
भुज से थोडा पहले ही हम मुख्य मार्ग से कट कर एक पतली सड़क पर आ गये | यह रुद्रमाता का मंदिर था और उसके पास एक पहाडी टीले के उपर जाना था | यहाँ पहुच कर तो वास्तव में हम दोनों ने राजू भाई को बहुत धन्यवाद दिया | सूर्यास्त का समय था और यहाँ पहुच कर मानो सारी थकान गायब | ज्यादा नही कहूँगा आप कुछ फोटो देखें और आनंद लें :
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अब समय था वापस भुज जाने का | आधे घंटे में हम वापस भुज पहुच गये | कमरे में जा कर तरो ताज़ा हुए और अब समय था भोजन का | आज का दिन बहुत खूबसूरत बीता था और ख़ुशी हम दोनों के चेहरे पर साफ़ दिख रही थी | सौरभ के मन में विचार आया कि आज कच्छ के नॉन वेज भोजन का आनंद लिया जाए | बस क्या था हमने बाहर निकल कर पता किया कि भुज में सबसे अच्छा नॉन वेज कहाँ मिलेगा और हम बाजारों से होते हुए पैदल पैदल चल पड़े | मैं अब उस रेस्तरां का नाम तो भूल गया हूँ पर खाना बेहद लजीज था | इसके बाद टहलते हुए वापस आ गये और अगले दिन कि तैयारी करने लगे |
समय मिलते ही तीसरे दिन की घुमक्कड़ी का अनुभव आपके साथ बांटूंगा ....तब तक के लिए अलविदा ....

----घुमन्तू