शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

सतारा यात्रा -- कास झील और महाराष्ट्र की फूलों की घाटी ....

बहुत लोगों से सुन लिया था की महराष्ट्र में भी सतारा के पास एक मिनी फूलों की घाटी है | मैं अब तक हिमालय की फूलों की घाटी नहीं देख पाया था तो मन था की पहले यहाँ घूम के आया जा सकता है| अगले हफ्ते दीवाली की छुट्टियों में घर जाने का विचार था और इस वजह से गुरुवार तक किसी का भी कहीं जाने का विचार नहीं था| परन्तु शुक्रवार को गाँधी जयंती की की छुट्टी की वजह से ३ दिन का सप्ताहांत मिल गया तो मेरा कहीं जाने का मूड होने लगा |

योजना :
सतारा एक सहज विकल्प, दिमाग में आया परन्तु अब साथ खोजना था | ऑफिस में लोगों से पूछा तो इस सप्ताहांत सब लोग ही व्यस्त थे | आखिरी उम्मीद मयंक से पूछा तो पता चला की उसे भी ऑफिस आना है और रविवार को वो हिमालय में "हर की दून" घूमने जा रहा है | अब मेरे लिए असमंजस की स्थिति थी क्योंकि अगर दो तीन लोग हों तो घूमने का मज़ा ही कुछ और होता है |
थोडी देर सोचने के बाद मैंने शाम को अकेले ही निकलने का मूड बना लिया था परन्तु अचानक मयंक बोला कि अगर एक दिन में हम वापस आ जाएँ तो वो भी चलने को तैयार है | बस अब शाम को ऑफिस के बाद सतारा निकलने का प्लान बन गया |

सतारा:
सतारा महाराष्ट्र में एक जिला है| पुणे से मात्र १२० किलोमीटर की दूरी पर है | सतारा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष श्री शरद पंवार का राजनीतिक गढ़ है साथ ही मराठा राज्य के एतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण है | सतारा के पास बहुत से दर्शनीय स्थल हैं| मिनी फूलों की घाटी ,कास झील, सज्जनगढ़ , थोसेघर जलप्रपात, यवतेश्वर मंदिर आदि सतारा के पास ही हैं|

मुंबई से सतारा :
शाम को निकलने से पहले मुझे याद आया कि कैमरा तो मेरे घर पे ही है और मुझे एक बार घर जाना ही होगा | मेरा घर मुंबई से बाहर मीरा रोड में है परन्तु कैमरा तो लेकर आना ही था तो मैं ६ बजे करीब ऑफिस से निकल कर ८.३० पर मयंक के घर बान्द्रा पहुँच गया | यहाँ मयंक ने चाय पिलाई और ९.३० पर हम दादर के लिए निकल पड़े | दादर से सतारा के लिए हर आधे घंटे पर राज्य परिवहन की बस मिलती रहती है | हमने १०:३० पर बस पकड़ी | दादर से सतारा ५-६ घंटे का सफ़र है और किराया २२५ रुपये |

सतारा से कास गाँव :
सुबह ४:३० पर आंख खुली और हम सतारा बस स्टेशन पर थे | चाय पीने के बाद पूछताछ की तो पता चला कि कास गाँव के लिए बामणोळी वाली बस मिलेगी जो ६ बजे निकलेगी | ६ बजे तक स्टेशन पे बैठे बैठे २-३ चाय पी गए | सतारा के पास सज्जनगढ़ का किला और थोसेघर जल प्रपात भी दर्शनीय स्थल हैं | हमारा प्लान कास से वापस लौट कर समय के अनुसार सज्जन गढ़ और थोसेघर देखने का भी था | ६ बजे बस मिल गई और अभी अँधेरा ही था | कास के लिए बस के कंडक्टर ने दो लोगों का ८६ रूपये का टिकेट काट दिया | हम लोगों को बड़ी हैरानी हुई कि २५ किलोमीटर का टिकेट इतना कैसे ? | खैर वो बोला कि पैसे बाद में लौटाएगा | आज तक इतनी यात्राओं में मेरे साथ ऐसी घटना पहली बार हुई | या तो वो समझ नहीं पाया या फिर उसने जान बूझ कर ज्यादा टिकेट लिया | थोडी देर में कास आ गया तो मैंने उससे टिकेट के बारे में पूछा | इस पर उसने मुझे २० रूपये और दिए और टिकेट वापस ले लिया | अब मैं समझ गया कि उसने १०-२० रूपये शायद अपनी जेब में डाल लिए हैं |

कास झील :
यहाँ पर उतर कर एक तरफ कास गाँव का बोर्ड लगा था और सड़क के दूसरी ओर कास्देवी का मंदिर था | इसके पास से एक रास्ता नीचे कि तरफ जा रहा था | कुछ दूर जाने पर लगा कि झील के इस तरफ तो जंगल था और यहाँ से शायद न उतरना हो | हम वापस सड़क पर आ गए और पीछे की तरफ चलने लगे | उम्मीद थी की कोई दिखेगा तो पूछ लेंगे | थोडी दूर पर एक महिला पानी भरती दिखी तो उससे पूछा लेकिन शायद मेरा मराठी का अल्पज्ञान बीच में आ गया और हम कुछ समझ नहीं पाए | थोडा आगे चलने पर एक रास्ता दिखा जो नीचे झील की तरफ जा रहा था | इस रास्ते पर थोडा चलने के बाद हमको कई तरह के फूल दिखाई देने लगे |यहाँ पर तरह तरह के अनेक रंगों में फूल खिले हुए थे |









यहाँ पर फूल तो थे लेकिन जैसी हमने कल्पना की थी उतने नहीं | हम समझ नहीं पा रहे थे की हम सही रास्ते पर हैं और सही जगह आये हैं या फिर कंडक्टर ने हमको कहीं और उतार दिया है | प्लान इतना जल्दी बना था की मैं इन्टरनेट पर भी कुछ खास देख नहीं पाया था |

कुछ देर फूलों की फोटो लेने के बाद हम आगे बढे | झील के किनारे किनारे ही रास्ता था और दूर दूर तक फैली हुई थी शांत और स्वच्छ पानी की झील |

सुबह सुबह थोडी ठंडी हवा भी चल रही थी जो एक खुशनुमा अहसास दे रही थी | थोडा आगे चलने के बाद झील के किनारे ही एक पत्थर की दीवार पर बैठ गए | प्रकृति के उस सुरम्य वातावरण का वर्णन मैं शब्दों में नहीं कर सकता |
अब तक हमको यहाँ पर कोई नहीं दिखा था | बस झील के एक तरफ कुछ गाँव की महिलाएं पानी भरने आ रही थी | कुछ देर यहाँ बैठे रहने के बाद थोडी सी धूप की किरने बादलों के बीच से झाँकने लगी थी | इन किरणों के साथ मौसम थोडा सा गर्म होने लगा और हमारे मन के अन्दर झील में नहाने के विचार उमड़ने लगे |

झील के एक किनारे पर पानी की निकासी थी और यहाँ से छोटी सी धारा नीचे की तरफ जा रही थी | इसी जगह पर उतर गए पानी में | अरे बाप रे ! मयंक चिल्लाया | पानी बहुत ठंडा था और मुझे पानी में उतरने के बाद इस बात का एहसास हुआ | लेकिन थोडी देर में धूप आ गई और अब मज़ा आने लगा | पानी से निकलने के बाद हम बुरी तरह काँप रहे थे | अब बाहर आ कर थोडी देर धूप में सो गए | मुंबई से दूर एकांत में प्रकृति की गोद में खेलने के इस आनंद की तुलना किसी चीज़ से नहीं की जा सकती | कुछ देर यहाँ आराम करने के बाद अब झील के दूसरी तरफ निकल पड़े | हमें फूलों को भी तो खोजना था क्योंकि अब तक इतने फूल नहीं दिखे थे की हम फूलों की घाटी कह सकें | खैर झील के दूसरी तरफ कुछ फूल खिले हुए दिखने लगे थे | कुछ देर यहाँ घूमने के बाद अब वापस सतारा जाना था क्युकी वहां से सज्जनगड भी जाना था | ११ बजे करीब यहाँ से बस मिल गई और हम वापस सतारा की तरफ चल दिए |
अरे ! अभी १-२ किलोमीटर ही आये थे कि सामने फूल ही फूल थे | बदकिस्मती ये थी कि सुबह बस कंडक्टर ने हमको यहाँ उतारना चाहिए था |सुबह अँधेरा था शायद हम लोगों को भी ये जगह नहीं दिख पाई | यही फूलों की घाटी थी | सचमुच ऐसी ही कल्पना की थी हमने | ये घाटी तो नहीं थी परन्तु पहाडी के उपर बड़े बड़े मैदान और पठार थे और इनमे तरह तरह के रंग बिरंगे फूल ही फूल | बहुत ही सुन्दर दृश्य था परन्तु अब हमारे पास समय की कमी थी| बस से ही इन फूलों का आनंद लिया और कुछ फोटोग्राफ भी लिए |

आधे घंटे में हम सतारा के पास पहुँच गए थे | पहाडी के उपर से सतारा शहर का दृश्य बहुत ही सुन्दर था | यहाँ पर कई बार मुझे उत्तराखंड के शहर अल्मोडा की याद आ रही थी| पहाडी पर बसा हुआ यह शहर बहुत ही सुन्दर लगता है | शहर भी बहुत हद तक अल्मोडा की तरह है | पत्थरों से बने हुए पुराने भवन | जगह जगह सीढियां और उपर नीचे बने भवन|

यात्रा का आधे में ही अंत और मुंबई वापसी :
सतारा पहुँच कर बस से उतरने के बाद भूख भी लगी हुई थी| मयंक की तबियत भी कुछ नासाज़ सी लग रही थी | शायद मयंक आज फिर उच्च रक्तचाप (हाई बी पी ) का शिकार बन चुका था | बाहर निकल कर स्वादिष्ट पूरी भाजी खाई और चाय पीने के बाद वापस बस स्टेशन आ गए |
अब सज्जन गढ़ जाना था और पता चला कि अभी बस के आने में समय है | हम एक जगह बैठ कर बस का इन्तेज़ार करने लगे | अब १ बज चुका था और बस अभी तक नहीं दिखी थी | वापस पूछताछ काउंटर पर गए तो पता चला कि बस तो निकल गई और वो इस जगह खड़ी नहीं होती अब | वो बस स्टेशन के दूसरे किनारे पे सवारी ले के चली जाती है | अब मूड थोडा ख़राब हो रहा था क्योंकि हमको वापस जल्दी मुंबई भी जाना था | थोडी देर सोचने के बाद वापस मुंबई जाने का प्लान कर लिया कि फिर कभी आकर सब कुछ घूमेंगे | करीब २ बजे मुंबई की बस मिल गई|
वापसी का सफ़र भी अच्छा था | मुंबई पुणे द्रुतगति महामार्ग पर यात्रा करने का मज़ा भी अलग है | लोनावाला पहुँचते पहुंचे बारिश भी होने लगी और सफ़र और अच्छा हो गया | करीब ८ बजे हम घर पहुँच गए |
शायद इस यात्रा के प्लान में ही कोई कमी रह गई थी जो कुछ कुछ गड़बड़ होता रहा | निकट भविष्य में सतारा की एक और यात्रा करने का मूड है और सारी जगहे घूमनी बची हैं | उम्मीद है जल्द ही हम ये सब भी देख लेंगे |
फिलहाल अगले सप्ताह मयंक "हर की दून " और "केदारनाथ" घूमने जा रहा है और मैं ऋषिकेश, रुद्रप्रयाग, श्रीनगर, अल्मोडा होते हुए उत्तराखंड भ्रमण कर दीवाली पर अपने गृह नगर चम्पावत पहुंचूंगा |


फोटो एल्बम यहाँ देखें ...(सौजन्य : मयंक जोशी )

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर यात्रा वृत्तान्त. फूलों की घटी के आगे निकल गए. अबकी बार सज्जनगढ़ का किला अवश्य देखें. आभार

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