हर बार की तरह कई जगहें मिलती गयी और इसके अनुसार ही हमारे प्लान बनते गए | बहुत खोजबीन के बाद तय हुआ की कलावन्तिन और प्रबलगढ़ दुर्ग का दो दिन का ट्रेक कर लिया जाये | परन्तु बारिश बहुत हो रही थी और कहीं से जानकारी मिली की कलवन्तिन तो ठीक था परन्तु प्रबलगढ़ के जंगलों में रास्ता भटकने की सम्भावना बहुत अधिक है | धीरे धीरे सप्ताहांत तक राजमाची किले के ट्रेक का प्लान बन चुका था | इस ट्रेक की ख़ास बात यह भी थी की रास्ते में कोण्डाना की गुफाओं को भी देखा जा सकता है | संतोष किसी काम की वजह से लोहगढ़ ट्रेक पर नहीं आ पाया था तो इस बार वो बहुत उत्साहित था | जाने वालों में हम चार लोग थे : मैं , सौरभ , मयंक और संतोष |
राजमाची का किला और कोण्डाना गुफाएं :
राजमाची मुंबई के पास सह्याद्रि में एक छोटा सा गाँव है | यहाँ पर छत्रपति शिवाजी द्वारा सत्रहवीं शताब्दी में बनाये गए दो सुन्दर किले हैं | यह मुंबई और पुणे के बीचे के घाट (भोरघाट ) से जाने वाले व्यापारिक मार्ग पर नियंत्रण रखने की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण थे | राजमाची दो रास्तों से पहुंचा जा सकता है , कर्जत से और लोनावाला से |
लोनावाला से रास्ता लम्बा है (करीब २० किलोमीटर ) और कर्जत से थोडा छोटा (करीब १३ किलोमीटर ) परन्तु कठिन ट्रेक है | कोंडाना गुफाएं कर्जत वाले रास्ते से जाने पर बीच में पड़ती हैं |
कोंडाना गुफाएं बौद्ध हीनयान शैली में बनी हुई बहुत सुन्दर गुफाएं हैं | एक विशाल चट्टान की तलहटी में स्थित इन गुफाओं के सामने बहता झरना इनकी सुन्दरता को और बढा देता है|
मुंबई से कर्जत :
शुक्रवार होने की वजह से नयी फिल्म देखने का भी मूड था | शाम को अमोल के कहने पर मैं, मयंक और अमोल "लव आज कल " देखने चल पड़े | फिल्म कुछ ख़ास तो नहीं लगी परन्तु हरलीन कौर ( गिसेल्ले मोंटेरियो ) की सुन्दरता ने हम सबको फिल्म के साथ बांधे रखा | यहाँ से निकल कर वापस ऑफिस पहुँच कर बैग लिए और पास के ढाबे में भर पेट खाना खा लिया | अब तक संतोष बान्द्रा में मयंक के घर पहुँच चुका था | आधे घंटे बाद हम लोग भी बान्द्रा पहुँच गए | वहां जा कर पता चला की सौरभ अपने दोस्त के घर पे खाने के लिए गया हुआ है | फोन कर के बुलाने पर आखिर करीब ११:३० पर सौरभ भी आ गया | हर बार की तरह फिर सब नींद के आगोश में समाने लगे थे परन्तु जाना तो था ही | थोडी कोशिशों के बाद सब निकल पड़े |
चूँकि हम अब तक नवनिर्मित बान्द्रा वरली समुद्री सेतु पर नहीं गए थे तो टैक्सी पकड़ कर इस रास्ते से छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के लिए चल पड़े | टैक्सी को इस पर से जाने के लिए ५० रूपये टोल देना पड़ता है परन्तु समुद्री सेतु के उपर १५ मिनट की यह यात्रा भी अच्छा अनुभव थी | हमारा मन था की टैक्सी रोक कर थोडी देर यहाँ से नज़रों का आनंद लिया जाये परन्तु सेतु पर गाड़ी रोकना सख्त मना है |
करीब १२:२५ पर हम लोग छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पहुँच गए | संतोष टिकेट लेने चला गया और हम लोग चाय पी कर ट्रेन में चढ़ गए | यहाँ से कर्जत के लिए १२:३८ पर आखिरी लोकल निकलती है और किराया मात्र १८ रुपये | करीब ३:२० पर हम लोग कर्जत स्टेशन पहुँच गए | यहाँ पर इस समय बहुत से लोग थे | ये सब भी ट्रेक के लिए ही आये हुए थे | हमने सोचा कि हो सकता है बस स्टेशन पर भीड़ कम हो और कुछ कुछ नींद पूरी कर सकें | बस स्टेशन जा कर देखा कि वहां भी जगह नहीं थी | आखिर में हम लोग स्टेशन के वरामदे में ही सो गए | थोडी देर के बाद अधिकतर लोग जा चुके थे और बस स्टेशन के प्रभारी से पूछने पर पता चला कि कोण्डाने गाँव के लिए कोई बस नहीं है |
दूसरा विकल्प ये था कि हम एक बस पकड़ कर खान्डपे गाँव तक चले जाये और वहां से पैदल ही कोण्डाने गाँव पहुंचें | खान्डपे से कोण्डाने २-३ किलोमीटर दूर है | ये दूरी ज्यादा नहीं थी इसलिए हम इसी बस से निकलने के लिए तैयार हो गए |
कर्जत से खान्डपे :
खान्डपे के लिए बस का समय सुबह ५:४५ का था इसलिए हमने सोचा कि थोडी देर सो लिया जाये | लेकिन बरसात के मौसम कि वजह से मच्छरों ने सोने तक नहीं दिया | कर्जत स्टेशन के सामने ही एक घर है | यहाँ पर एक अंकल जी सुबह सुबह ट्रेकिंग के लिए जाने वालों के लिए कांदा पोहा और चाय उपलब्ध करा देते हैं | दो दो प्लेट कांदा पोहा और चाय पीने के बाद हम बस से खान्डपे की तरफ चल दिए | यह बस संड़सी जाने वाली थी जिससे हम ढाक बहिरी ट्रेक के लिए गए थे | ठंडे मौसम में बस कि यह यात्रा बहुत सुकून भरी थी | पतली सी सड़क और चारों तरफ हरियाली सबको ट्रेक के लिए तरोताजा कर गयी |
खान्डपे से ट्रेक का प्रारंभ :
करीब ६:२० पर हम खान्डपे गाँव पहुँच गए | मात्र ८ रूपये का टिकेट था | यह एक छोटा सा गाँव था और चारों तरफ पहाडियों और बादलों का दृश्य बहुत ही खूबसूरत | यहाँ से हमे कोण्डाने गाँव तक सड़क से ही जाना था | थोडी देर चलने
के बाद कोंडिवडी गाँव आया और इसके आगे कोण्डाने गाँव था | एक छोटी सी नदी के किनारे किनारे यह रास्ता आसान
(कोण्डाने और कोंडिवडी गाँव के नाम के उच्चारण में थोडा संशय है क्योंकि मुझसे मराठी का उच्चारण कभी कभी गलत हो जाता है )
कोण्डाने गाँव से थोडा आगे बढ़ने पर एक जगह रास्ता दो में बंट जाता है | हमसे आगे कुछ लोग नीचे वाला रास्ता पकड़ कर निकल गए | हम लोग सोच रहे थे कि किस रास्ते को पकडे तभी संतोष को एक चाय की दुकान दिख पड़ी | वहां जा कर पूछा तो पता चला की अगर कोण्डाना गुफाओं तक जाना है तो उपर की तरफ जाना पड़ेगा | हमे कोण्डाना गुफाओं से होते हुए राजमाची जाना था इसलिए हम उपर की तरफ चल पड़े | उन्होंने बताया की इसके आगे राजमाची तक चाय वगेरह कुछ नहीं मिलेगा | हम इसके लिए तैयार थे इसलिए सीधे आगे बढ़ चले |
राजमाची का रास्ता आसान नहीं था और सीधी खड़ी चढाई थी | आगे घने जंगलों में रास्ता भटकने का भी खतरा था | बरसात के इस मौसम में ये चढाई और भी मुश्किल थी | यहाँ से आगे बढ़ने पर थोडा उपर चढ़ कर एक जगह थोडा आराम किया और आगे बढ़ चले | इस सीधी चढाई के बाद कुछ देर रास्ता आसान ही था | आधा घंटा और चले होंगे कि एक छोटा सा और खूबसूरत झरना सामने था | हमसे पहले एक ट्रेकिंग ग्रुप जा चुका था | वो लोग रास्ते पर खड़े होकर
ही झरने का आनंद ले रहे थे | लेकिन झरना देखते ही पता नहीं मुझे क्या हुआ और मैं दौड़ता हुआ झरने कि तरफ चल दिया | पीछे पीछे सब लोग आ गए और अब समय था झरने में नहाने का | पानी बहुत ठंडा था और तेजी से नीचे आ रहा था | यहाँ पर जम के नहाने के बाद फोटोग्राफी की और रास्ते पर वापस आ कर आगे चल पड़े |
कोण्डाना गुफाएं :
करीब आधा घंटा और चढ़े होंगे की सामने से कुछ लोगों की आवाजें सुनाई दी | हम समझ गए थे की हमसे पहले जाने वाले ट्रेकिंग ग्रुप के ही लोग होंगे | थोडा और उपर जाने के बाद सौरभ को एक बड़ा सा झरना दिख गया | एक बहुत
बड़ी काली चट्टान के उपर से पानी गिर रहा था | २-४ कदम आगे बढे होंगे की कोंडाना की गुफाएं हमारे सामने थी | कोंडाना गुफाओं का एक आकर्षण इसके सामने बड़ा सा झरना भी है | घने जंगल में इन गुफाओं की भव्यता और शिल्प देख कर एक बार फिर हम सब अचंभित थे | मयंक ने बताया कि इन गुफाओं का पता कुछ दशक पहले ही चला है |
वास्तव में एक विशालकाय काले रंग की चट्टान को काट कर बनायीं गयी इतनी बड़ी गुफाएं किसी को भी आश्चर्यचकित कर देंगी | गुफा के द्वार पर इतना बड़ा झरना इस सौंदर्य को कई गुना कर दे रहा था | इन गुफाओं में से एक में बौद्ध स्तूप भी है | ये बौद्ध स्थापत्य का सुन्दर नमूना हैं | बाद में पता चला की ये हीनयान बौद्ध सम्प्रदाय की शैली में बनी हुई हैं
कोंडाना से राजमाची :
कोंडाना गुफाओं की सुन्दरता और भव्यता से अभिभूत होने के बाद अब हमें आगे चलना था क्योंकि राजमाची बहुत दूर था और शाम को वापस भी आना था | इसके आगे का रास्ता बहुत दुर्गम चढाई वाला था | थोडी देर बाद हम ऐसी जगह
अब रास्ता मिल चुका था और हम उपर चढ़ने लगे | थोडी देर में वो ५ लोग भी दूसरी तरफ से उपर आ गए | थोडी दूर जा कर हमें वो लोग भी मिल गए जो कोंडाना गुफाओं में मिले थे | यहाँ एक मैदान सा था और ये सब आराम कर रहे थे | इनके पास जा कर पता चला कि ये लोग थक चुके हैं और अब यहीं से वापस चले जायेंगे |
अब तक हम लोग भी बहुत थक चुके थे परन्तु अब हमने सोचा कि अगर देर हो गई तो राजमाची में ही रात काट ली जायेगी और सुबह वापस चल पड़ेंगे | थोडा आगे बढ़ने पर एक लड़का मिला जो भुट्टा बेच रहा था | यहाँ बैठ कर भुट्टे खाए और उससे रास्ते का पता किया | उसने बताया कि अभी १:३० घंटा लगेगा | हम समझ गए कि हम लोगों को कम से कम २ घंटा तो लगेगा ही | लड़का राजमाची गाँव का रहने वाला था और उसने बताया कि हम उसके घर पे जा के खाना खा सकते हैं | अब नए जोश के साथ आगे का ट्रेक शुरू किया | यहाँ से रास्ता जंगलों वाला था और खड़ी
राजमाची गाँव :
गाँव में पहुँच कर एक घर में पानी पिया और दोपहर के खाने का आर्डर दे दिया ( इन ट्रेकिंग के रास्तों पर गाँव के लोग ३०-४० रूपये में लोगों को भोजन उपलब्ध करा देते हैं जो मुझे बहुत अच्छा लगा ) |
गाँव से आगे बढ़ते ही राजमाची के किले दिखने लगे थे | राजमाची में दो शिखरों पर दो किले हैं - श्रीवर्धन और मनरंजन किले | गाँव के बाहर एक स्कूल है जो कुछ NGO समूहों द्वारा संचालित होता है | इतनी दुर्गम जगह पर बसे इस गाँव में ये चीजे दिखाती हैं की लोग कितने जागरूक हैं | थोडा आगे जाने पर चट्टान की तलहटी में कुछ गुफाएं थी जो पानी इकठ्ठा करने के लिए प्रयोग होती थी | इसके आगे दोनों किलों का रास्ता बंट जाता है | यहाँ पर भैरोबा का
मनरंजन किले में :
नीचे से देखने पर ही समझ में आ गया था की उपर तक पहुंचना आसान नहीं है |
लेकिन द्वार को देख कर किले की भव्यता का अंदाजा हो जाता है |इसके अन्दर जाते ही उपर की तरफ से सामने के सुन्दर दृश्य और मनोरंजन किले के अवशेष दिखते हैं | इसके आगे बढ़ने पर चारों तरफ हरी घास थी | यहाँ पर एक
इस जगह बैठ कर इतना सुकून मिला कि एक बार को तो हमने रात गाँव में बिताने का निर्णय ले लिया | परन्तु मयंक के कहने पर १० मिनट में वापस उतरने की बात हुई | यह झरना बहुत बड़ा था और हवा के साथ सफ़ेद पानी उड़ उड़ के गिर रहा था |वास्तव में इस ट्रेक में भी झरने ने मन मोह लिया था |
राजमाची से वापस मुंबई :
अब समय था वापस जाने का | करीब आधे घंटे में हम गाँव पहुँच गए | खाना तैयार था और वाकई बहुत ही स्वादिष्ट था | चावल के आटे की रोटी (मराठी नाम : भाकरी ) और सब्जी खा कर तो मन खुश हो गया | खाने के बाद १०
मिनट आराम किया और वापस चल पड़े | यहाँ पर दो लड़के मिल गए जिनको कोंडाना गुफाओं तक जाना था | दरअसल ये लोग लोनावाला से आये थे | इनको रास्ता बताया और हम तेजी से वापस चलने लगे | ३:३० हो गया था और हमे अँधेरा होने से पहले गाँव पहुंचना था | कुछ जगहों को छोड़ कर वापसी आसान थी | करीबन ६ बजे हम गाँव में पहुँच चुके थे |
यहाँ से एक टमटम (६ सीट वाला टेम्पो ) मिल गया जिसने १५० रूपये में हमे कर्जत स्टेशन तक छोड़ दिया| यहाँ से ट्रेन पकड़ कर हम वापस मुंबई आ गए | सह्याद्रि में और और खूबसूरत ट्रेक सकुशल हो गया परन्तु हर एक ट्रेक के बाद सह्याद्रि से हमारा लगाव बढ़ता ही जा रहा है | बहुत जल्द अगले ट्रेक का प्लान बनने लगा |
फोटो एल्बम यहाँ देखें ...(सौजन्य : मयंक जोशी )
badiya yatra vivran is baar bhi hamesha ki tarah.pura vritant padh kar hi ankho ke aage sajag ho gaya hai.lekh main kai choti per mehatvpurn bato ko bata kar, tracking pe jane wale naye musafiro ke liye suvidha kar di hai. hame aapke agle yatra vritant ka intezar rahega.
जवाब देंहटाएंsuperb yar
जवाब देंहटाएंm gonna mad
aaj se main ise roj hi padhunga
सुन्दर वर्णन और सुन्दर चित्र ।
जवाब देंहटाएंकोंडाना की गुफाएं के बारे में पहली बार जाना. बहुत ही सुन्दर लगी. ऐसे कई स्थल हैं जैसे कान्हेरी , कार्ला आदि परन्तु यह तो अद्वितीय लग रही है. बहुत दुःख हुआ यह जानकार की लोग अन्दर गन्दगी फैला रहे हैं. आभार.
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