शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

लौहगढ़ ट्रेक : सह्याद्रि का अप्रतिम सौन्दर्य

विशेष : यदि आप यहाँ तक पहुँच चुके हैं और इस वृत्तान्त को समयाभाव या किसी अन्य कारणवश नहीं पढ़ पा रहे तो पोस्ट के बीच में लगे विडियो को अवश्य देख लें |


जब तक किसी यात्रा में कुछ विषम और रोमांचकारी अनुभव न हो तो फिर वो अविस्मरणीय नहीं रह पाती | मेरे अब तक के सबसे आसान ट्रेक का अनुभव भी कुछ ऐसा ही था कि अक्सर हम उस दिन को याद कर फिर उस रोमांच का अनुभव कर लेते हैं |

लौहगढ़ :

लौहगढ़ लोनावाला के पास एक किला है | कल्याण और नालासोपारा की खाड़ी और दक्षिण के बाजारों के बीच के बहुत पुराने और महत्वपूर्ण व्यापार के मार्ग पर नियंत्रण रखने की दृष्टि से दो किले बहुत महत्वपूर्ण थे | एक लौहगढ़ और दूसरा राजमाची का किला | हांलांकि अब तक बहुत से किलों के कुछ ही अवशेष बचे हैं परन्तु लौहगढ़ का किला तुलनात्मक दृष्टि से अब तक अच्छी स्थिति में है |
मुंबई पुणे मार्ग पर लोनावाला के पास एक गाँव है मालावली (मराठी : मालावळी )| यहाँ से मात्र ५-७ किलोमीटर की दूरी पर स्थित लौहगढ़ का किला पर्यटकों और ट्रेकिंग के शौकीनों को हमेशा ही आकर्षित करता है |

योजना :
पिछले कुछ सप्ताहांत खाना पकाने और खाने में ही निकल गए और अब समय था सह्याद्रि की हरीतिमा और सौंदर्य का सुखद अनुभव लेने का | अमोल से पता चला कि लोनावाला के पास लौहगढ़ का किला बहुत प्रसिद्द है ट्रेकिंग के लिए और वहां से खूबसूरत बांध के दृश्य भी दिखते हैं | बस हमारा विचार बन गया कि शुक्रवार की रात में लौहगढ़ के लिए निकल लेंगे | अंत में जाने तक हम तीन ही लोग बचे थे , मैं , मयंक और सौरभ | जाने का रास्ता पता कर लिया था और बाकी दिशानिर्देश खांड्गे जी ने दे दिए थे |

मुंबई से लोनावाला :
इन्टरनेट पर महाराष्ट्र राज्य परिवहन की वेब साईट पर खोज बीन की तो पता चला की मालावली गाँव (जो कि लोनावाला के आगे है) के लिए एक बस रात में करीब 1:40 पर दादर से चलती है | मैं और सौरभ अपना बैग ले कर नहीं गए थे तो ऑफिस से वापस लौटे और बान्द्रा में मयंक के घर पर १०.३० पर मिलने की बात हुई | घर जा कर हमारे पास समय था तो स्वादिस्ट परांठे बनाये और जब अपने हाथ का बना खाना हो तो खाने की कोई सीमा नहीं होती | यही हुआ और आलम ये था की हम दोनों की घर से हिलने की इच्छा मर सी गई | मयंक को फोन किया तो पता चला वो और शफीर (हमारे दोस्त) भी भरपेट खा चुके थे | लेकिन हमारे लीडर सौरभ के जोर देने पर हम दोनों आखिर निकल पड़े |
११:३० पर बान्द्रा पहुंचे और एक बार फिर से विचार किया की चला जाये या सो जाएँ | शुक्रिया शफीर भाई का जिन्होंने चाय बना कर पिलाई और हम लोग १२:३० पर निकल पड़े दादर के लिए |
करीब १ बजे दादर पहुंचे तो पता चला की मालावली के लिए १:४० वाली बस सेवा अब बंद हो चुकी है | तुंरत विचार आया की लोनावाला के लिए सुबह ५ बजे ट्रेन मिल जायेगी | परन्तु तब तक क्या करें | वहां पर पुणे के लिए राज्य परिवहन की आखिरी बस लगी हुई थी | बस के ड्राईवर से बात की तो उसने बताया की वो मुंबई पुणे महामार्ग पर हमको लोनावाला के पास उतार देगा | यह प्लान भी ठीक ही था तो हम बस में बैठ गए | इतना खाने के बाद कब नींद आई कुछ पता भी नहीं चला और ड्राईवर के २-३ बार आवाज़ देने के बाद हमारी आंख खुली |
करीब ३:३० हो रहा था सुबह का और हम बस से उतर चुके थे | आँखों में नींद भर कर जब हम उतरे तो अचानक हम तीनो की रूह भी काँप गयी| मूसलाधार बारिश और तेज चलती ठंडी हवा हड्डियों तक पहुँच रही थी | नींद के इस झोंके में समझ भी नहीं आया कि कहाँ जाना है | घना अँधेरा , बारिश और सर्द हवा | ऐसे में हम महा मार्ग पर खड़े थे जहाँ तेज़ चलती गाड़ियों के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था | करीब ५ मिनट खड़े रहने के बाद हमको एहसास हुआ कि हम फ्लाई-ओवर के उपर खड़े थे | यहाँ से एक रोड नीचे उतरती दिखी तो उस तरफ से नीचे उतरे | लेकिन अब क्या | यहाँ तो फिर सड़क थी और हमें किस तरफ जाना था ये नहीं पता था | सुबह समझ में आया कि ये पुराना मुंबई पुणे हाई वे था | इस सड़क पर एक तरफ मुंबई और एक तरफ पुणे का बोर्ड लगा था लेकिन लोनावाला का कोई नाम नहीं | अब तक भीग चुके थे और काँप रहे थे | कुछ देर बाद इसी फ्लाई-ओवर के नीचे शरण लेने का विचार बना लिया और सुबह उजाला होने पर आगे बढ़ने की सोची |

फ्लाई-ओवर के नीचे कुछ दुकाने भी बनी हुई थी| कुछ बेंच भी लगी हुई थी | यहाँ पर बैठने पहुंचे तो देखा कि उपर से बारिश का पूरा पानी आ रहा था | एक कोने में दुकान के शटर के सामने बैठ गए और यकीन मानिये उस हालत में मैंने और मयंक ने नींद की झपकी भी ले ली | सौरभ को नींद नहीं आई और वो इधर उधर भटक रहा था | थोडी देर में उजाला होने लगा और कुछ कुछ दिखने लगा था | एक तरफ कुछ घर से दिखे तो हम उस दिशा में बढ़ने लगे | थोडा आगे चलकर लोग भी दिखने लगे थे | पता चला कि वहां से करीबन १ किलोमीटर दूर लोनावाला था | थोडी दूर चलने के बाद एक जगह आमलेट-पाव खाया और चाय पी | चाय वाले ने बताया कि ७ बजे लोनावाला से पुणे के लिए पहली लोकल निकलती है जिसको पकड़ कर हम पहले स्टेशन मालावली पर उतर सकते हैं |

लोनावाला से मालावली और भाजे गाँव :
थोडी ही दूर पे स्टेशन था | यहाँ से ७ बजे की पुणे के लिए पहली लोकल पकडी | अगला स्टेशन मालावली था और हम लोग उतर गए |थोडी फोटोग्राफी की स्टेशन पर और बाहर निकल गए | स्टेशन से बाहर निकल कर एक छोटी सी दुकान थी | यहाँ चाय पी और रास्ते के लिए कुछ वड़ा पाव और बिस्कुट खरीद लिए | अब यहाँ से आगे बढ़ चले | लोहगढ़ का ट्रेक भजे गाँव से प्रारंभ होता है जो मालावली से २-३ किलोमीटर दूर है | यहाँ तक पक्की सड़क पर ही चलना था | रास्ते पर ही कुछ झरने मिलने शुरू हो गए जो आगे के ट्रेक के लिए अच्छा संकेत था | सप्ताहांत और आसान ट्रेक होने की वजह से यहाँ पर लोगों की भीड़ भी ज्यादा थी | बहुत से लोग तो बस भाजे गाँव से पहले वाले झरने का आनंद लेने ही आये हुए थे | सौरभ ने कुछ जगहों पर पानी में जा कर आनंद लिया और फिर हम आगे चल पड़े क्योंकि हमारी मंजिल तो लोहगढ़ थी |

भाजे गाँव से लौहगढ़ :
यह ट्रेक बाकी ट्रेक्स की तुलना में बहुत आसान है परन्तु यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य अनुपम है | चारों तरफ झरने ही झरने और हरियाली ट्रेक को बहुत ही सुन्दर बना देती है | यहाँ पर दो किले हैं , वीजापुर किला और लोहगढ़ किला | साथ ही कुछ गुफाएं भी हैं | भाजे गाँव से आगे बढ़ते ही एक रास्ता काली गुफाओं की तरफ कट जाता है जो की सामने दिखती हैं | लेकिन हम लोग सीधे लोहगढ़ की तरफ चल दिए | ये रास्ता एक कच्ची सड़क जैसा है और बीच में शोर्ट कट्स आपको सीधे उपर की तरफ ले जाते हैं |
इस रास्ते पर तकरीबन आधे घंटे चलने के बाद एक छोटा सा घास का मैदान सा दिखा | हम लोग रास्ते से अलग हट कर इस तरफ चल दिए | ये जगह वास्तव में बहुत ही सुन्दर थी | पीछे लोहगढ़ किले वाली पहाडी और उसमे न जाने कितने झरने |
शांत वातावरण में उस पानी की मधुर ध्वनि उस जगह को और भी आकर्षक बना दे रही थी | कुछ देर तक यहीं पे घूमते रहे , कुछ फोटोग्राफी की और विडियो भी बनाये |लोहगढ़ का किला पहाडी के उपर था जो बादलों से ढका हुआ था और ये दृश्य इतना सुन्दर था कि में शब्दों में नहीं लिख सकता | अब वापस रास्ते पर जाने के लिए सीधा उपर की तरफ चढ़ने लगे | थोडा उपर चल कर रास्ता मिल गया | यहाँ भी छोटा सा समतल मैदान था और एक चाय की दुकान भी मिल गई | यहाँ रुक कर चाय पी और नज़रों का आनंद लिया | यहाँ से बारिश बहुत तेज़ होने लगी थी इसलिए कुछ देर यहीं पे रुक गए |
यहाँ से एक रास्ता वीजापुर के लिए चला जाता है जो कि सामने वाली पहाडी पर है | बारिश कम होने पर हम लोहगढ़ वाले रास्ते पर चल पड़े |
थोडा आगे चलते ही हम विजापुर किले वाली पहाडी कि तलहटी में थे और पहाडी के उपर से एज झरना गिर रहा था | हवाओं की गति बहुत ज्यादा थी और वो इस पानी को दूर दूर तक उड़ा ले जा रही थी | यह दृश्य देख कर तो कदम थम से गए | हम यहीं पर खड़े खड़े बहुत देर तक यही देखते रहे | इतना सुखद अनुभव तो अब तक किसी ट्रेक में नहीं हुआ था | अब यहाँ से आगे बड़े लोहगढ़ कि तरफ | थोडी दूर पर एक छोटी सी दुकान दिख गई | यहाँ पर गरमा गरम भुट्टों का आनंद लिया और आगे बढ़ने लगे | कुछ देर बाद हम लोहगढ़ कि तलहटी में थे | यहाँ से सीढियां शुरू हो जाती हैं जो लोहगढ़ तक जाती हैं |



लोहगढ़ किले में :

नीचे से देखने पर ही इस किले कि भव्यता का अंदाजा हो जा रहा था | विशाल द्वार और उपर बुर्ज नीचे से ही दिख रहे थे | इस किले को पहाडी के इतना उपर इतनी खूबसूरती से बनाया गया था कि हम सब देख कर अचंभित रह गए | इस निर्माण को देख कर हम लोग उस समय की स्थापत्य कला और तकनीकी कौशल की आज कल के निर्माण से तुलना करने लगे | वास्तव में इतने वर्ष बीत जाने पर भी यह किले गौरवशाली इतिहास की याद दिलाते हैं |
किले के मुख्य द्वार से अन्दर प्रवेश करने के बाद एक छोटी सी गुफा है | गुफा के बाहर उपर चट्टानों से पानी गिरता रहता है | इसके बाद उपर चढ़ने पर सामने पवाना बाँध का सुन्दर दृश्य सामने था | चूँकि अभी बारिश हो रही थी तो हमने आगे बढ़ कर किले में घूमना उचित समझा | थोडा आगे बढ़ने पर एक और द्वार था | इस द्वार के आगे जाने पर सामने किले का बुर्ज आ जाता है जहाँ पर झंडा फहराया जाता है | थोडा और आगे जाने पर एक शिव मंदिर है |


इसके पास में ही एक पुरानी छोटी सी मस्जिद भी बनी हुई है | अब तक हम लोग पूरी तरह भीग चुके थे और किले के उपर जाने पर हवाएं इतनी तेज़ थी की कंकंपी छुट रही थी | इसके थोडा और उपर चढ़ने पर एक मजार है जहाँ पर तेज़ हवाओं की वजह से रुकना नामुमकिन हो गया | हमें उम्मीद थी कि यहाँ से सामने के सुन्दर दृश्य दिखेंगे लेकिन सब बादलों और कोहरे में ढका हुआ था |

अविस्मरनीय अनुभव : उपर आता झरना



सौरभ दूसरी दिशा में कहीं जा चुका था और घने कोहरे कि वजह से दिख नहीं रहा था | तभी उसकी आवाज़ आई | वो हमको बुला रहा था| लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि किस तरफ जाना है | थोडी देर में वो दौड़ता हुआ आया और उसने बताया कि बहुत ही अच्छी जगह दिख पड़ी है उसे | किले के उपर ही दूसरी तरफ एक झरना था | यहाँ पहुँचने पर अचानक पानी कि तेज़ बौछारें हमपे पड़ने लगी | अरे वाह ! हम झरने के उपर थे और नीचे से आती तेज़ हवा गिरते हुए पानी को वापस उपर फैंक रही थी | सह्याद्रि के मेरे अब तक के सारे ट्रेक्स में सबसे खूबसूरत अनुभव यही था |

इस झरने का विडियो देखें :


यहाँ पर हम करीब १ घंटे तक रुके रहे | हवाए इतनी तेज़ थी की मानो उड़ा ले जाएँगी और ठण्ड से सब काँप रहे थे | कोहरे की वजह से लोग इस तरफ नहीं आ रहे थे | बस २-३ और लोग थे यहाँ पर | हम बिलकुल किनारे पे खड़े थे और अचानक हवाओं के साथ कभी कोहरा उड़ जाता तो सामने का सुन्दर दृश्य दिख पड़ता था और अगले ही पल फिर ढक जाता था | इस आंख मिचोली में कुछ दिखा कुछ नहीं दिखा | आखिर अब हम वापस चल पड़े | अचानक बारिश तेज़ हो गई और हवाओं की वजह से हम सब काँपने लगे | कोई सर छुपाने की जगह भी नहीं थी | कांपते कांपते किले के द्वार की तरफ आये | यहाँ एक चाय की छोटी सी दुकान थी |
चाय पीने के बाद वापस नीचे उतरे तो वो जगह आ गई जहाँ वापसी में रुकने वाले थे | यहाँ कोने में जा कर बैठ गए और पावना बांध के सुन्दर दृश्यों का आनंद लिया | करीब आधे घंटे तक यहाँ बैठे रहे | हवा के साथ उड़ते बादल , कभी धूप कभी बारिश और मौसम के इतने रंग | सामने के दृश्य अवर्णनीय थे |

मुंबई के नज़दीक मानसून में जाना हो तो सबसे अच्छी जगह यही है और आप यहाँ जा कर निराश नहीं हो सकते | यहाँ से फोटोग्राफी करने के बाद अब समय था वापसलौटने का |


लौहगढ़ से मुंबई वापस :
नीचे उतरना भी आसान नहीं था | चट्टानों पे सीढियां बनी हुई थी और उपर से तेजी से पानी बह रहा था | धीरे धीरे नीचे उतरने के बाद किले की तलहटी में चाय पी | अब तक भूख भी लग गई थी तो वड़ा पाव खाए | इसके बाद धीरे धीरे भीगते हुए वापस मालावली की तरफ चल दिए |

मालावली पहुँच कर पता चला कि लोनावाला के लिए लोकल ट्रेन ५ बजे शाम को आएगी | अभी ३ बज रहा था इसलिए हमने ऑटो से लोनावाला जाना ज्यादा सही समझा | १८० रूपये में हम ऑटो से लोनावाला पहुँच गए | ३:४५ हो चुका था और मुंबई के लिए ४:४५ पर ट्रेन थी | सारे कपडे , बैग और कैमरा भीग चुका था | ऐसे ही भीगे कपडों में हम वापस मुंबई के लिए चल पड़े |

वास्तव में सह्याद्रि में सबसे खूबसूरत और आसान ट्रेक लोहगढ़ ही है | उपर आते झरने के उस अनुभव और रोमांच को मैं कभी नहीं भूल सकता |

फोटो एल्बम यहाँ देखें ...(सौजन्य : मयंक जोशी )

8 टिप्‍पणियां:

  1. लौहगढ़ के बारे में बहुत अच्छी और महत्वपूर्ण जानकारी दी है।

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  2. बहुत ही सुन्दर यात्रा वृत्तांत. आप लोगों ने रात को निकल कर गलती की. सुबह सुबह निकलना था. विडियो वास्तव में आश्चर्यजनक है. थोडा बहुत लौहगढ़ के इतिहास के बारे में भी बता देते तो अच्छा होता. अबकी बार नानेघाट हो आना.

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  3. धन्यवाद !!! आप लोगों का पढने और सराहने के लिए |
    दरअसल हम लोग सुबह निकलने की ही सोच रहे थे परन्तु सुबह की नींद से उठकर जाना थोडा मुश्किल हो जाता है कभी कभी इसलिए अक्सर रात में ही निकल पड़ते हैं हम लोग |

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  4. bahut sunder yatra varutaant
    waah maza aa gaya
    sahi aish kar rahe ho
    zindgi aazaad panchhi ki tarah ji rahe ho

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  5. निपुण भाई निहायत ही उम्दा किस्म का ब्लॉग लिखा है भाई तुने .
    अत्यंत ही लाभप्रद जानकारिया प्राप्त
    हुई

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  6. निपुण भाई आपकी लोह गढ़ की यात्रा बढ़ी रोमांचक लगी. वहां के द्रश्य दिल को छू लेने वाले थे. मैंने अभी तक आपके सारे अनुभव नहीं पढ़े हैं लेकिन समय मिलते ही अवस्य पढूंगा . आपकी अगली यात्रा कहाँ की है. अवस्य बताएं . आपका मित्र दीपक कश्यप.

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पढ़ ही डाला है आपने, तो जरा अपने विचार तो बताते जाइये .....