कम से कम १० बार ऐसा हुआ कि हरिश्चन्द्रगढ़ का ट्रेक करने का प्लान बनता और आखिरी लम्हों में पता नहीं कुछ ऐसा हो जाता कि प्लान धरा का धरा रह जाता | यहाँ तक कि ऐसा लगने लगा था कि शायद हम कभी जा पायें या नहीं | इस बार सोमवार की छुट्टी थी और ३ दिन का सप्ताहान्त मिल गया | बहुत दिनों से मन था कि २-३ दिन का ट्रेक किया जाये ताकि मुंबई के कोलाहल से दूर प्रकृति के सुखद अनुभव को लिया जाये | यह सोचकर हमने ३ दिन का रतनगढ़ से हरिश्चन्द्रगढ़ का ट्रेक प्लान किया | तीन दिनों तक गाँव और जंगलों में चलना था और गुफाओं में बसेरा करना था | संतोष को किसी काम की वजह से अपने घर (हैदराबाद) जाना पड़ गया तो हम ३ लोग : मयंक , सौरभ और मैं इस ट्रेक के लिए तैयार थे | साथ ही इस बार हमारे ऑफिस के ही मेनेजर साहब (अभिषेक ) भी हमारे साथ चलने के इच्छुक थे तो अब हम चार लोग शुक्रवार का इंतज़ार करने लगे |
रतनगढ़ :
सह्याद्रि पर्वत श्रंखला की सबसे ऊँची चोटियाँ इगतपुरी खण्ड में आती हैं | इसके बाद सह्याद्रि का विस्तार कर्जत से होते हुए पुणे और फिर कोंकण तक है | भन्डारधारा झील के पास स्थित रतनगढ़ ट्रेकर्स को अपने सुन्दर दृश्यों की वजह से बहुत आकर्षित करती है | यहाँ की देवी रत्नेश्वरी देवी के नाम पर इस किले का नाम रतनगढ़ पड़ा | इस किले को छत्रपति शिवाजी ने अपने कब्जे में कर लिया था और यह उनके कुछ प्रिय किलों में से एक था | इस चोटी से चारों तरफ के आकर्षक दृश्य आपके सामने होते हैं | यहाँ से सह्याद्रि की सबसे ऊँची चोटी कलसुबाई और उससे लगी हुई कुलांग-मदान-अलांग चोटियाँ भी पास ही हैं |
हरिश्चन्द्रगढ़ :
हरिश्चन्द्रगढ़ की गणना बहुत प्राचीन किलों में होती है |बहुत से पुराणों (मत्स्यपुराण , अग्निपुराण , और स्कन्दपुराण आदि) में इसका उल्लेख मिलता है | इस किले को छठी शताब्दी में कलचुरी वंश के शासनकाल में बना हुआ माना जाता है | बहुत सी गुफाएं ११वीं शताब्दी में बनी हुई मानी गई हैं | गुफाओं में भगवान विष्णु की मूर्तियाँ हैं | यहाँ के विविध निर्माण इसके बाद यहाँ विभिन्न संस्कृतियों के आगमन को दर्शाते हैं | खीरेश्वर गाँव में नागेश्वर मंदिर , हरिश्चंद्रेश्वर मंदिर और केदारेश्वर गुफा में बनी अनुकृतियाँ इस किले को मध्यकालीन समय का बताती हैं | इसके बाद यह किला मुगलों के नियंत्रण में था जिसे मराठा वंश ने सन १७४७ में अपने नियंत्रण में ले लिया |
इस एतिहासिक महत्व के साथ ही यहाँ और भी जगहें बहुत प्रसिद्ध हैं : कोंकण काड़ा , तारामती चोटी, केदारेश्वर गुफा ,हरिश्चंद्रेश्वर मंदिर आदि |
हमारे बस/ट्रेक का मार्ग इस प्रकार था :
मुंबई - इगतपुरी - घोटी - शेंडी गाँव - भन्डारधारा झील - (ट्रेक प्रारंभ )रतन वाड़ी गाँव - रतनगढ़- कटारबाई खिंड (दर्रा / पास )- कुमशेट गाँव - पछेती वाड़ी गाँव - पाचनै गाँव - हरिश्चन्द्रगढ़ - खीरेश्वर गाँव - खूबी फाटा (ट्रेक सम्पूर्ण )- कल्याण - मुंबई |
मुंबई से शेंडी गाँव :
इन्टरनेट पर मिली जानकारी के आधार पर हम लोगों ने पहले महानगरी एक्सप्रेस जो कि रात को १२ बजे मुंबई से चलती
इस बस के कंडक्टर ने बताया कि वो हमको इगतपुरी के बाहर ही महामार्ग पर उतार देगा जहाँ से हम पुणे वाली बस पकड़ सकते हैं | यही एक मात्र विकल्प था इसलिए इसी बस में बैठ गए | इस बस का कंडक्टर ने थोडा सोचकर हमको दूसरा उपाय बताया कि हम घोटी के पास उतार सकते हैं | घोटी इगतपुरी से थोडा आगे एक छोटी सी जगह है जो पुणे इगतपुरी मार्ग पर है | चूँकि रात में पुणे वाली बस महामार्ग पर रुके या न रुके इसलिए हमने भी ये उचित समझा | १ बजे मुंबई से निकल कर हम ५ बजे घोटी के पास उतर गए | कंडक्टर ने हमको एक शार्टकट रास्ता बता दिया था परन्तु अँधेरे और नयी जगह की वजह से हम ज्यादा समझ नहीं पाए | यहाँ उतर कर थोडा पीछे वापस आये और घोटी के लिए सड़क से ही चल पड़े | १.५ किलोमीटर करीब चले होंगे और हम घोटी में थे और समय ५:४५ हो चुका था | पुणे की पहली बस इगतपुरी से ५:३० पर निकलती है जो थोडी ही देर में आ गई | यहाँ से ६ बजे हमने शेंडी के लिए यात्रा शुरू की और करीब ७:३० पर हम शेंडी गाँव पहुँच गए |
पहला दिन : शेंडी गाँव से प्रस्थान :
शेंडी गाँव में चाय पीने के बाद पूछने पर पता चला की यहाँ से नाव या जीप से रतन वाड़ी तक पहुंचा जा सकता है |
भन्डारधारा झील:
यहाँ से आधा किलोमीटर दूर है भन्डारधारा झील | प्रवरा नदी पर सन १९१० में बना हुआ यह बाँध, विल्सन बाँध भारत
बहुत देर तक झील के किनारे बैठे रहे और फोटोग्राफी करते रहे | लेकिन अब तक वो नाव वाला नहीं आया था | आखिर
रतन वाड़ी :
नाव से यह १० किलोमीटर की दूरी तय करना बड़ा ही सुकून भरा अनुभव था | सुबह के सूरज की किरणे , नीला स्वच्छ पानी और वो ताज़ी हवाएं किसी के भी मन को आह्लादित करने के लिए बहुत हैं | नाव वाला बता भी रहा था कि चारों
अमृतेश्वर मंदिर :
बहुत देर तक यहाँ नहाने के बाद अब सब लोग तारो ताज़ा हो चुके थे और गाँव की तरफ बढे | गाँव के किनारे पर पहुत
यहाँ से एक छोटी सी नदी के किनारे किनारे थोडी दूर तक चलना था | लेकिन अब समझ नहीं आ रहा था की नदी के
रतनगढ़ के लिए सीढियां :
करीब १ घंटा और चढ़ने के बाद हम रतन गढ़ के ठीक नीचे थे | यहाँ से सीधी चट्टान थी और इस पर लोहे ही सीढियां
हमारे पीछे पीछे गाइड भी बाकी लोगों को ले कर आ गया | पहली गुफा छोटी सी थी और इसमें मंदिर भी था | गाइड के कहने के मुताबिक हम चार लोग इसमें रुक गए और दूसरे लोग अगली बड़ी गुफा में |
जैसा कि लोगों ने बताया था रतनगढ़ से हरिश्चन्द्रगढ़ का ट्रेक करीब १२ घंटे का है | सुबह जल्दी निकल कर शाम को ही पहुंचा जा सकता है और अगर रास्ता भटक गए तो फिर मुश्किल हो जायेगी | सामने के जंगल देख कर लग भी रहा था कि रास्ता भटकने की सम्भावना बहुत है | हमने इस गाइड से बात की तो उसने बताया की वो चलेगा परन्तु ७०० रूपये
लेगा | हमको थोडा ज्यादा लगा और हमारी बात नहीं बन पायी | फिर हमने अकेले ही जाने का निर्णय लिया | अब लकडी जलाई गई और गरमागरम चाय पीने के बाद समय था रतनगढ़ घूमने का |
रतनगढ़ में :
चाय पी कर मैं, सौरभ और मयंक उपर की तरफ चल पड़े | चूँकि बंदरों का भय था इसलिए दो दो करके जाना था |
गुफा में वापस आ कर कुछ देर बैठे और अब सूर्यास्त का समय होने लगा था | अब सौरभ गुफा में रुका और हम तीनो उपर की तरफ चल दिए | एक जगह बैठ कर सूर्यास्त के सुन्दर दृश्यों का आनंद लिया |
नोट : चूँकि एक साथ बहुत लम्बा वृत्तान्त हो जाएगा इसलिए अगले दो दिनों का वृत्तान्त अगले भाग में लिखूंगा |
amazing...........jaankari bhi aur aapke saath ghoomne ka bhi anand
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