सोमवार, 13 सितंबर 2010

फर्जी घुमक्कड़ त्रयम्बक श्रंखलाओं में...

योजना :
२ साल पहले एक अवसर मिला था त्रयम्बकेश्वर जाने का परिवार के साथ | लेकिन समय की कमी और गर्मी के मौसम की वजह से बस मंदिर के दर्शन ही कर पाया था | परन्तु तब से एक इच्छा थी कि त्रयम्बकेश्वर के चारों ओर फैली हुई सह्याद्रि की इन विहंगम श्रंखलाओं में फिर से जा पाऊँ | इसके लिए वर्षा ऋतु से अच्छा समय और क्या हो सकता था | मेरी इतनी इच्छा देख सौरभ के मन में भी जिज्ञासा हो गयी कि अब जा कर इस सौंदर्य को भी देख ही लिया जाये | दरअसल सह्याद्रि का त्रयम्बकेश्वर क्षेत्र अब तक हमसे अछूता रह गया था | तो पिछले सप्ताहान्त पर दो दिन त्रयम्बक की श्रंखलाओं में घूमने का विचार बना ही लिया | योजना ये थी कि शुक्रवार कि रात में ही मुंबई से निकल कर सुबह सुबह त्रयम्बकेश्वर पंहुचा जाये और ज्योतिर्लिंग के दर्शन के उपरान्त ब्रह्मगिरी पर्वत ( जो कि ब्रह्मा मंदिर और गोदावरी के उद्गम के लिए जाना जाता है ) पर ट्रेक किया जाये और अगले दिन अंजनेरी पर्वत ( जो कि हनुमान के जन्म स्थान और अंजनी माता के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है ) का ट्रेक कर के मुंबई के लिए वापसी कर ली जाये | इस यात्रा में हम तीन लोग मैं , सौरभ और कौसिक जाने वाले थे |

त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग :

भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक त्रयम्बकेश्वर का अपना एक विशिष्ट स्थान है | यहाँ थोड़ी गहराई में तीन छोटे छोटे से लिंग ब्रह्मा , विष्णु , महेश के प्रतीक माने जाते हैं | सफ़ेद संगमरमर के बने ये तीनो लिंग सुबह की पूजा के बाद चाँदी के एक पंचमुखी मुकुट से ढक दिए जाते हैं |
नासिक से २८ किलोमीटर दूर गोदावरी के पवित्र तट पर स्थित यह मंदिर शिल्प कला का अद्भुत नमूना है | इस मंदिर का पुनर्निर्माण श्रीमंत बालाजी बाजीराव (नानासाहेब पेशवा ) द्वारा करवाया गया था | सन १७५५ से लेकर सन १७८६ तक कुल ३१ वर्ष में बने इस मंदिर के निर्माण का खर्च समकालीन मुद्रा में १६ लाख आँका जाता है |

ब्रह्मगिरी पर्वत/ त्रयम्बक गढ़ :

गोदावरी के उद्गम के लिए प्रसिद्द , ब्रह्मगिरी पर्वत अपने आप में श्रद्धा का केंद्र है | गौतम ऋषि , इस पर्वत और गोदावरी के बारे में बहुत सी कथाएं हैं |ये कथाएं ब्रह्मगिरी में स्थित अनेक मंदिरों से जुडी हुई हैं जिनमे से प्रमुख हैं : गोमुख / ब्रह्मा मंदिर (गोदावरी का उद्गम ), जटा मंदिर , गंगाद्वार आदि | ब्रह्मगिरी के शिखर पर त्रयम्बकगढ़ का किला है | त्रयम्बकेश्वर मंदिर से ही सामने फैला हुआ यह विशाल पर्वत बहुत आकर्षित करता है | ब्रह्मगिरी के उत्तर की तरफ एक दर्रा विनायक खिंड कहा जाता है और दक्षिणी ढाल पर महादरवाजा है जो किले का मुख्य द्वार हुआ करता था |
त्रयम्बक गढ़ का किला पहले यादव वंश के अधिपत्य में था | १६२९ ई० में यह किला शाहजीराजे के अधीन हो गया और मुगलों ने १६३६ ई० में इसे जीत लिया |

मुंबई से त्रयम्बकेश्वर : 

हमारा विचार था की शुक्रवार को ऑफिस के बाद रात में कोई नासिक की बस पकड़ ली जाएगी और रात नासिक स्टेशन पे काटने के बाद सुबह सुबह नासिक से त्रयम्बकेश्वर निकल लेंगे | महाराष्ट्र राज्य परिवहन की वेब साईट पर देखने पर पता चला कि रात में ११:१५ पर मुंबई सेंट्रल से त्रयम्बकेश्वर के लिए सीधी बस सेवा है और इसमें आरक्षण भी कराया जा सकता है | शाम को ऑफिस से ही कुछ देर से निकल कर मुंबई सेंट्रल से बस पकड़ी और करीब ५ बजे सुबह हम त्रयम्बकेश्वर में थे |
प्रसिद्ध तीर्थ होने के कारण त्रयम्बकेश्वर कस्बे में होटल और धर्मशालाओं की कोई कमी नही है | हमारा विचार २ दिन रुकने का था तो हमने एक होटल ले लिया और चाय पी कर स्नान आदि से निवृत्त हो कर मंदिर के दर्शन के लिए चल पड़े | उम्मीद के मुताबिक मंदिर में भीड़ थी परन्तु मेरी पिछली यात्रा की तुलना में बहुत कम | दर्शन के लिए करीब १:३० घंटा कतार में लगे रहे | मौसम अच्छा था और हल्की हल्की बारिश की वजह से कोई दिक्कत नही हुई अन्यथा गर्मी के मौसम में चट्टानें धूप से तप जाती हैं और दर्शन के लिए खड़े रहना मुश्किल हो जाता है | मंदिर के दर्शन के बाद हमने कुछ समय मंदिर की दीवारों पर उत्कीर्णसुन्दर कला को देखने में बिताया | काले पत्थर का बना यह मंदिर परिसर बहुत खूबसूरत है और मुख्य मंदिर की दीवारों और शिखर पर विभिन्न मूर्तियाँ उकेरी हुई हैं | मंदिर परिसर में कैमरा और मोबाइल फ़ोन ले जाना वर्जित है |

ब्रह्मगिरी की ओर : 

दर्शन के बाद बाहर निकल कर नाश्ता किया और फिर समय था ब्रह्मगिरी पर्वत की चढ़ाई का | मंदिर से थोडा आगे जाने पर ही कुशावर्त कुण्ड है | प्रतीकात्मक रूप से यहाँ से गोदावरी की धारा निकलती है | इस कुण्ड में स्नान का विशेष महत्व कहा जाता है | यहाँ से आगे त्रयम्बकेश्वर की गलियों से होते हुए हम आबादी से बाहर निकल गये और अब ब्रह्मगिरी की तलहटी में खड़े थे | इस जगह से दो रास्ते हैं , एक से आप ब्रह्मगिरी के शिखर पर पहुचते हैं और दूसरा गंगाद्वार मंदिर की तरफ जाता है | हम ब्रह्मगिरी की ओर चल दिए |
रास्ता शुरुवात में ज्यादा मुश्किल नही है | बहुत से श्रद्धालु जन ब्रह्मा मंदिर के दर्शन के लिए जा रहे थे | थोड़ी देर इस पथरीले रास्ते पर चलने के बाद एक जगह आराम किया और चाय पी | करीब एक घंटा हो गया था और इसके आगे बहुप्रतीक्षित चट्टान पर ही बनी हुई सीढ़ियों का रास्ता है | यहाँ से उपर देखने पर विशाल
चट्टान दिख रही थी और उसपर पानी का एक विशाल झरना था | हल्की हल्की बारिश में चलते हुए अब तक हम लोग भीग चुके थे और प्रकृति के सौंदर्य का भरपूर आनंद उठा रहे थे | ऐसे मौसम में फोटोग्राफी करने में कैमरा भीग जाने का डर था परन्तु बीच बीच में थोड़ी फोटोग्राफी भी कर ले रहे थे |

और यहाँ से शुरू होता है ठीक सीधी चट्टान में रास्ता | दूर से देखने पर तो आप सोच ही नही सकते की आप इसके उपर किसी भी तरीके से जा पाएंगे परन्तु इस पहाडी के उपर पहुचने के लिए भी चट्टान को काट काट कर सीढियां बनी हुई हैं | चट्टान के एक संकरे से कटाव के भीतर से हो कर उपर पंहुचा जा सकता है | मानसून के समय बारिश की वजह से उपर से तेज बहता हुआ पानी सीढ़ियों पर आता रहता है जो इसे थोडा सा मुश्किल बना देता है | पैर को धीरे धीरे जमा कर हम लोग भी उपर चढ़ गये | करीब ३५० सीढियां चढ़ना वो भी इन परिस्थितियों में थोडा रोमांचक था | और इसे और रोमांचक बना रहे थे बन्दर | पूरे रास्ते में बंदरों के झुण्ड मंदिर जाने वाले लोगों के कुछ खाने का सामान मिलने की आशा में खड़े थे | यदा कदा वो आपके सामान पर झपट भी सकते हैं | मेरे पास कुछ ना देख एक बन्दर मेरे
कंधे पर भी चढ़ गया | लेकिन वो गुस्से के मूड में नही था तो थोड़ी देर में उतर कर वापस भी चला गया |
सीढियां ख़त्म होते ही उपर कुछ चाय वगेरह की दुकानें भी हैं | हमें लगा था कि बस अब यहीं पर मंदिर होगा परन्तु अभी तो हम शिखर पर भी नही पहुचे थे | यहाँ से थोडा आसान रास्ता ही था जो उपर कि तरफ जा रहा था | इसी पर चलते हुए हम भी उपर पहुच गये |
यहाँ पहुचते ही घने कोहरे की वजह से कुछ भी दिखना बंद हो गया और हमारा स्वागत किया तेज़ हवाओं ने | यहाँ तक कि लगता था ये हवाएं आपको खड़े भी नही रहने देंगी और पीछे की ओर धकेल रही थी | यहाँ से एक रास्ता पहाडी के दूसरी तरफ नीचे उतरता रहा था और सब लोग इसी दिशा में जा रहे थे | दिखा तो नही परन्तु हमने अनुमान लगाया कि गोदावरी उद्गम और ब्रह्मा मंदिर इसी दिशा में होगा | यहाँ से एक पगडण्डी उपर कि तरफ भी जा रही थी तो हम लोग पहले उपर कि तरफ चल दिए | ब्रह्मगिरी पर्वत का शिखर तो कोहरे और बादलों से ढका था और हम जितना उपर चलते जाते लगता कि बस थोडा और आगे शिखर होगा | आखिर में बहुत उपर पहुच कर हमने वहीँ रुकने कि सोची और बादल छंटने का इंतज़ार करने लगे |
कभी कभी हवा के झोंके के साथ पल भर के लिए बादल उड़ जाते मगर अगले ही पल फिर वही बादलों की घनी चादर | अब बारिश रुक गई थी और तेज़ हवाओं से कपडे भी सूख रहे थे | यहाँ करीब एक घंटा बैठे रहे और फोटोग्राफी भी करते रहे | यहाँ से त्रयम्बकेश्वर कस्बे और आस पास के पहाड़ों के सुन्दर दृश्य कभी कभी दिख जाते थे |
 अब समय था नीचे उतर कर मंदिर की तरफ जाने का | ज्यादा उपयोग ना होने के कारण इस रास्ते पर उतरना थोडा मुश्किल था और फिसलने का डर था | धीरे धीरे हम मुख्य रास्ते पर पहुच गये और यहाँ से उतर कर गोदावरी उद्गम और ब्रह्मा मंदिर पहुच गये | यहाँ गाय के मुह की तरह बनी हुई पत्थर की शिला से पानी की धार निकलती है और एक छोटा सा कुण्ड है | इसके साथ ही लगा हुआ ब्रह्मा मंदिर है | मंदिर के दर्शन कर बाहर निकले और यहाँ चाय पीने के बाद चल पड़ेजटा मंदिर की तरफ |
अब रास्ता पहाड़ के किनारे पर से था और हमें दूसरी तरफ जाना था | रास्ते पर पूरी रेलिंग लगी हुई है और उसके नीचे गहरी खाई है | यहाँ से पानी की अनेक धाराएँ नीचे की तरफ बह रही थी और नीचे से उठ रही तेज़ हवा उसे उपर फैंक रही थी | नीचे कोई छोटी झील थी | अगर मौसम सही हो तो यहाँ से थोड़ी दूर पर विशाल उपरी वैतरणा झील के नज़रों का आनंद लिया जा सकता है | मुंबई के लिए पेय जल का बहुत बड़ा हिस्सा इसी झील से आता है |
थोड़ी दूर पर ही जटा मंदिर है | यह बहुत छोटा सा मंदिर है और इसकी भी अनेक किंवदंतियाँ हैं | यहाँ भी पंडित ने हमें ये सब बताया की कैसे शिवजी ने गोदावरी को अपनी जटाओं में बाँध लिया था और फिर गौतम ऋषि की तपस्या से वो पहाड़ी के दूसरी तरफ निकली |
दरअसल अब हम लोग बुरी तरह संदेह ग्रस्त हो गये थे | गोमुख से गोदावरी निकली , फिर जटा मंदिर पर धरती में विलीन हो गई | जबकि हमने तो गोदावरी को पहाड़ से नीचे जाते देखा था | और कथाओं के अनुसार गोदावरी फिर से पहाडी के दूसरी तरफ निकली जिसे गंगाद्वार कहा जाता है | हम लोगों को कुछ भी समझ नही आ रहा था की इस बात पर कितना यकीन किया जाये | यह कथा तो भागीरथी और शिवजी की भी सुनी थी |
खैर हमने प्रकृति का आनंद उठाना ज्यादा उचित समझा | अब कोहरा थोडा कम हो चुका था और ब्रह्मगिरी पर्वत के शिखर से नीचे तक के ढलान में हरी घास की चादर बहुत सुन्दर लग रही थी | यहाँ से वापस उपर की तरफ गये और फिर दूसरी तरफ उसी सीढ़ियों वाले रास्ते से नीचे उतर गये |
सीढियां ख़त्म होने के बाद अब एक रास्ता गंगाद्वार की तरफ जाता था | हांलांकि हम इन कथाओं से तालमेल नही बैठा पा रहे थे फिर भी हमने सोचा की जा कर मंदिर के दर्शन तो कर लें | करीब आधे घंटे में हम गंगाद्वार पहुच गये | हमें उम्मीद थी की यहाँ से गोदावरी की बड़ी सी धारा निकल रही होगी परन्तु यहाँ पर तो एक छोटा सा कुण्ड ही था | इसे बाहर से देख कर हम वापस नीचे उतर गये | अब बारिश बहुत तेज़ होने लगी थी और हम पूरी तरफ भीग चुके थे | करीब एक घंटे में हम होटल पहुच गये और चाय पी कर अगले दिन की योजना बनाने लगे |
आज का दिन बेहद अच्छा गुजरा था | बस ये गोदावरी के इतने उद्गम होने की बात हजम नही हो पा रही थी | थोडा थकान भी थी तो यह विचार बना कि सुबह उठ कर देखेंगे कि अंजनेरी जाना है या वापस मुंबई | थोड़ी देर में खाना खा कर गहरी नींद में सो गये और सुबह उठे तो सब थके हुए थे | अब निर्णय किया कि वापस मुंबई ही चला जाये | यहाँ से नाशिक की बस पकड़ ली और नाशिक से मुंबई के लिए बस मिल गये | शाम को करीब ६ बजे हम लोग मुंबई पहुच गये | अब बहुत जल्द एक और सप्ताहान्त, त्रयम्बक श्रंखला में ही स्थित हरिहर किले और अंजनेरी पर्वत के ट्रेक की योजना बनानी है |
       --------- घुमन्तू !                

5 टिप्‍पणियां:

  1. भई वाह तस्वीरे तो मनमोहक है .... बढ़िया यात्रा वृत्तान्त

    एक बार पढ़कर अपनी राय दे :-
    (आप कभी सोचा है कि यंत्र क्या होता है ..... ?)
    http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_13.html

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  2. अच्छा लिखे हो दोस्त , पड़ने वालो को ये बताना ज़रूरी है की ,मुंबई जाने का निर्णय हमारे लीडर निपुण जी क ही था , वो थक चुके थे .
    ट्रेक बहुत ही अच्छा था , मौसम सुहाना था , पर सवाल ये है की गोदावरी गयी कहा ??

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  3. सबसे अच्छा ये लगता है की सुन्दर वृतांत के साथ मे मनमोहती सुन्दर तसवीरें मिल जाती हैं... वृतांत तो अपने आप मे ही लाजवाब है और चित्र उसको और सजीव कर देते हैं.. जिससे पढ़ते पढ़ते कई बार अनुभव होने लगता है की मे भी उन रास्तों मे ही कहीं भटक रहा हूँ............ पर हमेशा की तरह मै तुम्हे ४ गालियाँ ही देना चाहूँगा.........कितना दिल जलाओगे दोस्त....

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  4. नमस्कार,
    जाट देवता की राम राम
    सितम्बर से कहाँ हो, लिख नहीं रहे हो?

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पढ़ ही डाला है आपने, तो जरा अपने विचार तो बताते जाइये .....