रविवार, 22 मार्च 2015

मनमोहक मालवण -- भाग १

पुरानी बात नए साल में :)  

दिल्ली से मुम्बई घर परिवार सहित तबादला और फिर विरार से बांद्रा निवास परिवर्तन के बाद पिछले कुछ दिनों से जीवन में थोडा स्थायित्व आ ही गया था कि अचानक से लगा इस दौड़ भाग में घुमक्कड़ी तो कहीं पीछे छूट सी जा रही है । इसी क्रम को आगे बढ़ाने के लिए एक छोटी सी स्फूर्तिदायक यात्रा का विचार बन पड़ा । चूंकि अब घुमंतू पति पत्नी थे तो यात्रा का रुख सह्याद्रि के जंगलों से मोड़ कर कुछ आबाद जगहों की तरफ करना ही था ।

इंटरनेट पर खोजते खोजते आखिर कोंकण में एक सप्ताहांत बिताने का विचार बना । परन्तु अब सवाल यह था कि इतने बड़े कोंकण में दो दिन के लिए कौन सी जगह चुनी जाये जहाँ कुछ एकदम नया देखने सुनने को मिल सके ।

कोंकण में स्थित मालवण के बारे में अब तक मैंने सुना तो था परन्तु ज्यादा कुछ पता नहीं था । इंटरनेट पर कुछ और पढ़ने के बाद लगा कि दो दिन मालवण में बिताना सचमुच एक अलग सा अनुभव हो सकता है तो मैंने झटपट मालवण पर मुहर लगा दी ।

मालवण , महाराष्ट्र के सुदूर दक्षिण में सिंधुदुर्ग जिले में सागर तट पर बसा हुआ एक छोटा सा क़स्बा है । मालवण अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (प्रसिद्द सिंधुदुर्ग किले ) , मालवणी हापुस आम , और मालवणी खाने के लिए बहुत प्रसिद्ध है । मालवण और इसके आस पास के सागर तट अपने स्वच्छ पानी के कारण बहुत लोकप्रिय हैं । इन सब में तारकर्ली गाँव के किनारे तारकर्ली बीच बहुत आकर्षक है ।
अब अगला काम था यात्रा की योजना बनाने का । सबसे पहले ट्रेन और आरक्षण कि स्थिति देखी तो उम्मीद के मुताबिक निराशा ही हाथ लगी । मुम्बई से मालवण जाने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन कुडाल है जो मालवण से तीस किलोमीटर दूर है । कुछ खोजने के बाद मुम्बई से कुडाल के लिए प्राइवेट बस में आरक्षण मिल गया । अब वो दिन तो लद चुके थे जब प्लान बना और हम घुमक्कड़ चल दिए मुँह उठा कर । अब तो पत्नी के साथ यात्रा पर जाना था तो रहने का ठिकाना भी पहले से खोजना जरूरी था । बहुत देर इंटरनेट पर माथा पच्ची करने के बाद आखिर में मालवण से करीब ६ किलोमीटर दूर तारकर्ली में एक रिसोर्ट में कमरा बुक कर लिया ।
मालवण सिंधुदुर्ग 
शाम को ऑफिस से निकलकर बांद्रा से ही बस पकड़ ली और सुबह ७ बजे हम कुडाल पहुच गए । कुडाल में दो बस स्टेशन हैं । पुराना बस स्टेशन शहर के बीच में है और शहर के किनारे से गुजरने वाले मुम्बई गोआ महामार्ग पर नया बस स्टेशन बना है । हमें इस बस ने नए बस स्टेशन पर छोड़ दिया । यहाँ कुछ पूछताछ करने पर पता चला कि मालवण के लिए एस टी (महाराष्ट्र राज्य परिवहन ) की बस पुराने बस स्टेशन से मिलेगी । यहाँ से ४० रुपये में ऑटो पकड़कर हम कुडाल के पुराने बस स्टेशन की तरफ चल दिए ।

मौसम थोडा ठंडा था और हम मुम्बई के मौसम की आदतन गर्म कपडे ले जाना भूल गए थे। इस ठण्ड को देख कर थोडा अच्छा भी लग रहा था क्योकि मुम्बई में रहते हुए ठण्ड के मौसम का कभी एहसास ही नहीं होता । बस स्टेशन पर थोडा इन्तेजार करने के बाद मालवण की बस मिल गयी।  समुद्र तटीय स्थानों और गाँवों के मनोरम दृश्यों के बीच पतली सी सड़क पर हिचकोले खाते हुए हम एक घंटे में मालवण पहुँच गए 
मैं हमेशा से महाराष्ट्र राज्य परिवहन की सुदूर स्थाओं तक नियमित और समय पर चलने वाली बस सेवाओं से बहुत प्रभावित रहा हूँ । आज फिर वही अनुभव तब हुआ जब १० मिनट रुकने पर ही मालवण से तारकर्ली के लिए बस मिल गयी । बस १५ मिनट में मात्र ९ रूपये के टिकट पर हम तारकर्ली पहुँच गए । यहाँ उतरकर पता चला कि हम अपने रिसोर्ट से करीब एक किलोमीटर पहले उतर गए थे । खैर सुबह की हल्की सी ठण्ड और गुनगुनी धुप का लुत्फ़ लेते हुए हम चहलकदमी करते हुए सी -व्यू रिसोर्ट पहुँच गए । यह रिसोर्ट तारकर्ली बीच के किनारे पर ही था और इस सुन्दर नज़ारे को देखकर यात्रा के पहले चरण में ही दिल बाग़ बाग़ हो गया ।
रिसॉर्ट में चेक इन करने के बाद हमने जल्दी से नाश्ता किया और हम चल दिए बीच की तरफ । 

सचमुच तारकर्ली बीच के बारे में जितना इंटरनेट पर पढ़ा था उससे कहीं ज्यादा अच्छा अनुभव था ।बीच के स्वच्छ पानी में कुछ देर नहाने के बाद हम वापस अपने कमरे में आ गए । कुछ देर आराम करने के बाद अब हमारा अगला प्लान था सिंधुदुर्ग किले को देखने का और फिर सूर्यास्त से पहले वापस तारकर्ली आकर बीच पर सूर्यास्त का आनंद लेने का ।
यहाँ से ऑटो पकड़ कर हम सीधे मालवण जेट्टी पर पहुंच गए । अच्छी धूप  खिली हुई थी और दूर तक फैले समुद्र के बीच में सिंधुदुर्ग किला तना हुआ अपनी शान की कहानी बयां कर रहा था । जेट्टी पर टिकट लिया और कुछ देर सवारियों का  इंतज़ार करने के बाद नाव किले की और चल पड़ी । 



एक बार किले के भीतर प्रवेश करने पर किले की भव्यता का जो अनुमान लगाया था , उससे कहीं ज्यादा ही पाया । किले के भीतर एक मंदिर तथा कुछ घर भी हैं ।  सीधे रस्ते से चलते हुए हम किले की मुख्य दीवार के ऊपर पहुंच गए जिसमें बीच बीच में बुर्ज बने हुए थे। यहाँ से एक तरफ मालवण के बीच और किनारे किनारे लगे नारियल के पेड़ों की कतार का मनभावन नजारा था और दूसरी तरफ अनंत तक विस्तार लिए नीले समुद्र का नज़ारा जो कहीं दूर नीले आकाश में जा लगा था ।  इसके बीच बीच में थी कुछ नौकाएं और उनपे फहराते हुए विभिन्न रंगों के ध्वज । 

अब हम मुख्य दीवार के ऊपर ही किले की दूसरी तरफ चलने लगे । आगे दूर तक दीवार थी और भीतर  कुछ खंडहरों के सिवाय कुछ नहीं था । इस दीवार के दूसरी तरफ बहुत नीचे समुद्र का स्वच्छ पानी और उसके भी पार समुद्र के तली पर चट्टानों के खूबसूरत रंग बिखरे हुए थे । सचमुच इतना शांत और स्वच्छ समुद्र का किनारा आज पहली बार देखने को मिल रहा था । 


आगे कुछ दूर पर दीवार टूटी हुई थी इसलिए हमें यहीं रुकना पड़ा । शायद दूर होने की वज़ह से अधिकतर लोग जो हमारे साथ नाव में आये थे इस तरफ नहीं आये । हमने भी कुछ देर इस जगह बैठकर प्रकृति के इन सुन्दर दृश्यों का लुत्फ़ उठाया । कई बार ऐसा होता है की आप कभी प्रकृति में ऐसे रम जाते हैं कि उस जगह से हटना ही नहीं चाहते। ठीक वही हाल हमारा भी था  ।  तेज़ पड़ती धूप की किरणें, शीतल हवा के मध्धम झोंके और हौले हौले चट्टानों को छूती लहरों की ध्वनि , कोई भला क्यों उठना चाहे प्रकृति की इस गोद से ।  




लेकिन हम तो समय की सुइयों से बंधे हुए मुसाफ़िर थे और उठ कर वापस जाना ही था । खूबसूरती को एक बार फिर यादों की एलबम में छाप कर हम किले से वापस मालवण की तरफ चल पड़े । मालवण बीच पर एक रेस्तरां में भोजन किया और तुरन्त हम तारकर्ली की  तरफ़ निकल गए जहाँ से हमें सूर्यास्त के सुन्दर नज़ारों का आनंद लेना था । 

एक तस्वीर हमारी भी 
रिसोर्ट में पहुँचते ही चाय पी और पहुंच गए बीच पर ।  इस समय गिने चुने कुछ और लोग भी बीच पर थे और आसमान में घिरते सिन्दूरी रंगों में सराबोर मालूम पड़ रहे थे । कुछ देर में हम भी इन नज़ारों में खोने लगे थे । कुछ खूबसूरत पलों को कैमरे में कैद किया और अंधेरा होते ही हम भी रिसोर्ट की तरफ वापस चल दिए । 







 


 

 

वाह ! इतनी थकान के बावजूद एकदम प्रफुल्लित मन । ये जगह वाकई इतनी सुन्दर थी कि बार बार कैमरे में फोटो देख कर पूरे दिन की घुमक्क्ड़ी को याद कर रहे थे । परन्तु हमें क्या  पता था की इस दिन के लिए कुछ और बेहतरीन तोहफा अभी बाकी है । मालवणी जेवण यानि मालवणी भोजन और उसमे थी स्वादिष्ट सुरमई थाली  :)। आप तो  फोटो में ही आनंद लें :  

1 टिप्पणी:

  1. मार्मिक चित्रण! हो सका तो हम भी इस प्राकृतिक सौंदर्य के दर्शन करने जायेंगे। :)

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पढ़ ही डाला है आपने, तो जरा अपने विचार तो बताते जाइये .....