बहुत कुछ बदल गया ! एक अरसा हो गया है मुंबई से दिल्ली आये हुए । दिल्ली आकर न जाने
वक़्त कहाँ निकल जाता है कि घूमना फिरना बहुत कम हो गया है । इस बीच शादी भी हो गयी और व्यस्तताएं बढती गयी । खैर ! देर
आये दुरुस्त आये ही कहिये कि २०१२ की दूसरी यात्रा हो गयी । इससे पहले साल की शुरुआत में कश्मीर की वादियों में कुछ दिन बिताये थे । अब साल के आखिर में सोचा कि मरुस्थल
नापे जाएँ ।
बात बहुत पुरानी है जब कई साल पहले मुंबई में मयंक बाबू के साथ बैठे बैठे अगले
कुछ सालों में कुछ जगहें घूमने की योजना बनी थी । इनमें से दो जगहों में जाने
का मेरा विशेष मन था । एक तो था कच्छ का रण , जो सौरभ के साथ घूम ही लिया
था । दूसरी थी थार मरुस्थल, जो अब तक नहीं हो पाई थी ।
नवम्बर का महीना अपने आखिरी चरण में था और सर्दी ने पाँव पसारने शुरू कर दिए थे ।
दिल्ली से शाम को दिल्ली जैसलमेर एक्सप्रेस पकड़ कर हम पति पत्नी जैसलमेर के लिए
रवाना हो गये । दिल्ली से जैसलमेर के लिए यही एकमात्र ट्रेन है और हर पंद्रह बीस मिनट
के अंतराल पर अगला स्टेशन आ जाता है । खैर भोजन करने के बाद हम लोग सो गए और सुबह साढ़े
पांच बजे करीब आँख खुली तो ट्रेन जोधपुर स्टेशन पर थी । यहाँ बाहर निकल कर चाय पी ।
करीबन आधे घंटे रुकने के बाद ट्रेन अपनी मध्यम गति से आगे बढ़ चली । धीरे धीरे उजाला
भी होने लगा था तो मैं खिड़की से बाहर के नज़ारे देखने लगा । नेहा ने कुछ देर और नीद
के साथ ही बिताने की सोची ।
पथरीले और रेतीले पठारों के बीच सिंगल ट्रेक पर ट्रेन धूल और रेत उडाती हुई चली जा रही थी । बीच बीच में कुछ गाँव भी आते जा रहे थे और रेलवे ट्रेक के समान्तर सड़क भी चल रही थी । करीब ९ बजे हम लोग पोखरण पहुँच गए । यह छोटा सा गाँव भी नाभिकीय परीक्षणों के बाद आज देश के मानचित्र पर अपनी अलग अहमियत रखता है । यहाँ पर ट्रेन करीब बीस मिनट रूकती है । हमने सोचा की यहाँ पर कुछ खाने को मिले तो नाश्ता किया जाये । बाहर निकल कर देखा तो एक ठेले पर बहुत सी भीड़ जमा थी । दरअसल यहाँ पर मिर्ची-वड़ा मिल रहा
था । मिर्ची वड़ा मैंने
भी पहली बार देखा था और तीन चार मिर्ची बड़े और चाय ले ली । ये तो जैसलमेर जा कर ही
पता चला की इस इलाके में मिर्ची बड़ा बहुत खाया जाता है । स्वादिष्ट नाश्ते के बाद अब
ट्रेन आगे बढ़ने लगी थी ।
पथरीले और रेतीले पठारों के बीच सिंगल ट्रेक पर ट्रेन धूल और रेत उडाती हुई चली जा रही थी । बीच बीच में कुछ गाँव भी आते जा रहे थे और रेलवे ट्रेक के समान्तर सड़क भी चल रही थी । करीब ९ बजे हम लोग पोखरण पहुँच गए । यह छोटा सा गाँव भी नाभिकीय परीक्षणों के बाद आज देश के मानचित्र पर अपनी अलग अहमियत रखता है । यहाँ पर ट्रेन करीब बीस मिनट रूकती है । हमने सोचा की यहाँ पर कुछ खाने को मिले तो नाश्ता किया जाये । बाहर निकल कर देखा तो एक ठेले पर बहुत सी भीड़ जमा थी । दरअसल यहाँ पर मिर्ची-वड़ा मिल रहा
तकरीबन ग्यारह बजे ट्रेन अपने निर्धारित समय पर जैसलमेर स्टेशन पहुच चुकी थी । दूर से ही पहाड़ी पर जैसलमेर का विशाल किला दिख रहा था । जैसलमेर में पीले रंग का पत्थर पाया जाता है और किले के साथ साथ अधिकतर घर इसी रंग के बने हुए हैं । जैसलमेर स्टेशन पर दूर दूर तक चूना पत्थर और मालगाड़ियाँ ही दिख रही थी । दरअसल यहाँ से आगे चूना पत्थर बहुतायत में पाया जाता है ।
हमारा आज जैसलमेर से सीधे खूरी जाने का विचार था जहाँ पर रेगिस्तान गेस्ट हाउस में हमने रहने की व्यवस्था पहले से ही करा ली थी । जैसलमेर स्टेशन पर रेगिस्तान गेस्ट हाउस के मालिक पप्पू सिंह जी हमें लेने आ गए थे । यहाँ से निकल कर जैसलमेर किले की तलहटी में एक जगह भोजन किया और हम खूरी के लिए निकल पड़े ।
खूरी, जैसलमेर से लगभग ४५ किलोमीटर दूर एक छोटा सा गाँव है । जैसलमेर से कुछ आगे जाने पर वास्तविक थार मरुस्थल शुरू हो जाता है । यहाँ कुछ जगहों पर गाँव के लोगों ने ही पर्यटन योजनाओं के सहारे रिसोर्ट बना लिए हैं । पर्यटक आम तौर पर सेम और खुरी दो जगहों पर जाना ज्यादा पसंद करते हैं । सेम में ज्यादा भीड़ होने की वजह से हमने खूरी में रुकने का विचार बनाया । करीब एक घंटे में संकरी सी सड़क से
गेस्ट हाउस में पहुँच कर चाय नाश्ते के बाद थोडा आराम किया । इस समय धूप होने की वजह से टेंट के भीतर थोड़ी गर्मी थी । बाहर निकल कर थोड़ी देर गाँव की तरफ चहलकदमी की और वापस
अब तक बबलू से भी दोस्ती हो चुकी थी और सूर्यास्त के बाद अब हम बबलू पर सवार हो कर वापस गेस्ट हाउस की तरफ चल दिए । यहाँ
इस यात्रा वृत्तान्त का अगला भाग पढने के लिए क्लिक करें : थार मरुस्थल : लहराती रेत के अद्भुत पहाड़ ( भाग - दो)
Nice Travelogue.. Achchha laga padh kar..
जवाब देंहटाएंbahut sahi...ye travelogue padh ke trip ki yaadein fir se taaja ho gyi..
जवाब देंहटाएंद्वितीय भाग की प्रतीक्षा में......पढ़ के ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं खुद वहाँ मौजूद हूँ ...सुंदर वर्णन .......
जवाब देंहटाएंद्वितीय भाग की प्रतीक्षा में......पढ़ के ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं खुद वहाँ मौजूद हूँ ...सुंदर वर्णन .......
जवाब देंहटाएंbahut badia..mai bhi jaunga Jaisalmair.. :-) :-)
जवाब देंहटाएंbahut accha :-) ....
जवाब देंहटाएंइससे पहले साल की शुरुआत में कश्मीर की वादियों में कुछ दिन बिताये थे । अब साल के आखिर में सोचा कि मरुस्थल नापे जाएँ ।
जवाब देंहटाएंsunadr.....
VERY NICE
जवाब देंहटाएंVERY NICE
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