यदि किन्ही कारणोंवश आप थार यात्रा का प्रथम भाग नहीं पढ़ पाए हैं तो कृपया यहाँ देखें : थार मरुस्थल : लहराती रेत के अद्भुत पहाड़ ( भाग -एक )
थार मरुस्थल में सूर्योदय |
रेगिस्तान गेस्ट हाउस |
पर निकला हो। हम भी कुछ देर इनके पीछे पीछे गाँव में घूमते रहे ।
अब नाश्ता करने के बाद समय था खूरी से विदा लेने का। करीब १०
बजे पप्पू भाई के साथ हम लोग जैसलमेर की तरफ चल दिए । आज का हमारा विचार था जैसलमेर
के किले और अन्य एतिहासिक धरोहरों को घूमने का । नेहा को पता था कि इस यात्रा में मेरा
मन भारत पाकिस्तान सीमा पर आखिरी स्थान तनोत और भारत पाक के युद्धस्थल लोंगेवाला जाने
का था परन्तु समयाभाव की वजह से हमने इसे योजना में शामिल नहीं नहीं किया था । यह सोचकर
उसने मुझसे कहा कि अगर हम जैसलमेर के किले के स्थान पर
तनोत जा सकते हैं तो अच्छा
रहेगा । हमने पप्पू भाई से कुछ जानकारियां ली और बातों ही बातों में हमारी योजना बदल
गयी । पप्पू भाई भी अब तक समझ चुके थे कि मैं किस तरह का घुमक्कड़ हूँ और उन्होंने हमें
सलाह दी कि चूँकि जैसलमेर के किले में लोग रहते हैं और उसके मुकाबले तनोत जाना हमारे
लिए ज्यादा अच्छा रहेगा । बस, जैसलमेर पहुँचने से पहले ही उन्होंने हमारे लिए एक गाडी
का प्रबंध कर दिया।
पाकिस्तानी सेना द्वारा खंडित मूर्तियाँ |
यहाँ से तनोत लगभग १० किलोमीटर दूर है और थोड़ी ही
देर में हम वहां पहुँच गए ।
तनोत से लोंगेवाला करीब ३८ किलोमीटर दूर है । तनोत से लोंगेवाला
के मार्ग पर सचमुच थार मरुस्थल के ह्रदय में होने का अनुभव हो रहा था । चारों तरफ रेत
के एक जैसे टीले और इन पर चढ़ती उतरती एकदम वीरान सड़क और जगह जगह टीलों के उपर बने बंकर
- सचमुच यह है थार । हर समय, हर जगह, आप पर
नज़र है किसी की । एक दो जगह कुछ गाँव से भी दिखे जहाँ पर एक पानी का टेंक, कुछ झोपड़ियाँ
और खूब सारे मवेशी । खरामां खरामां हम चले जा रहे थे और हर टीले को पार कर फिर नयी
जिज्ञासा जन्मती थी अगले टीले के उस पार की ।
तनोत से लोंगेवाला के मार्ग के कुछ दृश्य |
लोंगेवाला में ही १९७१ के भारत पकिस्तान युद्ध की निर्णायक लड़ाई हुई थी जिसमे भारत ने पकिस्तान को चारों खाने चित्त कर दिया था । लोंगेवाला को पाकिस्तानी टेंकों की कब्र भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ पर हुए युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना की सैकड़ों गाड़ियों के साथ ३४ टेंक ध्वस्त कर दिए थे और भारत के दो सैनिक शहीद हुए थे । इस विजय के लिए ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी को वीर चक्र से सम्मानित किया गया । हिंदी फिल्म "बॉर्डर" की पटकथा लोंगेवाला के भारत पाक युद्ध पर ही आधारित है और फिल्म में दिखाया
यहाँ पर बड़े बड़े फार्म बने हुए थे और खेती भी हो रही थी । अशोक
जी ने बताया की कुछ जगहों पर अच्छी मिटटी भी मिल जाती है जिसका पूरा उपयोग खेती के
लिए किया जाता है ।
अब तब भूख भी बड़े जोरों से लग चुकी थी और जैसलमेर से पहले बीच में एक जगह पर रुक कर भोजन का आनंद लिया । जैसलमेर से थोडा पहले ही सूर्यास्त होने लगा था और हम इस
जैसलमेर में नेहा की एक सहेली योगिता भी थी और वो हमसे मिलने
जैसलमेर किले के पास पहुँच चुकी थी । यहाँ पहुँच कर अब जैसलमेर के किले को देखने का
समय तो बचा नहीं था इसलिए हम प्रसिद्द पटवा की हवेली देखने चल पड़े । पुराने जैसलमेर
शहर के बीच में संकरी गलियों से होते हुए हम पटवा की हवेली पहुचे । इन रास्तों को देख
कर "नन्हे जैसलमेर " फिल्मे में देखा हुआ जैसलमेर याद आ गया ।