मराठवाड़ा :
महाराष्ट्र के पांच प्रशासनिक मंडलों में से एक मराठवाड़ा है जो आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित है | अंग्रेजों के शाशन काल में यह हेदराबाद के निजाम के नियंत्रण में था जिसे १९५६ में बॉम्बे राज्य में शामिल कर लिया गया | बाद में महाराष्ट्र और गुजरात के विभाजन के समय यह क्षेत्र महाराष्ट्र में आया | इस क्षेत्र के प्रमुख स्थान औरंगाबाद, नांदेड, परभणी , लातूर आदि हैं | मराठवाड़ा क्षेत्र अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के लिए जाना जाता है | प्रमुख आकर्षण हैं :
औरंगाबाद में अजन्ता - एल्लोरा की गुफाएं |
घ्रिश्नेश्वर ज्योतिर्लिंग और नागनाथ एवं वैजनाथ |
ज्ञानेश्वर, मुक्ताबाई , गजानन महाराज , समर्थ रामदास , नामदेव आदि संतों की कर्मस्थली
नांदेड में दसवें सिख गुरु , गुरु गोविन्द सिंह जी की समाधि और गुरुद्वारा तख्त श्री सचखंड साहिब |
खुल्दाबाद में दक्षिण के अनेक सूफी संतो की समाधियाँ |
योजना :
चूंकि हमारे पास तीन दिन का ही समय था इसलिए समय की पाबन्दी के हिसाब से योजना बनानी थी | औरंगाबाद जिला में पहले घूम चुका था इसलिए बाकी जगहें घूमने का विचार बना | संतोष ने बताया कि आंध्र प्रदेश के सीमावर्ती जिले आदिलाबाद में एक प्रसिद्ध प्राचीन सरस्वती मंदिर है | बासर सरस्वती शक्ति पीठ, भारत के दो प्रसिद्द सरस्वती मंदिरों में से एक है | अमोल ने बताया कि लोणार में एक विशाल खारे पानी की झील भी देखने लायक है जो कि बहुत पहले उल्का पिंड के गिरने से बनी हुई है| योजना के मुताबिक बासर शक्ति पीठ, लोणार झील और नांदेड जाने का विचार बना और एक दिन तो अमोल की सगाई का ही था | इस बार जाने वाले ३ लोग थे , संतोष मैं और सौरभ |
मुंबई से बासर :
शुक्रवार को ऑफिस के बाद, मुंबई से हैदराबाद जाने वाली ट्रेन, देवगिरी एक्सप्रेस पकडनी थी | यहाँ से हम ५ लोग जाने वाले थे : अमोल , संतोष , सौरभ, प्रकाश , और मैं | अमोल और प्रकाश को
परभणी उतरना था और हम तीनों को इसी ट्रेन से बासर जाना था | शाम को ऑफिस से निकाल कर दादर में खाना खाने के बाद ९ बजे देवगिरी एक्सप्रेस पकड़ कर यात्रा का प्रारंभ हुआ |
सुबह ७ बजे अमोल और प्रकाश परभणी में उतर गये| ट्रेन का बासर पहुँचने का समय १०:३० का था | परभणी के बाद का इलाका सूखा हुआ था और गर्मी बहुत थी | इस पर ट्रेन अब धीरे धीरे चल रही थी | करीबन ११ बजे हम लोग बासर स्टेशन पर उतरे |
बासर में :
मंदिर में ज्यादा भीड़ नही थी | यहाँ बहुत से लोग छोटे बच्चों का अक्षरारंभ कराने के लिए आते हैं |
भोजन की भी जरूरत नही थी|
बासर से नांदेड :
अब समय था बासर से नांदेड जाने का | बासर स्टेशन पर जा कर पाता चला की थोड़ी ही देर में नांदेड के लिए एक पसेंजर ट्रेन है | जल्दी से टिकेट लिए और थोड़ी ही देर में ट्रेन आ गयी | जैसा की उम्मीद थी ट्रेन में अच्छी खासी भीड़ थी और गर्मी के इस मौसम में यात्रा को मुश्किल बना रही थी | पेसेंजर ट्रेन थी तो रुक रुक कर चली जा रही थी | बाहर भी हरियाली का नामो निशान नही था | करीबन ४ बजे आखिरकार हम नांदेड पहुँच गये | समय ज्यादा नही बचा था और शाम को परभणी भी लौटना था |
नांदेड में :
नांदेड शहर धार्मिक नगरी के रूप में जाना जाता है | यहाँ का नाम भी हुजूर साहेब नांदेड है | अभी २ साल पहले नांदेड में तख्त साहेब के ३०० साल पूरे होने के अवसर पर बहुत बड़े आयोजन हुए थे जिससे शहर का नक्शा ही बदल गया है |
यहाँ से ऑटो पकड़ कर हम लोग प्रमुख गुरूद्वारे 'तख्त सचखंड श्री हजूर साहिब' की तरफ चल पड़े | गुरुद्वारा स्टेशन से ज्यादा दूर नही है | गुरूद्वारे के मुख्य द्वार से भीतर प्रवेश करते ही इसकी भव्यता का अनुमान हो जाता है | बहुत बड़े क्षेत्र में बने हुए इस गुरूद्वारे का वातावरण बहुत शांत और सुखद था | इसी जगह पर गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपने अंतिम दिन बिताये थे और यहाँ पर ही गुरु ग्रन्थ साहिब को अगला गुरु घोषित किया था |
बाद में इस गुरूद्वारे का निर्माण पंजाब के महाराज रंजीत सिंह जी ने सन १८३० से १८३९ के बीच करवाया था |
गुरूद्वारे में मत्था टेकने के बाद प्रसाद में स्वादिस्ट हलुआ खाया| सचमुच यह वातावरण इतना शांत था की यहाँ से वापस जाने का मन नही कर रहा था | करीब आधे घंटे गुरूद्वारे के बाहर बैठे रहे और अब समय था वापस जाने का |
नांदेड से परभणी :
गुरूद्वारे से नांदेड स्टेशन आये और मुंबई के लिए जाने वाली देवगिरी एक्सप्रेस पकाकर वापस परभणी की तरफ रवाना हुए | द्वितीय श्रेणी के डब्बे में बहुत भीड़ थी और हम तीनो को गेट पर ही बैठना पड़ा| यह सफ़र करीब १:३० घंटे का था और ८ बजे हम परभणी पहुँच गये | यहाँ अमोल के घर पर २ दिन बिताना भी बहुत अच्छा अनुभव था | मराठी सभ्यता , मराठी भोजन और मराठी आतिथ्य सत्कार ....सब कुछ यादगार था | चूँकि सब थक चुके थे इसलिए भोजन के बाद सबको नींद आ गयी |
दूसरा दिन : लोणार में
आज अमोल की सगाई का दिन था | यह रस्म मराठी में साखरपूड़ा कहलाती है और लड़की के घर पर होती है | सुबह सुबह उठकर तैयार होना था | करीबन १० बजे हम लोग लोणार की तरफ निकल पड़े | लोणार, बुलढाना जिले में एक छोटी सी जगह है | परभणी से २ घंटे का सफ़र तय करने के बाद करीब १२ बजे हम लोग लोणार में थे | इसके बाद ३-४ घंटे तक साखरपूड़ा की रस्म चलती रही और इसके बाद स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया | अब समय था लोणार की कुछ जगहे देखने का |
लोणार झील :
लोणार महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में स्थित है | यहाँ का प्रमुख आकर्षण एक विशालकाय सरोवर है | लोणार सरोवर उल्का गिने से बने हुए एक विशाल गड्ढे में प्राकृतिक रूप से बना हुआ है | यह झील खारे और क्षारीय पानी की है | इस गड्ढे का व्यास १.८ किलोमीटर और झील का व्यास १.२ किलोमीटर है| इस झील के बनने का समय ५२००० (+- ६०००) वर्ष आँका गया है| इस झील पर बहुत से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में शोध चल रहा है | सुना जाता है की यहाँ स्नान करने से चर्म रोग दूर होते हैं |
इस झील का विवरण स्कन्द पुराण, पद्म पुराण और आइना-ए-अकबरी में मिलता है | झील के चारों तरफ बहुत से प्राचीन मंदिर भी बने हुए हैं |
और लवणासुर नामक असुर का वध किया था | इसके बाद काशी से गंगाजल के रूप में यह जल धारा उत्पन्न हुई और इसी असुर के नाम पर इस जगह का नाम लोणार है | यह एक छोटा परन्तु प्राचीन मंदिर समूह है जिसमे विष्णु का मंदिर मुख्य है | यहाँ विष्णु की लवणासुर के उपर खड़ी प्रतिमा है और मूर्ति के ठीक २-३ फीट नीचे यह सदाबहार जल की धारा है |
यहाँ का वातावरण भी बड़ा शांत और सुखद था | यहाँ पर खड़े हो कर कुछ फोटोग्राफी की, मंदिर के दर्शन के बाद सूर्यास्त के सुन्दर दृश्यों का अननद लिया और अब वापस चल पड़े |
रात में करीब १० बजे हम परभणी पहुच गये और भोजन के उपरान्त नींद के आगोश में समा गये |
परभणी में तीसरा दिन :
दो दिन की थकान हम सब पर हावी हो चुकी थी और गर्मी की वजह से आज का दिन परभणी की स्थानीय जगहों को घूमने में लगा दिया | देर से सो कर उठे और नाश्ते के बाद अमोल के साथ मैं और संतोष परभणी देखने निकल पड़े | सौरभ ने घर पर रुक कर सोने का निर्णय लिया | बड़े शहरों की अपेक्षा एक छोटे से शहर का जीवन मुझे हमेशा आकर्षित करता रहा है | धूप में परभणी के बाज़ारों में घूमना भी अच्छा अनुभव था | ३-४ घंटे घूमने के बाद वापस घर आ गये |
कुछ देर आराम करने के बाद अब वापस मुंबई जाने का समय था | फिर वही देवगिरी एक्सप्रेस पकड़ कर हम लोग ८ बजे परभणी से मुंबई की तरफ रवाना हुए | सुबह ७ बजे दादर स्टेशन पर उतर कर यात्रा का समापन हुआ |
इस यात्रा में भी हमें कई ऐसी जगहें, जो पर्यटन कि दृष्टि से ज्यादा विकसित नही हुई हैं और ज्यादा प्रसिद्द नही हैं , देखने का अवसर मिला और साथ ही मराठी संस्कृति को करीब से जानने समझने का अविस्मर्णीय अनुभव अमोल के घर पर मिला |