कृपया यात्रा का पहला भाग यहाँ पढ़ें : मनमोहक मालवण -- भाग १
आज इस यात्रा का दूसरा दिन था । दरअसल तारकर्ली के पास गहरे समुद्र में डॉल्फ़िन मछलियाँ भी पायी जाती हैं और सुबह सुबह अक्सर वो पानी में अठखेलियाँ करती दिख जाती हैं । इसके साथ ही कुछ और जगहें भी देखने लायक हैं । रिसोर्ट में रुके हुए कुछ और लोगों के साथ मिल कर हमने पहले ही दिन शेयरिंग बेसिस पर डॉल्फ़िन सफारी की एक नाव बुक कर ली थी । हमें सुबह सुबह अँधेरे में ही निकलना था ताकि हम जल्दी से जल्दी डॉल्फ़िन पॉइंट पर पहुँच सकें । हमें यह खास तौर पर बता दिया गया था की डॉल्फ़िन दिखना किस्मत की बात है और कुछ देर रुकने के बाद हमे वापस ले आया जायेगा ।
सौभाग्यवश इसी रिसोर्ट में रुके कुछ लोगों को पहले ही दिन डॉल्फ़िन देखने का मौका मिल गया था सो हमने भी किस्मत आजमाने की सोची ।
सुबह करीब ६ बजे हलके अँधेरे में ही हम निकल पड़े । थोड़ा सा आगे चल कर नदी समुद्र में मिल रही थी और यह संगम पॉइन्ट था । सुबह हलके ठन्डे मौसम में सूरज की पहली किरणों के साथ अनंत समुद्र के बीच में होना अपने आप में एक खुशनुमां अनुभव था ।
इसके आगे चलते हुए हम समुद्र के बीच में कुछ सुनहरी चट्टानों के पास से गुजर रहे थे । यह भी हमारी यात्रा का एक पॉइंट था जिसे कहते हैं गोल्डन रॉक्स । सुबह सुबह सूरज की किरणों के पड़ने से इन सुनहरी चट्टानों की स्वर्णिम आभा समुद्र के इस रोमांच को और बढ़ा रही थी । इसके बाद हम कुछ दूर स्थित एक बीच "निवति बीच " के पास पहुंचे । एक छोटा सा अर्धवृत्ताकार बीच नारियल के पेड़ों और जंगलों से घिरा हुआ सचमुच निर्जनता का आभास करा रहा था । हम यहाँ कुछ देर रुकना तो चाहते थे परन्तु हमें बताया गया की डॉल्फ़िन पॉइंट पर जल्दी से जल्दी
पहुँचना चाहिए ताकि कुछ देर रुकने का समय मिल सके ।
इसके बाद हम वापस सुनहरी चट्टानों के आस पास से होते हुए गहरे समुद्र में डॉल्फ़िन पॉइन्ट की तरफ बढ़ चले । यहाँ पहुँचते ही नाव की मोटर ऑफ कर दी गयी ताकि डॉलफिंस की मस्ती में कोई व्यवधान न हो । कुछ और नावों पर लोग यहाँ पहले से रुके हुए थे परन्तु शायद आज अभी तक किसी को डॉल्फ़िन नहीं दिखी थी। करीब १५-२० मिनट रुकने के बाद कुछ नाव वालों ने विचार विमर्श किया और हमें फैसला सुना दिया कि अब आज डॉलफिंस नहीं दिख पाएंगी । उदास मन से ही सही अब हमें वापस लौटना था ।
वापसी में गाइड हमें सुनामी द्वीप पर ले गया । ये एक छोटा सा रेट का टीला सा था जो समुद्र से थोड़ा भीतर नदी की तरफ था । हमें बताया गया कि सुनामी के प्रभाव से यह हिस्सा थोड़ा सा ऊपर उठ गया है । ज्वार यानि की हाई टाइड के समय यह पानी में डूब जाता है।यहाँ पर वाटर स्पोर्ट्स की सुविधा भी थी और कुछ अस्थाई छप्पर डाल कर लोग चाय नाश्ता बेच रहे थे । दरअसल यह सुनामी द्वीप एक बिज़नेस पॉइंट था । यहाँ कुछ चाय नाश्ते के बाद अब हम लोग वापस निकल पड़े ।
वापस लौटते हुए हमें कुछ साइबेरियन प्रवासी पक्षियों का खूबसूरत झुण्ड मिला जिसने डॉल्फ़िन के ग़म को कम करने में थोड़ी मदद की । इसके साथ ही सुबह सुबह अँधेरे की वजह से जो खूबसूरत दृश्य हम नहीं देख पाये थे अब समय था उनका आनंद लेने का । आप भी कुछ फोटो देखे :
वापस रिसोर्ट में पहुंचकर हमने नाश्ता किया और उसके बाद चेक आउट कर लिया । अब समय था यात्रा के सबसे रोचक पड़ाव "स्कूबा डाइविंग " का जिसके लिए मैं दो दिन से बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था । स्कूबा डाइविंग के लिए अभी नेहा पूरी तरह तैयार नहीं थी और उसका पानी से डर उसकी राह का रोड़ा बना हुआ था । हालांकि में दो दिनों से उसे मानसिक रूप से तैयार कर रहा था परन्तु अभी भी एक शंशय उसके मन में बना हुआ था । खैर यहाँ से तो निकलना ही था सो हम मालवण की तरफ चल पड़े । मालवण जेट्टी पर पहुँच कर आखिर नेहा ने भी हामी भर दी और हम टिकट ले कर चल पड़े । कुछ देर में नाव से हम सिंधुदुर्ग किले के पास ही एक जगह पर पहुंच गए जहाँ पर स्कूबा डाइविंग के लिए कुछ और नाव भी खड़ी थी ।
दरअसल यहाँ पर बहुत ज्यादा गहराई तक स्कूबा डाइविंग नहीं करवाई जाती इसलिए ऑक्सीजन सिलिंडर की जगह पर पाइप से ही ऑक्सीजन सप्लाई करवाई जाती है और सिलिंडर नाव में ही रहता है । दो अलग अलग गाइड हमें ले कर पानी में उतरे और कुछ ही देर में हम मछलियों और रंगीन कोरल्स की निराली दुनिया में सैर कर रहे थे ।
पानी के भीतर तैरना शायद थोड़ा मुश्किल काम है और हमें बैलेंस बनाये रखने में थोड़ी मुश्किल हो रही थी । करीब १५ मिनट जल के विचित्र जीवन में विचरण करने के बाद हम वापस नाव पर आ गए । यह अनुभव तो वास्तव में इतना अच्छा था की मेरा तो इतनी जल्दी ऊपर आने का मन ही नहीं था । नेहा को भी इस बात की ख़ुशी थी की अपने डर से एक कदम आगे बढ़कर उसने यह निराला अनुभव प्राप्त कर लिया था जो आज तक सिर्फ टी वी पर । थोड़ी देर में हम वापस मालवण जेट्टी पर पहुंच गए । यहाँ पर हमें पानी के भीतर की फोटो की सी डी मिल गयी ।
अब तक भूख जोरों से लग चुकी थी और हमारा अगला पड़ाव था "हॉटल अतिथि बांबू "। इस रेस्टोरेंट के बारे में मैंने इंटरनेट पर पढ़ा था और हमारे स्कूबा डाइविंग के गाइड एक लड़के ने हमें यहाँ तक छोड़ दिया । यह रेस्टोरेंट घरघुती जेवण (घर के बने हुए भोजन ) के लिए जाना जाता है । यहाँ बहुत भीड़ थी और कुछ देर इंतज़ार के बाद हमें बैठने की जगह मिल गयी । यहाँ फिर से स्वादिष्ट मालवणी थाली का लुत्फ़ उठाया और हम मालवण के बाज़ारों से होते हुए पैदल पैदल बस स्टेशन की तरफ चल दिए । हमारे पास समय की कमी नहीं थी और रात्रि ८ बजे हमें कुडाल से बस पकड़नी थी । थोड़ी देर में हमें कुडाल के लिए बस मिल गयी और कुडाल बस स्टेशन से ऑटो से हम मुंबई गोवा महामार्ग पर पहुंच गए । यहाँ कुछ देर इंतज़ार करने के बाद एक खूबसूरत सप्ताहांत की बेशुमार यादों को दिल में संजोये हम मुंबई के लिए रवाना हो गए ।
ek dum jhakas
जवाब देंहटाएंसुन्दर! :) वैसे आप इतना याद कैसे रख पाते हैं?? :P
जवाब देंहटाएंशुक्रिया इमाम साहब :)
जवाब देंहटाएंराजनाथ जी ये यात्रा एक साल से ज्यादा पुरानी है और इसे मैंने कल लिखा । इसी को तो शौक-ए- घुमक्कड़ी कहते हैं की आप के भीतर वो जगह रच बस जाये जहाँ आप भटक रहे हों ।